७१
قَالَ هٰٓؤُلَاۤءِ بَنٰتِيْٓ اِنْ كُنْتُمْ فٰعِلِيْنَۗ ٧١
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- hāulāi
- هَٰٓؤُلَآءِ
- ये
- banātī
- بَنَاتِىٓ
- बेटियाँ हैं मेरी
- in
- إِن
- अगर
- kuntum
- كُنتُمْ
- हो तुम
- fāʿilīna
- فَٰعِلِينَ
- करने वाले
उसने कहा, 'तुमको यदि कुछ करना है, तो ये मेरी (क़ौम की) बेटियाँ (विधितः विवाह के लिए) मौजूद है।' ([१५] अल हिज्र: 71)Tafseer (तफ़सीर )
७२
لَعَمْرُكَ اِنَّهُمْ لَفِيْ سَكْرَتِهِمْ يَعْمَهُوْنَ ٧٢
- laʿamruka
- لَعَمْرُكَ
- आपकी ज़िन्दगी की क़सम
- innahum
- إِنَّهُمْ
- बेशक वो
- lafī
- لَفِى
- अलबत्ता अपने नशे में
- sakratihim
- سَكْرَتِهِمْ
- अलबत्ता अपने नशे में
- yaʿmahūna
- يَعْمَهُونَ
- वो बहक रहे थे
तुम्हारे जीवन की सौगन्ध, वे अपनी मस्ती में खोए हुए थे, ([१५] अल हिज्र: 72)Tafseer (तफ़सीर )
७३
فَاَخَذَتْهُمُ الصَّيْحَةُ مُشْرِقِيْنَۙ ٧٣
- fa-akhadhathumu
- فَأَخَذَتْهُمُ
- तो पकड़ लिया उन्हें
- l-ṣayḥatu
- ٱلصَّيْحَةُ
- एक चिंघाड़ ने
- mush'riqīna
- مُشْرِقِينَ
- सुरज तुलू होते वक़्त
अन्ततः पौ फटते-फटते एक भयंकर आवाज़ ने उन्हें आ लिया, ([१५] अल हिज्र: 73)Tafseer (तफ़सीर )
७४
فَجَعَلْنَا عَالِيَهَا سَافِلَهَا وَاَمْطَرْنَا عَلَيْهِمْ حِجَارَةً مِّنْ سِجِّيْلٍ ٧٤
- fajaʿalnā
- فَجَعَلْنَا
- तो करदिया हमने
- ʿāliyahā
- عَٰلِيَهَا
- ऊपर वाला उसका
- sāfilahā
- سَافِلَهَا
- निचला उसका
- wa-amṭarnā
- وَأَمْطَرْنَا
- और बरसाए हमने
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- ḥijāratan
- حِجَارَةً
- पत्थर
- min
- مِّن
- पकी हुई मिट्टी के
- sijjīlin
- سِجِّيلٍ
- पकी हुई मिट्टी के
और हमने उस बस्ती को तलपट कर दिया, और उनपर कंकरीले पत्थर बरसाए ([१५] अल हिज्र: 74)Tafseer (तफ़सीर )
७५
اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيٰتٍ لِّلْمُتَوَسِّمِيْنَۙ ٧٥
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- fī
- فِى
- उसमें
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- उसमें
- laāyātin
- لَءَايَٰتٍ
- अलबत्ता निशानियाँ हैं
- lil'mutawassimīna
- لِّلْمُتَوَسِّمِينَ
- गहरी नज़र से देखने वालों के लिए
निश्चय ही इसमें भापनेवालों के लिए निशानियाँ है ([१५] अल हिज्र: 75)Tafseer (तफ़सीर )
७६
وَاِنَّهَا لَبِسَبِيْلٍ مُّقِيْمٍ ٧٦
- wa-innahā
- وَإِنَّهَا
- और बेशक वो
- labisabīlin
- لَبِسَبِيلٍ
- अलबत्ता एसे रास्ते पर है
- muqīmin
- مُّقِيمٍ
- जो क़ायम है
और वह (बस्ती) सार्वजनिक मार्ग पर है ([१५] अल हिज्र: 76)Tafseer (तफ़सीर )
७७
اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيَةً لِّلْمُؤْمِنِيْنَۗ ٧٧
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- fī
- فِى
- उसमें
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- उसमें
- laāyatan
- لَءَايَةً
- अलबत्ता एक निशानी है
- lil'mu'minīna
- لِّلْمُؤْمِنِينَ
- ईमान वालों के लिए
निश्चय ही इसमें मोमिनों के लिए एक बड़ी निशानी है ([१५] अल हिज्र: 77)Tafseer (तफ़सीर )
७८
وَاِنْ كَانَ اَصْحٰبُ الْاَيْكَةِ لَظٰلِمِيْنَۙ ٧٨
- wa-in
- وَإِن
- और बेशक
- kāna
- كَانَ
- थे
- aṣḥābu
- أَصْحَٰبُ
- ऐका/जंगल वाले
- l-aykati
- ٱلْأَيْكَةِ
- ऐका/जंगल वाले
- laẓālimīna
- لَظَٰلِمِينَ
- अलबत्ता ज़ालिम
और निश्चय ही ऐसा वाले भी अत्याचारी थे, ([१५] अल हिज्र: 78)Tafseer (तफ़सीर )
७९
فَانْتَقَمْنَا مِنْهُمْۘ وَاِنَّهُمَا لَبِاِمَامٍ مُّبِيْنٍۗ ࣖ ٧٩
- fa-intaqamnā
- فَٱنتَقَمْنَا
- तो इन्तिक़ाम लिया हमने
- min'hum
- مِنْهُمْ
- उनसे
- wa-innahumā
- وَإِنَّهُمَا
- और बेशक वो दोनों हैं
- labi-imāmin
- لَبِإِمَامٍ
- अलबत्ता रास्ते पर
- mubīnin
- مُّبِينٍ
- वाज़ेह
फिर हमने उनसे भी बदला लिया, और ये दोनों (भू-भाग) खुले मार्ग पर स्थित है ([१५] अल हिज्र: 79)Tafseer (तफ़सीर )
८०
وَلَقَدْ كَذَّبَ اَصْحٰبُ الْحِجْرِ الْمُرْسَلِيْنَۙ ٨٠
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- kadhaba
- كَذَّبَ
- झुठलाया
- aṣḥābu
- أَصْحَٰبُ
- हिज्र वालों ने
- l-ḥij'ri
- ٱلْحِجْرِ
- हिज्र वालों ने
- l-mur'salīna
- ٱلْمُرْسَلِينَ
- रसूलों को
हिज्रवाले भी रसूलों को झुठला चुके है ([१५] अल हिज्र: 80)Tafseer (तफ़सीर )