وَاِذَا بَدَّلْنَآ اٰيَةً مَّكَانَ اٰيَةٍ ۙوَّاللّٰهُ اَعْلَمُ بِمَا يُنَزِّلُ قَالُوْٓا اِنَّمَآ اَنْتَ مُفْتَرٍۗ بَلْ اَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُوْنَ ١٠١
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- baddalnā
- بَدَّلْنَآ
- बदल देते हैं हम
- āyatan
- ءَايَةً
- किसी आयत को
- makāna
- مَّكَانَ
- जगह
- āyatin
- ءَايَةٍۙ
- आयत के
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- aʿlamu
- أَعْلَمُ
- ख़ूब जानता है
- bimā
- بِمَا
- उसको जो
- yunazzilu
- يُنَزِّلُ
- वो नाज़िल करता है
- qālū
- قَالُوٓا۟
- वो कहते हैं
- innamā
- إِنَّمَآ
- बेशक
- anta
- أَنتَ
- तू
- muf'tarin
- مُفْتَرٍۭۚ
- गढ़ने वाला है
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- aktharuhum
- أَكْثَرُهُمْ
- अक्सर उनके
- lā
- لَا
- नहीं वो जानते
- yaʿlamūna
- يَعْلَمُونَ
- नहीं वो जानते
जब हम किसी आयत की जगह दूसरी आयत बदलकर लाते है - और अल्लाह भली-भाँति जानता है जो कुछ वह अवतरित करता है - तो वे कहते है, 'तुम स्वयं ही घड़ लेते हो!' नहीं, बल्कि उनमें से अधिकतर लोग नहीं जानते ([१६] अन नहल: 101)Tafseer (तफ़सीर )
قُلْ نَزَّلَهٗ رُوْحُ الْقُدُسِ مِنْ رَّبِّكَ بِالْحَقِّ لِيُثَبِّتَ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَهُدًى وَّبُشْرٰى لِلْمُسْلِمِيْنَ ١٠٢
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- nazzalahu
- نَزَّلَهُۥ
- नाज़िल किया है उसे
- rūḥu
- رُوحُ
- रूहल क़ुदुस ने
- l-qudusi
- ٱلْقُدُسِ
- रूहल क़ुदुस ने
- min
- مِن
- आपके रब की तरफ़ से
- rabbika
- رَّبِّكَ
- आपके रब की तरफ़ से
- bil-ḥaqi
- بِٱلْحَقِّ
- साथ हक़ के
- liyuthabbita
- لِيُثَبِّتَ
- ताकि वो साबित क़दम रखे
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन्हें जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- wahudan
- وَهُدًى
- और हिदायत
- wabush'rā
- وَبُشْرَىٰ
- और ख़ुशख़बरी
- lil'mus'limīna
- لِلْمُسْلِمِينَ
- मुसलमानों के लिए
कह दो, 'इसे ता पवित्र आत्मा ने तुम्हारे रब की ओर क्रमशः सत्य के साथ उतारा है, ताकि ईमान लानेवालों को जमाव प्रदान करे और आज्ञाकारियों के लिए मार्गदर्शन और शुभ सूचना हो ([१६] अन नहल: 102)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَقَدْ نَعْلَمُ اَنَّهُمْ يَقُوْلُوْنَ اِنَّمَا يُعَلِّمُهٗ بَشَرٌۗ لِسَانُ الَّذِيْ يُلْحِدُوْنَ اِلَيْهِ اَعْجَمِيٌّ وَّهٰذَا لِسَانٌ عَرَبِيٌّ مُّبِيْنٌ ١٠٣
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- naʿlamu
- نَعْلَمُ
- हम जानते हैं
- annahum
- أَنَّهُمْ
- बेशक वो
- yaqūlūna
- يَقُولُونَ
- वो कहते हैं
- innamā
- إِنَّمَا
- बेशक
- yuʿallimuhu
- يُعَلِّمُهُۥ
- सिखाता है उसे
- basharun
- بَشَرٌۗ
- एक इन्सान
- lisānu
- لِّسَانُ
- ज़बान
- alladhī
- ٱلَّذِى
- उसकी
- yul'ḥidūna
- يُلْحِدُونَ
- वो ग़लत निस्बत करते हैं
- ilayhi
- إِلَيْهِ
- तरफ़ जिसके
- aʿjamiyyun
- أَعْجَمِىٌّ
- अजमी है
- wahādhā
- وَهَٰذَا
- और ये
- lisānun
- لِسَانٌ
- ज़बान है
- ʿarabiyyun
- عَرَبِىٌّ
- अरबी
- mubīnun
- مُّبِينٌ
- वाज़ेह
हमें मालूम है कि वे कहते है, 'उसको तो बस एक आदमी सिखाता पढ़ाता है।' हालाँकि जिसकी ओर वे संकेत करते है उसकी भाषा विदेशी है और यह स्पष्ट अरबी भाषा है ([१६] अन नहल: 103)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّ الَّذِيْنَ لَا يُؤْمِنُوْنَ بِاٰيٰتِ اللّٰهِۙ لَا يَهْدِيْهِمُ اللّٰهُ وَلَهُمْ عَذَابٌ اَلِيْمٌ ١٠٤
