يُنْۢبِتُ لَكُمْ بِهِ الزَّرْعَ وَالزَّيْتُوْنَ وَالنَّخِيْلَ وَالْاَعْنَابَ وَمِنْ كُلِّ الثَّمَرٰتِۗ اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيَةً لِّقَوْمٍ يَّتَفَكَّرُوْنَ ١١
- yunbitu
- يُنۢبِتُ
- वो उगाता है
- lakum
- لَكُم
- तुम्हारे लिए
- bihi
- بِهِ
- साथ उसके
- l-zarʿa
- ٱلزَّرْعَ
- खेती
- wal-zaytūna
- وَٱلزَّيْتُونَ
- ज़ैतून
- wal-nakhīla
- وَٱلنَّخِيلَ
- और खजूर के दरख़्त
- wal-aʿnāba
- وَٱلْأَعْنَٰبَ
- और अंगूर
- wamin
- وَمِن
- और हर क़िस्म में से
- kulli
- كُلِّ
- और हर क़िस्म में से
- l-thamarāti
- ٱلثَّمَرَٰتِۗ
- फलों की
- inna
- إِنَّ
- यक़ीनन
- fī
- فِى
- इसमें
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- इसमें
- laāyatan
- لَءَايَةً
- अलबत्ता एक निशानी है
- liqawmin
- لِّقَوْمٍ
- उन लोगों के लिए
- yatafakkarūna
- يَتَفَكَّرُونَ
- जो ग़ौरो फ़िक्र करते हैं
और उसी से वह तुम्हारे लिए खेतियाँ उगाता है और ज़ैतून, खजूर, अंगूर और हर प्रकार के फल पैदा करता है। निश्चय ही सोच-विचार करनेवालों के लिए इसमें एक निशानी है ([१६] अन नहल: 11)Tafseer (तफ़सीर )
وَسَخَّرَ لَكُمُ الَّيْلَ وَالنَّهَارَۙ وَالشَّمْسَ وَالْقَمَرَ ۗوَالنُّجُوْمُ مُسَخَّرٰتٌۢ بِاَمْرِهٖ ۗاِنَّ فِي ذٰلِكَ لَاٰيٰتٍ لِّقَوْمٍ يَّعْقِلُوْنَۙ ١٢
- wasakhara
- وَسَخَّرَ
- और उसने मुसख़्ख़र किया
- lakumu
- لَكُمُ
- तुम्हारे लिए
- al-layla
- ٱلَّيْلَ
- रात
- wal-nahāra
- وَٱلنَّهَارَ
- और दिन को
- wal-shamsa
- وَٱلشَّمْسَ
- और सूरज
- wal-qamara
- وَٱلْقَمَرَۖ
- और चाँद को
- wal-nujūmu
- وَٱلنُّجُومُ
- और सितारे
- musakharātun
- مُسَخَّرَٰتٌۢ
- मुसख़्ख़र किए गए हैं
- bi-amrihi
- بِأَمْرِهِۦٓۗ
- उसके हुक्म से
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- fī
- فِى
- इसमें
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- इसमें
- laāyātin
- لَءَايَٰتٍ
- अलबत्ता निशानियाँ हैं
- liqawmin
- لِّقَوْمٍ
- उन लोगों के लिए
- yaʿqilūna
- يَعْقِلُونَ
- जो अक़्ल रखते हैं
और उसने तुम्हारे लिए रात और दिन को और सूर्य और चन्द्रमा को कार्यरत कर रखा है। और तारे भी उसी की आज्ञा से कार्यरत है - निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ है जो बुद्धि से काम लेते है- ([१६] अन नहल: 12)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَا ذَرَاَ لَكُمْ فِى الْاَرْضِ مُخْتَلِفًا اَلْوَانُهٗ ۗاِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيَةً لِّقَوْمٍ يَّذَّكَّرُوْنَ ١٣
- wamā
- وَمَا
- और जो कुछ
- dhara-a
- ذَرَأَ
- उसने फैला दिया
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हारे लिए
- fī
- فِى
- ज़मीन में
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में
- mukh'talifan
- مُخْتَلِفًا
- मुख़्तलिफ़ हैं
- alwānuhu
- أَلْوَٰنُهُۥٓۗ
