جَنّٰتُ عَدْنٍ يَّدْخُلُوْنَهَا تَجْرِيْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ لَهُمْ فِيْهَا مَا يَشَاۤءُوْنَ ۗ كَذٰلِكَ يَجْزِى اللّٰهُ الْمُتَّقِيْنَۙ ٣١
- jannātu
- جَنَّٰتُ
- बाग़ात
- ʿadnin
- عَدْنٍ
- हमेशागी के
- yadkhulūnahā
- يَدْخُلُونَهَا
- वो दाख़िल होंगे उनमें
- tajrī
- تَجْرِى
- बहती हैं
- min
- مِن
- उनके नीचे से
- taḥtihā
- تَحْتِهَا
- उनके नीचे से
- l-anhāru
- ٱلْأَنْهَٰرُۖ
- नहरें
- lahum
- لَهُمْ
- उनके लिए
- fīhā
- فِيهَا
- उसमें होगा
- mā
- مَا
- जो कुछ
- yashāūna
- يَشَآءُونَۚ
- वो चाहेंगे
- kadhālika
- كَذَٰلِكَ
- इसी तरह
- yajzī
- يَجْزِى
- बदला देगा
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- l-mutaqīna
- ٱلْمُتَّقِينَ
- मुत्तक़ी लोगों को
सदैव रहने के बाग़ जिनमें वे प्रवेश करेंगे, उनके नीचे नहरें बह रहीं होंगी, उनके लिए वहाँ वह सब कुछ संचित होगा, जो वे चाहे। अल्लाह डर रखनेवालों को ऐसा ही प्रतिदान प्रदान करता है ([१६] अन नहल: 31)Tafseer (तफ़सीर )
الَّذِيْنَ تَتَوَفّٰىهُمُ الْمَلٰۤىِٕكَةُ طَيِّبِيْنَ ۙيَقُوْلُوْنَ سَلٰمٌ عَلَيْكُمُ ادْخُلُوا الْجَنَّةَ بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُوْنَ ٣٢
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जो
- tatawaffāhumu
- تَتَوَفَّىٰهُمُ
- फ़ौत करते हैं उन्हें
- l-malāikatu
- ٱلْمَلَٰٓئِكَةُ
- फ़रिश्ते
- ṭayyibīna
- طَيِّبِينَۙ
- वो पाक होते हैं (इस हाल में कि)
- yaqūlūna
- يَقُولُونَ
- वो कहते हैं
- salāmun
- سَلَٰمٌ
- सलाम है
- ʿalaykumu
- عَلَيْكُمُ
- तुम पर
- ud'khulū
- ٱدْخُلُوا۟
- दाख़िल हो जाओ
- l-janata
- ٱلْجَنَّةَ
- जन्नत में
- bimā
- بِمَا
- बवजह उसके जो
- kuntum
- كُنتُمْ
- थे तुम
- taʿmalūna
- تَعْمَلُونَ
- तुम अमल करते
जिनकी रूहों को फ़रिश्ते इस दशा में ग्रस्त करते है कि वे पाक और नेक होते है, वे कहते है, 'तुम पर सलाम हो! प्रवेश करो जन्नत में उसके बदले में जो कुछ तुम करते रहे हो।' ([१६] अन नहल: 32)Tafseer (तफ़सीर )
هَلْ يَنْظُرُوْنَ اِلَّآ اَنْ تَأْتِيَهُمُ الْمَلٰۤىِٕكَةُ اَوْ يَأْتِيَ اَمْرُ رَبِّكَ ۗ كَذٰلِكَ فَعَلَ الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِهِمْ ۗوَمَا ظَلَمَهُمُ اللّٰهُ وَلٰكِنْ كَانُوْٓا اَنْفُسَهُمْ يَظْلِمُوْنَ ٣٣
- hal
- هَلْ
- नहीं
- yanẓurūna
- يَنظُرُونَ
- वो इन्तिज़ार कर रहे
- illā
- إِلَّآ
- मगर
- an
- أَن
- ये कि
- tatiyahumu
- تَأْتِيَهُمُ
- आजाऐं उनके पास
- l-malāikatu
- ٱلْمَلَٰٓئِكَةُ
- फ़रिश्ते
- aw
- أَوْ
- या
- yatiya
- يَأْتِىَ
- आजाए
- amru
- أَمْرُ
- हुक्म
- rabbika
- رَبِّكَۚ
- आपके रब का
- kadhālika
- كَذَٰلِكَ
- इसी तरह
- faʿala
- فَعَلَ
- किया
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों ने जो
- min
- مِن
- उनसे पहले थे
- qablihim
- قَبْلِهِمْۚ
- उनसे पहले थे