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जो
- lā
- لَا
- नहीं ईमान लाते
- yu'minūna
- يُؤْمِنُونَ
- नहीं ईमान लाते
- biāyāti
- بِـَٔايَٰتِ
- साथ अल्लाह की आयात के
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- साथ अल्लाह की आयात के
- lā
- لَا
- नहीं हिदायत देता उन्हें
- yahdīhimu
- يَهْدِيهِمُ
- नहीं हिदायत देता उन्हें
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- walahum
- وَلَهُمْ
- और उनके लिए है
- ʿadhābun
- عَذَابٌ
- अज़ाब
- alīmun
- أَلِيمٌ
- दर्दनाक
सच्ची बात यह है कि जो लोग अल्लाह की आयतों को नहीं मानते, अल्लाह उनका मार्गदर्शन नहीं करता। उनके लिए तो एक दुखद यातना है ([१६] अन नहल: 104)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّمَا يَفْتَرِى الْكَذِبَ الَّذِيْنَ لَا يُؤْمِنُوْنَ بِاٰيٰتِ اللّٰهِۚ وَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْكٰذِبُوْنَ ١٠٥
- innamā
- إِنَّمَا
- बेशक
- yaftarī
- يَفْتَرِى
- गढ़ लेते हैं
- l-kadhiba
- ٱلْكَذِبَ
- झूठ को
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जो
- lā
- لَا
- नहीं ईमान लाते
- yu'minūna
- يُؤْمِنُونَ
- नहीं ईमान लाते
- biāyāti
- بِـَٔايَٰتِ
- साथ आयात के
- l-lahi
- ٱللَّهِۖ
- अल्लाह की
- wa-ulāika
- وَأُو۟لَٰٓئِكَ
- और यही लोग हैं
- humu
- هُمُ
- वो
- l-kādhibūna
- ٱلْكَٰذِبُونَ
- जो झूठे हैं
झूठ तो बस वही लोग घड़ते है जो अल्लाह की आयतों को मानते नहीं और वही है जो झूठे है ([१६] अन नहल: 105)Tafseer (तफ़सीर )
مَنْ كَفَرَ بِاللّٰهِ مِنْۢ بَعْدِ اِيْمَانِهٖٓ اِلَّا مَنْ اُكْرِهَ وَقَلْبُهٗ مُطْمَىِٕنٌّۢ بِالْاِيْمَانِ وَلٰكِنْ مَّنْ شَرَحَ بِالْكُفْرِ صَدْرًا فَعَلَيْهِمْ غَضَبٌ مِّنَ اللّٰهِ ۗوَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِيْمٌ ١٠٦
- man
- مَن
- जो कोई
- kafara
- كَفَرَ
- कुफ़्र करे
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- साथ अल्लाह के
- min
- مِنۢ
- बाद
- baʿdi
- بَعْدِ
- बाद
- īmānihi
- إِيمَٰنِهِۦٓ
- अपने ईमान लाने के
- illā
- إِلَّا
- सिवाय
- man
- مَنْ
- उसके जो
- uk'riha
- أُكْرِهَ
- मजबूर किया गया
- waqalbuhu
- وَقَلْبُهُۥ
- और दिल उसका
- muṭ'ma-innun
- مُطْمَئِنٌّۢ
- मुत्मइन है
- bil-īmāni
- بِٱلْإِيمَٰنِ
- ईमान पर
- walākin
- وَلَٰكِن
- और लेकिन
- man
- مَّن
- जो कोई
- sharaḥa
- شَرَحَ
- खोल दे
- bil-kuf'ri
- بِٱلْكُفْرِ
- कुफ़्र के लिए
- ṣadran
- صَدْرًا
- सीना
- faʿalayhim
- فَعَلَيْهِمْ
- तो उन पर
- ghaḍabun
- غَضَبٌ
- ग़ज़ब है
- mina
- مِّنَ
- अल्लाह की तरफ़ से
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की तरफ़ से
- walahum
- وَلَهُمْ
- और उनके लिए है
- ʿadhābun
- عَذَابٌ
- अज़ाब
- ʿaẓīmun
- عَظِيمٌ
- बहुत बड़ा
जिस किसी ने अपने ईमान के पश्चात अल्लाह के साथ कुफ़्र किया -सिवाय उसके जो इसके लिए विवश कर दिया गया हो और दिल उसका ईमान पर सन्तुष्ट हो - बल्कि वह जिसने सीना कुफ़्र के लिए खोल दिया हो, तो ऐसे लोगो पर अल्लाह का प्रकोप है और उनके लिए बड़ी यातना है ([१६] अन नहल: 106)Tafseer (तफ़सीर )
ذٰلِكَ بِاَنَّهُمُ اسْتَحَبُّوا الْحَيٰوةَ الدُّنْيَا عَلَى الْاٰخِرَةِۙ وَاَنَّ اللّٰهَ لَا يَهْدِى الْقَوْمَ الْكٰفِرِيْنَ ١٠٧
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- ये