- रंग उसके
- inna
- إِنَّ
- यक़ीनन
- fī
- فِى
- उसमें
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- उसमें
- laāyatan
- لَءَايَةً
- अलबत्ता एक निशानी है
- liqawmin
- لِّقَوْمٍ
- उन लोगों के लिए
- yadhakkarūna
- يَذَّكَّرُونَ
- जो नसीहत पकड़ते हैं
और धरती में तुम्हारे लिए जो रंग-बिरंग की चीज़े बिखेर रखी है, उसमें भी उन लोगों के लिए बड़ी निशानी है जो शिक्षा लेनेवाले है ([१६] अन नहल: 13)Tafseer (तफ़सीर )
وَهُوَ الَّذِيْ سَخَّرَ الْبَحْرَ لِتَأْكُلُوْا مِنْهُ لَحْمًا طَرِيًّا وَّتَسْتَخْرِجُوْا مِنْهُ حِلْيَةً تَلْبَسُوْنَهَاۚ وَتَرَى الْفُلْكَ مَوَاخِرَ فِيْهِ وَلِتَبْتَغُوْا مِنْ فَضْلِهٖ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُوْنَ ١٤
- wahuwa
- وَهُوَ
- और वो ही है
- alladhī
- ٱلَّذِى
- जिसने
- sakhara
- سَخَّرَ
- मुसख़्ख़र किया
- l-baḥra
- ٱلْبَحْرَ
- समुन्दर को
- litakulū
- لِتَأْكُلُوا۟
- ताकि तुम खाओ
- min'hu
- مِنْهُ
- उससे
- laḥman
- لَحْمًا
- गोश्त
- ṭariyyan
- طَرِيًّا
- ताज़ा
- watastakhrijū
- وَتَسْتَخْرِجُوا۟
- और तुम निकालो
- min'hu
- مِنْهُ
- उससे
- ḥil'yatan
- حِلْيَةً
- ज़ेवर
- talbasūnahā
- تَلْبَسُونَهَا
- तुम पहनते हो उसे
- watarā
- وَتَرَى
- और तुम देखते हो
- l-ful'ka
- ٱلْفُلْكَ
- कश्तियाँ
- mawākhira
- مَوَاخِرَ
- कि फाड़ने वाली हैं
- fīhi
- فِيهِ
- उसमें
- walitabtaghū
- وَلِتَبْتَغُوا۟
- और ताकि तुम तलाश करो
- min
- مِن
- उसके फ़ज़ल में से
- faḍlihi
- فَضْلِهِۦ
- उसके फ़ज़ल में से
- walaʿallakum
- وَلَعَلَّكُمْ
- और ताकि तुम
- tashkurūna
- تَشْكُرُونَ
- तुम शुक्र अदा करो
वही तो है जिसने समुद्र को वश में किया है, ताकि तुम उससे ताज़ा मांस लेकर खाओ और उससे आभूषण निकालो, जिसे तुम पहनते हो। तुम देखते ही हो कि नौकाएँ उसको चीरती हुई चलती हैं (ताकि तुम सफ़र कर सको) और ताकि तुम उसका अनुग्रह तलाश करो और ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ ([१६] अन नहल: 14)Tafseer (तफ़सीर )
وَاَلْقٰى فِى الْاَرْضِ رَوَاسِيَ اَنْ تَمِيْدَ بِكُمْ وَاَنْهٰرًا وَّسُبُلًا لَّعَلَّكُمْ تَهْتَدُوْنَۙ ١٥
- wa-alqā
- وَأَلْقَىٰ
- और उसने डाल दिए
- fī
- فِى
- ज़मीन में
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में
- rawāsiya
- رَوَٰسِىَ
- पहाड़
- an
- أَن
- कि
- tamīda
- تَمِيدَ
- वो ढुलक जाए (ना)
- bikum
- بِكُمْ
- तुम्हें लेकर
- wa-anhāran
- وَأَنْهَٰرًا
- और नहरें
- wasubulan
- وَسُبُلًا
- और रास्ते
- laʿallakum
- لَّعَلَّكُمْ
- ताकि तुम
- tahtadūna
- تَهْتَدُونَ
- तुम हिदायत पा जाओ
और उसने धरती में अटल पहाड़ डाल दिए, कि वह तुम्हें लेकर झुक न पड़े। और नदियाँ बनाई और प्राकृतिक मार्ग बनाए, ताकि तुम मार्ग पा सको ([१६] अन नहल: 15)Tafseer (तफ़सीर )
وَعَلٰمٰتٍۗ وَبِالنَّجْمِ هُمْ يَهْتَدُوْنَ ١٦
- waʿalāmātin
- وَعَلَٰمَٰتٍۚ
