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सूरा अल हिज्र - Page: 5

Al-Hijr

(पथरीली ज़मीन, पत्थरों का नगर)

४१

قَالَ هٰذَا صِرَاطٌ عَلَيَّ مُسْتَقِيْمٌ ٤١

qāla
قَالَ
फ़रमाया
hādhā
هَٰذَا
ये
ṣirāṭun
صِرَٰطٌ
रास्ता है
ʿalayya
عَلَىَّ
मुझ तक
mus'taqīmun
مُسْتَقِيمٌ
सीधा
कहा, 'मुझ तक पहुँचने का यही सीधा मार्ग है, ([१५] अल हिज्र: 41)
Tafseer (तफ़सीर )
४२

اِنَّ عِبَادِيْ لَيْسَ لَكَ عَلَيْهِمْ سُلْطٰنٌ اِلَّا مَنِ اتَّبَعَكَ مِنَ الْغٰوِيْنَ ٤٢

inna
إِنَّ
बेशक
ʿibādī
عِبَادِى
मेर बन्दे
laysa
لَيْسَ
नहीं
laka
لَكَ
तेरे लिए
ʿalayhim
عَلَيْهِمْ
उन पर
sul'ṭānun
سُلْطَٰنٌ
कोई ज़ोर
illā
إِلَّا
मगर
mani
مَنِ
जो
ittabaʿaka
ٱتَّبَعَكَ
पैरवी करे तेरी
mina
مِنَ
बहके हुओं में से
l-ghāwīna
ٱلْغَاوِينَ
बहके हुओं में से
मेरे बन्दों पर तो तेरा कुछ ज़ोर न चलेगा, सिवाय उन बहके हुए लोगों को जो तेरे पीछे हो लें ([१५] अल हिज्र: 42)
Tafseer (तफ़सीर )
४३

وَاِنَّ جَهَنَّمَ لَمَوْعِدُهُمْ اَجْمَعِيْنَۙ ٤٣

wa-inna
وَإِنَّ
और बेशक
jahannama
جَهَنَّمَ
जहन्नम
lamawʿiduhum
لَمَوْعِدُهُمْ
अलबत्ता उनके वादे की जगह है
ajmaʿīna
أَجْمَعِينَ
सबके सबकी
निश्चय ही जहन्नम ही का ऐसे समस्त लोगों से वादा है ([१५] अल हिज्र: 43)
Tafseer (तफ़सीर )
४४

لَهَا سَبْعَةُ اَبْوَابٍۗ لِكُلِّ بَابٍ مِّنْهُمْ جُزْءٌ مَّقْسُوْمٌ ࣖ ٤٤

lahā
لَهَا
उसके
sabʿatu
سَبْعَةُ
सात
abwābin
أَبْوَٰبٍ
दरवाज़े हैं
likulli
لِّكُلِّ
वास्ते हर
bābin
بَابٍ
दरवाज़े के
min'hum
مِّنْهُمْ
उनमें से
juz'on
جُزْءٌ
एक हिस्सा है
maqsūmun
مَّقْسُومٌ
तक़सीम शुदा
उसके सात द्वार है। प्रत्येक द्वार के लिए एक ख़ास हिस्सा होगा।' ([१५] अल हिज्र: 44)
Tafseer (तफ़सीर )
४५

اِنَّ الْمُتَّقِيْنَ فِيْ جَنّٰتٍ وَّعُيُوْنٍۗ ٤٥

inna
إِنَّ
बेशक
l-mutaqīna
ٱلْمُتَّقِينَ
मुत्तक़ी लोग
فِى
बाग़ों में होंगे
jannātin
جَنَّٰتٍ
बाग़ों में होंगे
waʿuyūnin
وَعُيُونٍ
और चश्मों में
निस्संदेह डर रखनेवाले बाग़ों और स्रोतों में होंगे, ([१५] अल हिज्र: 45)
Tafseer (तफ़सीर )
४६