- bi-annahumu
- بِأَنَّهُمُ
- बवजह उसके कि वो
- is'taḥabbū
- ٱسْتَحَبُّوا۟
- उन्होंने तरजीह दी
- l-ḥayata
- ٱلْحَيَوٰةَ
- ज़िन्दगी को
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَا
- दुनिया की
- ʿalā
- عَلَى
- आख़िरत पर
- l-ākhirati
- ٱلْءَاخِرَةِ
- आख़िरत पर
- wa-anna
- وَأَنَّ
- और बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- lā
- لَا
- नहीं हिदायत देता
- yahdī
- يَهْدِى
- नहीं हिदायत देता
- l-qawma
- ٱلْقَوْمَ
- उन लोगों को
- l-kāfirīna
- ٱلْكَٰفِرِينَ
- जो काफ़िर हैं
यह इसलिए कि उन्होंने आख़िरत की अपेक्षा सांसारिक जीवन को पसन्द किया और यह कि अल्लाह कुफ़्र करनेवालो लोगों का मार्गदर्शन नहीं करता ([१६] अन नहल: 107)Tafseer (तफ़सीर )
اُولٰۤىِٕكَ الَّذِيْنَ طَبَعَ اللّٰهُ عَلٰى قُلُوْبِهِمْ وَسَمْعِهِمْ وَاَبْصَارِهِمْۗ وَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْغٰفِلُوْنَ ١٠٨
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही लोग हैं
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- ṭabaʿa
- طَبَعَ
- मोहर लगादी
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- ʿalā
- عَلَىٰ
- ऊपर
- qulūbihim
- قُلُوبِهِمْ
- उनके दिलों के
- wasamʿihim
- وَسَمْعِهِمْ
- और उनके कानों के
- wa-abṣārihim
- وَأَبْصَٰرِهِمْۖ
- और उनकी आँखों के
- wa-ulāika
- وَأُو۟لَٰٓئِكَ
- और यही लोग हैं
- humu
- هُمُ
- वो
- l-ghāfilūna
- ٱلْغَٰفِلُونَ
- जो ग़ाफ़िल हैं
वही लोग है जिनके दिलों और जिनके कानों और जिनकी आँखों पर अल्लाह ने मुहर लगा दी है; और वही है जो ग़फ़लत में पड़े हुए है ([१६] अन नहल: 108)Tafseer (तफ़सीर )
لَا جَرَمَ اَنَّهُمْ فِى الْاٰخِرَةِ هُمُ الْخٰسِرُوْنَ ١٠٩
- lā
- لَا
- नहीं कोई शक
- jarama
- جَرَمَ
- नहीं कोई शक
- annahum
- أَنَّهُمْ
- यक़ीनन वो
- fī
- فِى
- आख़िरत में
- l-ākhirati
- ٱلْءَاخِرَةِ
- आख़िरत में
- humu
- هُمُ
- वो ही
- l-khāsirūna
- ٱلْخَٰسِرُونَ
- ख़सारा पाने वाले हैं
निश्चय ही आख़िरत में वही घाटे में रहेंगे ([१६] अन नहल: 109)Tafseer (तफ़सीर )
ثُمَّ اِنَّ رَبَّكَ لِلَّذِيْنَ هَاجَرُوْا مِنْۢ بَعْدِ مَا فُتِنُوْا ثُمَّ جَاهَدُوْا وَصَبَرُوْاۚ اِنَّ رَبَّكَ مِنْۢ بَعْدِهَا لَغَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ ࣖ ١١٠
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- rabbaka
- رَبَّكَ
- रब आपका
- lilladhīna
- لِلَّذِينَ
- उनके लिए जिन्होंने
- hājarū
- هَاجَرُوا۟
- हिजरत की
- min
- مِنۢ
- बाद इसके
- baʿdi
- بَعْدِ
- बाद इसके
- mā
- مَا
- जो
- futinū
- فُتِنُوا۟
- वो आज़माइश में डाले गए
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- jāhadū
- جَٰهَدُوا۟
- उन्होंने जिहाद किया
- waṣabarū
- وَصَبَرُوٓا۟
- और उन्होंने सबर किया
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- rabbaka
- رَبَّكَ
- रब आपका
- min
- مِنۢ
- बाद इसके
- baʿdihā
- بَعْدِهَا
- बाद इसके
- laghafūrun
- لَغَفُورٌ
- अलबत्ता बहुत बख़्शने वाला है
- raḥīmun
- رَّحِيمٌ
- निहायत रहम करने वाला है
फिर तुम्हारा रब उन लोगों के लिए जिन्होंने इसके उपरान्त कि वे आज़माइश में पड़ चुके थे घर-बार छोड़ा, फिर जिहाद (संघर्ष) किया और जमे रहे तो इन बातों के पश्चात तो निश्चय ही तुम्हारा रब बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है ([१६] अन नहल: 110)Tafseer (तफ़सीर )