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- ẓalamahumu
- ظَلَمَهُمُ
- ज़ुल्म किया था उन पर
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- walākin
- وَلَٰكِن
- और लेकिन
- kānū
- كَانُوٓا۟
- थे वो
- anfusahum
- أَنفُسَهُمْ
- अपनी ही जानों पर
- yaẓlimūna
- يَظْلِمُونَ
- वो ज़ुल्म करते
क्या अब वे इसी की प्रतीक्षा कर रहे है कि फ़रिश्ते उनके पास आ पहुँचे या तेरे रब का आदेश ही आ जाए? ऐसा ही उन लोगो ने भी किया, जो इनसे पहले थे। अल्लाह ने उनपर अत्याचार नहीं किया, किन्तु वे स्वयं अपने ऊपर अत्याचार करते रहे ([१६] अन नहल: 33)Tafseer (तफ़सीर )
فَاَصَابَهُمْ سَيِّاٰتُ مَا عَمِلُوْا وَحَاقَ بِهِمْ مَّا كَانُوْا بِهٖ يَسْتَهْزِءُوْنَ ࣖ ٣٤
- fa-aṣābahum
- فَأَصَابَهُمْ
- तो पहुँची उन्हें
- sayyiātu
- سَيِّـَٔاتُ
- बुराईयाँ
- mā
- مَا
- उसकी जो
- ʿamilū
- عَمِلُوا۟
- उन्होंने अमल किए थे
- waḥāqa
- وَحَاقَ
- घेर लिया
- bihim
- بِهِم
- उन्हें
- mā
- مَّا
- जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- bihi
- بِهِۦ
- जिसका
- yastahziūna
- يَسْتَهْزِءُونَ
- वो मज़ाक़ उड़ाते
अन्ततः उनकी करतूतों की बुराइयाँ उनपर आ पड़ी, और जिसका उपहास वे कहते थे, उसी ने उन्हें आ घेरा ([१६] अन नहल: 34)Tafseer (तफ़सीर )
وَقَالَ الَّذِيْنَ اَشْرَكُوْا لَوْ شَاۤءَ اللّٰهُ مَا عَبَدْنَا مِنْ دُوْنِهٖ مِنْ شَيْءٍ نَّحْنُ وَلَآ اٰبَاۤؤُنَا وَلَا حَرَّمْنَا مِنْ دُوْنِهٖ مِنْ شَيْءٍ ۗ كَذٰلِكَ فَعَلَ الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِهِمْ ۚفَهَلْ عَلَى الرُّسُلِ اِلَّا الْبَلٰغُ الْمُبِيْنُ ٣٥
- waqāla
- وَقَالَ
- और कहा
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों ने जिन्होंने
- ashrakū
- أَشْرَكُوا۟
- शिर्क कया
- law
- لَوْ
- अगर
- shāa
- شَآءَ
- चाहता
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- mā
- مَا
- ना
- ʿabadnā
- عَبَدْنَا
- इबादत करते हम
- min
- مِن
- उसके सिवा
- dūnihi
- دُونِهِۦ
- उसके सिवा
- min
- مِن
- किसी चीज़ की
- shayin
- شَىْءٍ
- किसी चीज़ की
- naḥnu
- نَّحْنُ
- हम
- walā
- وَلَآ
- और ना
- ābāunā
- ءَابَآؤُنَا
- आबा ओ अजदाद हमारे
- walā
- وَلَا
- और ना
- ḥarramnā
- حَرَّمْنَا
- हराम करते हम
- min
- مِن
- उसके (हुक्म) के सिवा
- dūnihi
- دُونِهِۦ
- उसके (हुक्म) के सिवा
- min
- مِن
- किसी चीज़ को
- shayin
- شَىْءٍۚ
- किसी चीज़ को
- kadhālika
- كَذَٰلِكَ
- इसी तरह
- faʿala
- فَعَلَ
- किया था
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों ने जो
- min
- مِن
- उनसे पहले थे
- qablihim
- قَبْلِهِمْۚ
- उनसे पहले थे
- fahal
- فَهَلْ
- तो नहीं है
- ʿalā
- عَلَى
- रसूलों पर
- l-rusuli
- ٱلرُّسُلِ
- रसूलों पर
- illā
- إِلَّا
- मगर
- l-balāghu
- ٱلْبَلَٰغُ
- पहुँचाना
- l-mubīnu
- ٱلْمُبِينُ
- खुल्लम-खुल्ला
