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सूरा अल हिज्र - Page: 7

Al-Hijr

(पथरीली ज़मीन, पत्थरों का नगर)

६१

فَلَمَّا جَاۤءَ اٰلَ لُوْطِ ِۨالْمُرْسَلُوْنَۙ ٦١

falammā
فَلَمَّا
तो जब
jāa
جَآءَ
आगए
āla
ءَالَ
आले लूत (के पास)
lūṭin
لُوطٍ
आले लूत (के पास)
l-mur'salūna
ٱلْمُرْسَلُونَ
भेजे हुए (फरिश्ते)
फिर जब ये दूत लूत के यहाँ पहुँचे, ([१५] अल हिज्र: 61)
Tafseer (तफ़सीर )
६२

قَالَ اِنَّكُمْ قَوْمٌ مُّنْكَرُوْنَ ٦٢

qāla
قَالَ
उसने कहा
innakum
إِنَّكُمْ
बेशक तुम
qawmun
قَوْمٌ
एक क़ौम हो
munkarūna
مُّنكَرُونَ
अजनबी
तो उसने कहा, 'तुम तो अपरिचित लोग हो।' ([१५] अल हिज्र: 62)
Tafseer (तफ़सीर )
६३

قَالُوْا بَلْ جِئْنٰكَ بِمَا كَانُوْا فِيْهِ يَمْتَرُوْنَ ٦٣

qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
bal
بَلْ
बल्कि
ji'nāka
جِئْنَٰكَ
लाए हैं हम तेरे पास
bimā
بِمَا
वो जो
kānū
كَانُوا۟
थे वो
fīhi
فِيهِ
जिसमें
yamtarūna
يَمْتَرُونَ
वो शक करते
उन्होंने कहा, 'नहीं, बल्कि हम तो तुम्हारे पास वही चीज़ लेकर आए है, जिसके विषय में वे सन्देह कर रहे थे ([१५] अल हिज्र: 63)
Tafseer (तफ़सीर )
६४

وَاَتَيْنٰكَ بِالْحَقِّ وَاِنَّا لَصٰدِقُوْنَ ٦٤

wa-ataynāka
وَأَتَيْنَٰكَ
और लाए हैं हम तेरे पास
bil-ḥaqi
بِٱلْحَقِّ
हक़ को
wa-innā
وَإِنَّا
और बेशक हम
laṣādiqūna
لَصَٰدِقُونَ
अलबत्ता सच्चे हैं
और हम तुम्हारे पास यक़ीनी चीज़ लेकर आए है, और हम बिलकुल सच कह रहे है ([१५] अल हिज्र: 64)
Tafseer (तफ़सीर )
६५

فَاَسْرِ بِاَهْلِكَ بِقِطْعٍ مِّنَ الَّيْلِ وَاتَّبِعْ اَدْبَارَهُمْ وَلَا يَلْتَفِتْ مِنْكُمْ اَحَدٌ وَّامْضُوْا حَيْثُ تُؤْمَرُوْنَ ٦٥

fa-asri
فَأَسْرِ
पस ले चलो
bi-ahlika
بِأَهْلِكَ
अपने घर वालों को
biqiṭ'ʿin
بِقِطْعٍ
एक हिस्से में
mina
مِّنَ
रात के
al-layli
ٱلَّيْلِ
रात के
wa-ittabiʿ
وَٱتَّبِعْ
और चलते चलो
adbārahum
أَدْبَٰرَهُمْ
पीछे उनके
walā
وَلَا
और ना
yaltafit
يَلْتَفِتْ
पीछे मुड़कर देखे
minkum
مِنكُمْ
तुम में से
aḥadun
أَحَدٌ
कोई एक भी
wa-im'ḍū
وَٱمْضُوا۟
और चलते जाओ
ḥaythu
حَيْثُ
जहाँ का
tu'marūna
تُؤْمَرُونَ
तुम हुक्म दिए जाते हो
अतएव अब तुम अपने घरवालों को लेकर रात्रि के किसी हिस्से में निकल जाओ, और स्वयं उन सबके पीछे-पीछे चलो। और तुममें से कोई भी पीछे मुड़कर न देखे। बस चले जाओ, जिधर का तुम्हे आदेश है।' ([१५] अल हिज्र: 65)
Tafseer (तफ़सीर )
६६

