६१
فَلَمَّا جَاۤءَ اٰلَ لُوْطِ ِۨالْمُرْسَلُوْنَۙ ٦١
- falammā
- فَلَمَّا
- तो जब
- jāa
- جَآءَ
- आगए
- āla
- ءَالَ
- आले लूत (के पास)
- lūṭin
- لُوطٍ
- आले लूत (के पास)
- l-mur'salūna
- ٱلْمُرْسَلُونَ
- भेजे हुए (फरिश्ते)
फिर जब ये दूत लूत के यहाँ पहुँचे, ([१५] अल हिज्र: 61)Tafseer (तफ़सीर )
६२
قَالَ اِنَّكُمْ قَوْمٌ مُّنْكَرُوْنَ ٦٢
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- innakum
- إِنَّكُمْ
- बेशक तुम
- qawmun
- قَوْمٌ
- एक क़ौम हो
- munkarūna
- مُّنكَرُونَ
- अजनबी
तो उसने कहा, 'तुम तो अपरिचित लोग हो।' ([१५] अल हिज्र: 62)Tafseer (तफ़सीर )
६३
قَالُوْا بَلْ جِئْنٰكَ بِمَا كَانُوْا فِيْهِ يَمْتَرُوْنَ ٦٣
- qālū
- قَالُوا۟
- उन्होंने कहा
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- ji'nāka
- جِئْنَٰكَ
- लाए हैं हम तेरे पास
- bimā
- بِمَا
- वो जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- fīhi
- فِيهِ
- जिसमें
- yamtarūna
- يَمْتَرُونَ
- वो शक करते
उन्होंने कहा, 'नहीं, बल्कि हम तो तुम्हारे पास वही चीज़ लेकर आए है, जिसके विषय में वे सन्देह कर रहे थे ([१५] अल हिज्र: 63)Tafseer (तफ़सीर )
६४
وَاَتَيْنٰكَ بِالْحَقِّ وَاِنَّا لَصٰدِقُوْنَ ٦٤
- wa-ataynāka
- وَأَتَيْنَٰكَ
- और लाए हैं हम तेरे पास
- bil-ḥaqi
- بِٱلْحَقِّ
- हक़ को
- wa-innā
- وَإِنَّا
- और बेशक हम
- laṣādiqūna
- لَصَٰدِقُونَ
- अलबत्ता सच्चे हैं
और हम तुम्हारे पास यक़ीनी चीज़ लेकर आए है, और हम बिलकुल सच कह रहे है ([१५] अल हिज्र: 64)Tafseer (तफ़सीर )
६५
فَاَسْرِ بِاَهْلِكَ بِقِطْعٍ مِّنَ الَّيْلِ وَاتَّبِعْ اَدْبَارَهُمْ وَلَا يَلْتَفِتْ مِنْكُمْ اَحَدٌ وَّامْضُوْا حَيْثُ تُؤْمَرُوْنَ ٦٥
- fa-asri
- فَأَسْرِ
- पस ले चलो
- bi-ahlika
- بِأَهْلِكَ
- अपने घर वालों को
- biqiṭ'ʿin
- بِقِطْعٍ
- एक हिस्से में
- mina
- مِّنَ
- रात के
- al-layli
- ٱلَّيْلِ
- रात के
- wa-ittabiʿ
- وَٱتَّبِعْ
- और चलते चलो
- adbārahum
- أَدْبَٰرَهُمْ
- पीछे उनके
- walā
- وَلَا
- और ना
- yaltafit
- يَلْتَفِتْ
- पीछे मुड़कर देखे
- minkum
- مِنكُمْ
- तुम में से
- aḥadun
- أَحَدٌ
- कोई एक भी
- wa-im'ḍū
- وَٱمْضُوا۟
- और चलते जाओ
- ḥaythu
- حَيْثُ
- जहाँ का
- tu'marūna
- تُؤْمَرُونَ
- तुम हुक्म दिए जाते हो