शिर्क करनेवालों का कहना है, 'यदि अल्लाह चाहता तो उससे हटकर किसी चीज़ की न हम बन्दगी करते और न हमारे बाप-दादा ही और न हम उसके बिना किसी चीज़ को अवैध ठहराते।' उनसे पहले के लोगों ने भी ऐसा ही किया। तो क्या साफ़-साफ़ सन्देश पहुँचा देने के सिवा रसूलों पर कोई और भी ज़िम्मेदारी है? ([१६] अन नहल: 35)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَقَدْ بَعَثْنَا فِيْ كُلِّ اُمَّةٍ رَّسُوْلًا اَنِ اعْبُدُوا اللّٰهَ وَاجْتَنِبُوا الطَّاغُوْتَۚ فَمِنْهُمْ مَّنْ هَدَى اللّٰهُ وَمِنْهُمْ مَّنْ حَقَّتْ عَلَيْهِ الضَّلٰلَةُ ۗ فَسِيْرُوْا فِى الْاَرْضِ فَانْظُرُوْا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُكَذِّبِيْنَ ٣٦
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- baʿathnā
- بَعَثْنَا
- भेजा हमने
- fī
- فِى
- हर उम्मत में
- kulli
- كُلِّ
- हर उम्मत में
- ummatin
- أُمَّةٍ
- हर उम्मत में
- rasūlan
- رَّسُولًا
- एक रसूल
- ani
- أَنِ
- कि
- uʿ'budū
- ٱعْبُدُوا۟
- इबादत करो
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह की
- wa-ij'tanibū
- وَٱجْتَنِبُوا۟
- और बचो
- l-ṭāghūta
- ٱلطَّٰغُوتَۖ
- ताग़ूत से
- famin'hum
- فَمِنْهُم
- तो बाज़ उनमें से थे
- man
- مَّنْ
- जिन्हें
- hadā
- هَدَى
- हिदायत दी
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- wamin'hum
- وَمِنْهُم
- और बाज़ उनमें से थे
- man
- مَّنْ
- वो जो
- ḥaqqat
- حَقَّتْ
- साबित हो गई
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- उन पर
- l-ḍalālatu
- ٱلضَّلَٰلَةُۚ
- गुमराही
- fasīrū
- فَسِيرُوا۟
- पस चलो-फिरो
- fī
- فِى
- ज़मीन में
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में
- fa-unẓurū
- فَٱنظُرُوا۟
- फिर देखो
- kayfa
- كَيْفَ
- किस तरह
- kāna
- كَانَ
- हुआ
- ʿāqibatu
- عَٰقِبَةُ
- अंजाम
- l-mukadhibīna
- ٱلْمُكَذِّبِينَ
- झुठलाने वालों का
हमने हर समुदाय में कोई न कोई रसूल भेजा कि 'अल्लाह की बन्दगी करो और ताग़ूत से बचो।' फिर उनमें से किसी को तो अल्लाह ने सीधे मार्ग पर लगाया और उनमें से किसी पर पथभ्रष्ट सिद्ध होकर रही। फिर तनिक धरती में चल-फिरकर तो देखो कि झुठलानेवालों का कैसा परिणाम हुआ ([१६] अन नहल: 36)Tafseer (तफ़सीर )
اِنْ تَحْرِصْ عَلٰى هُدٰىهُمْ فَاِنَّ اللّٰهَ لَا يَهْدِيْ مَنْ يُّضِلُّ وَمَا لَهُمْ مِّنْ نّٰصِرِيْنَ ٣٧
- in
- إِن
- अगर
- taḥriṣ
- تَحْرِصْ
- आप हरीस हैं
- ʿalā
- عَلَىٰ
- उनकी हिदायत पर
- hudāhum
- هُدَىٰهُمْ
- उनकी हिदायत पर
- fa-inna
- فَإِنَّ
- तो बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- lā
- لَا
- नहीं हिदायत देता
- yahdī
- يَهْدِى
- नहीं हिदायत देता
- man
- مَن
- उसको जिसे
- yuḍillu
- يُضِلُّۖ
- वो गुमराह करता है
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- lahum
- لَهُم
- उनके लिए
- min
- مِّن
- मददगारों में से कोई
- nāṣirīna
- نَّٰصِرِينَ
- मददगारों में से कोई