- और अलामात (रखदीं)
- wabil-najmi
- وَبِٱلنَّجْمِ
- और साथ सितारों के
- hum
- هُمْ
- वो
- yahtadūna
- يَهْتَدُونَ
- वो राह पाते हैं
और मार्ग चिन्ह भी बनाए और तारों के द्वारा भी लोग मार्ग पर लेते है ([१६] अन नहल: 16)Tafseer (तफ़सीर )
اَفَمَنْ يَّخْلُقُ كَمَنْ لَّا يَخْلُقُۗ اَفَلَا تَذَكَّرُوْنَ ١٧
- afaman
- أَفَمَن
- क्या भला वो जो
- yakhluqu
- يَخْلُقُ
- पैदा करता है
- kaman
- كَمَن
- मानिन्द उसके है जो
- lā
- لَّا
- नहीं पैदा करता
- yakhluqu
- يَخْلُقُۗ
- नहीं पैदा करता
- afalā
- أَفَلَا
- क्या भला नहीं
- tadhakkarūna
- تَذَكَّرُونَ
- तुम नसीहत पकड़ते
फिर क्या जो पैदा करता है वह उस जैसा हो सकता है, जो पैदा नहीं करता? फिर क्या तुम्हें होश नहीं होता? ([१६] अन नहल: 17)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِنْ تَعُدُّوْا نِعْمَةَ اللّٰهِ لَا تُحْصُوْهَا ۗاِنَّ اللّٰهَ لَغَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ ١٨
- wa-in
- وَإِن
- और अगर
- taʿuddū
- تَعُدُّوا۟
- तुम गिनना चाहो
- niʿ'mata
- نِعْمَةَ
- नेअमतों को
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की
- lā
- لَا
- नहीं तुम शुमार कर सकते उन्हें
- tuḥ'ṣūhā
- تُحْصُوهَآۗ
- नहीं तुम शुमार कर सकते उन्हें
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- laghafūrun
- لَغَفُورٌ
- अलबत्ता बहुत बख़्ने वाला है
- raḥīmun
- رَّحِيمٌ
- निहायत रहम करने वाला है
और यदि तुम अल्लाह की नेमतों (कृपादानों) को गिनना चाहो तो उन्हें पूर्ण-रूप से गिन नहीं सकते। निस्संदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है ([१६] अन नहल: 18)Tafseer (तफ़सीर )
وَاللّٰهُ يَعْلَمُ مَا تُسِرُّوْنَ وَمَا تُعْلِنُوْنَ ١٩
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- yaʿlamu
- يَعْلَمُ
- जानता है
- mā
- مَا
- जो कुछ
- tusirrūna
- تُسِرُّونَ
- तुम छुपाते हो
- wamā
- وَمَا
- और जो कुछ
- tuʿ'linūna
- تُعْلِنُونَ
- तुम ज़ाहिर करते हो
और अल्लाह जानता है जो कुछ तुम छिपाते हो और जो कुछ प्रकट करते हो ([१६] अन नहल: 19)Tafseer (तफ़सीर )
وَالَّذِيْنَ يَدْعُوْنَ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ لَا يَخْلُقُوْنَ شَيْـًٔا وَّهُمْ يُخْلَقُوْنَۗ ٢٠
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और जिन्हें
- yadʿūna
- يَدْعُونَ
- वो पुकारते हैं
- min
- مِن
- सिवाय
- dūni
- دُونِ
- सिवाय
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- lā
- لَا
- नहीं वो पैदा कर सकते
- yakhluqūna
- يَخْلُقُونَ
- नहीं वो पैदा कर सकते
- shayan
- شَيْـًٔا
- कोई चीज़
- wahum
- وَهُمْ
- और वो
- yukh'laqūna
- يُخْلَقُونَ
- वो पैदा किए जाते हैं
और जिन्हें वे अल्लाह से हटकर पुकारते है वे किसी चीज़ को भी पैदा नहीं करते, बल्कि वे स्वयं पैदा किए जाते है ([१६] अन नहल: 20)Tafseer (तफ़सीर )