अतएव अब तुम अपने घरवालों को लेकर रात्रि के किसी हिस्से में निकल जाओ, और स्वयं उन सबके पीछे-पीछे चलो। और तुममें से कोई भी पीछे मुड़कर न देखे। बस चले जाओ, जिधर का तुम्हे आदेश है।' ([१५] अल हिज्र: 65)Tafseer (तफ़सीर )
६६
وَقَضَيْنَآ اِلَيْهِ ذٰلِكَ الْاَمْرَ اَنَّ دَابِرَ هٰٓؤُلَاۤءِ مَقْطُوْعٌ مُّصْبِحِيْنَ ٦٦
- waqaḍaynā
- وَقَضَيْنَآ
- और फ़ैसला पहुँचा दिया हमने
- ilayhi
- إِلَيْهِ
- तरफ़ उसके
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- उस
- l-amra
- ٱلْأَمْرَ
- मामले का
- anna
- أَنَّ
- बेशक
- dābira
- دَابِرَ
- जड़
- hāulāi
- هَٰٓؤُلَآءِ
- उन लोगों की
- maqṭūʿun
- مَقْطُوعٌ
- काटदी जाएगी
- muṣ'biḥīna
- مُّصْبِحِينَ
- जबकि वो सुबह करने वाले होंगे
हमने उसे अपना यह फ़ैसला पहुँचा दिया कि प्रातः होते-होते उनकी जड़ कट चुकी होगी ([१५] अल हिज्र: 66)Tafseer (तफ़सीर )
६७
وَجَاۤءَ اَهْلُ الْمَدِيْنَةِ يَسْتَبْشِرُوْنَ ٦٧
- wajāa
- وَجَآءَ
- और आगए
- ahlu
- أَهْلُ
- शहर वाले
- l-madīnati
- ٱلْمَدِينَةِ
- शहर वाले
- yastabshirūna
- يَسْتَبْشِرُونَ
- ख़ुशियाँ मनाते हुए
इतने में नगर के लोग ख़ुश-ख़ुश आ पहुँचे ([१५] अल हिज्र: 67)Tafseer (तफ़सीर )
६८
قَالَ اِنَّ هٰٓؤُلَاۤءِ ضَيْفِيْ فَلَا تَفْضَحُوْنِۙ ٦٨
- qāla
- قَالَ
- कह (लूत ने)
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- hāulāi
- هَٰٓؤُلَآءِ
- ये लोग
- ḍayfī
- ضَيْفِى
- मेहमान हैं मेरे
- falā
- فَلَا
- पस ना
- tafḍaḥūni
- تَفْضَحُونِ
- तुम रुस्वा करो मुझे
उसने कहा, 'ये मेरे अतिथि है। मेरी फ़ज़ीहत मत करना, ([१५] अल हिज्र: 68)Tafseer (तफ़सीर )
६९
وَاتَّقُوا اللّٰهَ وَلَا تُخْزُوْنِ ٦٩
- wa-ittaqū
- وَٱتَّقُوا۟
- और डरो
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह से
- walā
- وَلَا
- और ना
- tukh'zūni
- تُخْزُونِ
- तुम ज़लील करो मुझे
अल्लाह का डर ऱखो, मुझे रुसवा न करो।' ([१५] अल हिज्र: 69)Tafseer (तफ़सीर )
७०
قَالُوْٓا اَوَلَمْ نَنْهَكَ عَنِ الْعٰلَمِيْنَ ٧٠
- qālū
- قَالُوٓا۟
- उन्होंने कहा
- awalam
- أَوَلَمْ
- क्या भला नहीं
- nanhaka
- نَنْهَكَ
- हमने रोका था तुझे
- ʿani
- عَنِ
- तमाम जहान वालों से
- l-ʿālamīna
- ٱلْعَٰلَمِينَ
- तमाम जहान वालों से
उन्होंने कहा, 'क्या हमने तुम्हें दुनिया भर के लोगों का ज़िम्मा लेने से रोका नहीं था?' ([१५] अल हिज्र: 70)Tafseer (तफ़सीर )