وَقَضَيْنَآ اِلَيْهِ ذٰلِكَ الْاَمْرَ اَنَّ دَابِرَ هٰٓؤُلَاۤءِ مَقْطُوْعٌ مُّصْبِحِيْنَ ٦٦

waqaḍaynā
وَقَضَيْنَآ
और फ़ैसला पहुँचा दिया हमने
ilayhi
إِلَيْهِ
तरफ़ उसके
dhālika
ذَٰلِكَ
उस
l-amra
ٱلْأَمْرَ
मामले का
anna
أَنَّ
बेशक
dābira
دَابِرَ
जड़
hāulāi
هَٰٓؤُلَآءِ
उन लोगों की
maqṭūʿun
مَقْطُوعٌ
काटदी जाएगी
muṣ'biḥīna
مُّصْبِحِينَ
जबकि वो सुबह करने वाले होंगे
हमने उसे अपना यह फ़ैसला पहुँचा दिया कि प्रातः होते-होते उनकी जड़ कट चुकी होगी ([१५] अल हिज्र: 66)
Tafseer (तफ़सीर )
६७

وَجَاۤءَ اَهْلُ الْمَدِيْنَةِ يَسْتَبْشِرُوْنَ ٦٧

wajāa
وَجَآءَ
और आगए
ahlu
أَهْلُ
शहर वाले
l-madīnati
ٱلْمَدِينَةِ
शहर वाले
yastabshirūna
يَسْتَبْشِرُونَ
ख़ुशियाँ मनाते हुए
इतने में नगर के लोग ख़ुश-ख़ुश आ पहुँचे ([१५] अल हिज्र: 67)
Tafseer (तफ़सीर )
६८

قَالَ اِنَّ هٰٓؤُلَاۤءِ ضَيْفِيْ فَلَا تَفْضَحُوْنِۙ ٦٨

qāla
قَالَ
कह (लूत ने)
inna
إِنَّ
बेशक
hāulāi
هَٰٓؤُلَآءِ
ये लोग
ḍayfī
ضَيْفِى
मेहमान हैं मेरे
falā
فَلَا
पस ना
tafḍaḥūni
تَفْضَحُونِ
तुम रुस्वा करो मुझे
उसने कहा, 'ये मेरे अतिथि है। मेरी फ़ज़ीहत मत करना, ([१५] अल हिज्र: 68)
Tafseer (तफ़सीर )
६९

وَاتَّقُوا اللّٰهَ وَلَا تُخْزُوْنِ ٦٩

wa-ittaqū
وَٱتَّقُوا۟
और डरो
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह से
walā
وَلَا
और ना
tukh'zūni
تُخْزُونِ
तुम ज़लील करो मुझे
अल्लाह का डर ऱखो, मुझे रुसवा न करो।' ([१५] अल हिज्र: 69)
Tafseer (तफ़सीर )
७०

قَالُوْٓا اَوَلَمْ نَنْهَكَ عَنِ الْعٰلَمِيْنَ ٧٠

qālū
قَالُوٓا۟
उन्होंने कहा
awalam
أَوَلَمْ
क्या भला नहीं
nanhaka
نَنْهَكَ
हमने रोका था तुझे
ʿani
عَنِ
तमाम जहान वालों से
l-ʿālamīna
ٱلْعَٰلَمِينَ
तमाम जहान वालों से
उन्होंने कहा, 'क्या हमने तुम्हें दुनिया भर के लोगों का ज़िम्मा लेने से रोका नहीं था?' ([१५] अल हिज्र: 70)
Tafseer (तफ़सीर )