اُدْخُلُوْهَا بِسَلٰمٍ اٰمِنِيْنَ ٤٦

ud'khulūhā
ٱدْخُلُوهَا
दाख़िल हो जाओ इनमें
bisalāmin
بِسَلَٰمٍ
साथ सलामती के
āminīna
ءَامِنِينَ
अमन में रहने वाले
'प्रवेश करो इनमें निर्भयतापूर्वक सलामती के साथ!' ([१५] अल हिज्र: 46)
Tafseer (तफ़सीर )
४७

وَنَزَعْنَا مَا فِيْ صُدُوْرِهِمْ مِّنْ غِلٍّ اِخْوَانًا عَلٰى سُرُرٍ مُّتَقٰبِلِيْنَ ٤٧

wanazaʿnā
وَنَزَعْنَا
और निकाल देंगे हम
مَا
जो भी
فِى
उनके सीनों में है
ṣudūrihim
صُدُورِهِم
उनके सीनों में है
min
مِّنْ
कोई कीना
ghillin
غِلٍّ
कोई कीना
ikh'wānan
إِخْوَٰنًا
भाई-भाई बनकर
ʿalā
عَلَىٰ
तख़्तों पर
sururin
سُرُرٍ
तख़्तों पर
mutaqābilīna
مُّتَقَٰبِلِينَ
आमने-सामने (होंगे)
उनके सीनों में जो मन-मुटाव होगा उसे हम दूर कर देंगे। वे भाई-भाई बनकर आमने-सामने तख़्तों पर होंगे ([१५] अल हिज्र: 47)
Tafseer (तफ़सीर )
४८

لَا يَمَسُّهُمْ فِيْهَا نَصَبٌ وَّمَا هُمْ مِّنْهَا بِمُخْرَجِيْنَ ٤٨

لَا
ना छुएगी उन्हें
yamassuhum
يَمَسُّهُمْ
ना छुएगी उन्हें
fīhā
فِيهَا
उनमें
naṣabun
نَصَبٌ
कोई थकावट
wamā
وَمَا
और ना
hum
هُم
वो
min'hā
مِّنْهَا
उनसे
bimukh'rajīna
بِمُخْرَجِينَ
निकाले जाऐंगे
उन्हें वहाँ न तो कोई थकान और तकलीफ़ पहुँचेगी औऱ न वे वहाँ से कभी निकाले ही जाएँगे ([१५] अल हिज्र: 48)
Tafseer (तफ़सीर )
४९

۞ نَبِّئْ عِبَادِيْٓ اَنِّيْٓ اَنَا الْغَفُوْرُ الرَّحِيْمُۙ ٤٩

nabbi
نَبِّئْ
ख़बर दे दीजिए
ʿibādī
عِبَادِىٓ
मेर बन्दों को
annī
أَنِّىٓ
बेशक मैं
anā
أَنَا
मैं ही हूँ
l-ghafūru
ٱلْغَفُورُ
बहुत बख़्शने वाला
l-raḥīmu
ٱلرَّحِيمُ
बहुत रहम करने वाला
मेरे बन्दों को सूचित कर दो कि मैं अत्यन्त क्षमाशील, दयावान हूँ; ([१५] अल हिज्र: 49)
Tafseer (तफ़सीर )
५०

وَاَنَّ عَذَابِيْ هُوَ الْعَذَابُ الْاَلِيْمُ ٥٠

wa-anna
وَأَنَّ
और बेशक
ʿadhābī
عَذَابِى
अज़ाब मेरा
huwa
هُوَ
वो ही
l-ʿadhābu
ٱلْعَذَابُ
अज़ाब है
l-alīmu
ٱلْأَلِيمُ
दर्दनाक
और यह कि मेरी यातना भी अत्यन्त दुखदायिनी यातना है ([१५] अल हिज्र: 50)
Tafseer (तफ़सीर )