यद्यपि इस बात का कि वे राह पर आ जाएँ तुम्हें लालच ही क्यों न हो, किन्तु अल्लाह जिसे भटका देता है, उसे वह मार्ग नहीं दिखाया करता और ऐसे लोगों का कोई सहायक भी नहीं होता ([१६] अन नहल: 37)Tafseer (तफ़सीर )
وَاَقْسَمُوْا بِاللّٰهِ جَهْدَ اَيْمَانِهِمْۙ لَا يَبْعَثُ اللّٰهُ مَنْ يَّمُوْتُۗ بَلٰى وَعْدًا عَلَيْهِ حَقًّا وَّلٰكِنَّ اَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُوْنَۙ ٣٨
- wa-aqsamū
- وَأَقْسَمُوا۟
- और वो क़समें खाते हैं
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह की
- jahda
- جَهْدَ
- पक्की
- aymānihim
- أَيْمَٰنِهِمْۙ
- क़समें अपनी
- lā
- لَا
- नहीं उठाएगा
- yabʿathu
- يَبْعَثُ
- नहीं उठाएगा
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- man
- مَن
- उसे जो
- yamūtu
- يَمُوتُۚ
- मर जाता है
- balā
- بَلَىٰ
- क्यों नहीं
- waʿdan
- وَعْدًا
- वादा है
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- उसके ज़िम्मा
- ḥaqqan
- حَقًّا
- सच्चा
- walākinna
- وَلَٰكِنَّ
- और लेकिन
- akthara
- أَكْثَرَ
- अक्सर
- l-nāsi
- ٱلنَّاسِ
- लोग
- lā
- لَا
- नहीं वो इल्म रखते
- yaʿlamūna
- يَعْلَمُونَ
- नहीं वो इल्म रखते
उन्होंने अल्लाह की कड़ी-कड़ी क़समें खाकर कहा, 'जो मर जाता है उसे अल्लाह नहीं उठाएगा।' क्यों नहीं? यह तो एक वादा है, जिसे पूरा करना उसके लिए अनिवार्य है - किन्तु अधिकतर लोग जानते नहीं। - ([१६] अन नहल: 38)Tafseer (तफ़सीर )
لِيُبَيِّنَ لَهُمُ الَّذِيْ يَخْتَلِفُوْنَ فِيْهِ وَلِيَعْلَمَ الَّذِيْنَ كَفَرُوْٓا اَنَّهُمْ كَانُوْا كٰذِبِيْنَ ٣٩
- liyubayyina
- لِيُبَيِّنَ
- ताकि वो बयान करे
- lahumu
- لَهُمُ
- उनके लिए
- alladhī
- ٱلَّذِى
- वो चीज़ जो
- yakhtalifūna
- يَخْتَلِفُونَ
- वो इख़्तिलाफ़ करते हें
- fīhi
- فِيهِ
- जिसमें
- waliyaʿlama
- وَلِيَعْلَمَ
- और ताकि जानलें
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوٓا۟
- कुफ़्र किया
- annahum
- أَنَّهُمْ
- बेशक वो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- kādhibīna
- كَٰذِبِينَ
- झूठे
ताकि वह उनपर उसको स्पष्ट। कर दे, जिसके विषय में वे विभेद करते है और इसलिए भी कि इनकार करनेवाले जान लें कि वे झूठे थे ([१६] अन नहल: 39)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّمَا قَوْلُنَا لِشَيْءٍ اِذَآ اَرَدْنٰهُ اَنْ نَّقُوْلَ لَهٗ كُنْ فَيَكُوْنُ ࣖ ٤٠
- innamā
- إِنَّمَا
- बेशक
- qawlunā
- قَوْلُنَا
- कहना हमारा
- lishayin
- لِشَىْءٍ
- किसी चीज़ के लिए
- idhā
- إِذَآ
- जब
- aradnāhu
- أَرَدْنَٰهُ
- इरादा करते हैं हम उसका
- an
- أَن
- ये कि
- naqūla
- نَّقُولَ
- हम कहते हैं
- lahu
- لَهُۥ
- उसे
- kun
- كُن
- हो जा
- fayakūnu
- فَيَكُونُ
- तो वो हो जाती है
किसी चीज़ के लिए जब हम उसका इरादा करते है तो हमारा कहना बस यही होता है कि उससे कहते है, 'हो जा!' और वह हो जाती है ([१६] अन नहल: 40)Tafseer (तफ़सीर )