قُلْ لِّعِبَادِيَ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا يُقِيْمُوا الصَّلٰوةَ وَيُنْفِقُوْا مِمَّا رَزَقْنٰهُمْ سِرًّا وَّعَلَانِيَةً مِّنْ قَبْلِ اَنْ يَّأْتِيَ يَوْمٌ لَّا بَيْعٌ فِيْهِ وَلَا خِلٰلٌ ٣١
- qul
- قُل
- कह दीजिए
- liʿibādiya
- لِّعِبَادِىَ
- मेरे बन्दों से
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- yuqīmū
- يُقِيمُوا۟
- वो क़ायम करें
- l-ṣalata
- ٱلصَّلَوٰةَ
- नमाज़
- wayunfiqū
- وَيُنفِقُوا۟
- और वो ख़र्च करें
- mimmā
- مِمَّا
- उसमें से जो
- razaqnāhum
- رَزَقْنَٰهُمْ
- रिज़्क़ दिया हमने उन्हें
- sirran
- سِرًّا
- छुप कर
- waʿalāniyatan
- وَعَلَانِيَةً
- और ज़ाहिरी तौर पर
- min
- مِّن
- इससे पहले
- qabli
- قَبْلِ
- इससे पहले
- an
- أَن
- कि
- yatiya
- يَأْتِىَ
- आ जाए
- yawmun
- يَوْمٌ
- वो दिन
- lā
- لَّا
- नहीं
- bayʿun
- بَيْعٌ
- कोई तिजारत
- fīhi
- فِيهِ
- उस में
- walā
- وَلَا
- और ना
- khilālun
- خِلَٰلٌ
- कोई दोस्ती
मेरे जो बन्दे ईमान लाए है उनसे कह दो कि वे नमाज़ की पाबन्दी करें और हमने उन्हें जो कुछ दिया है उसमें से छुपे और खुले ख़र्च करें, इससे पहले कि वह दिन आ जाए जिनमें न कोई क्रय-विक्रय होगा और न मैत्री ([१४] इब्राहीम: 31)Tafseer (तफ़सीर )
اَللّٰهُ الَّذِيْ خَلَقَ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَ وَاَنْزَلَ مِنَ السَّمَاۤءِ مَاۤءً فَاَخْرَجَ بِهٖ مِنَ الثَّمَرٰتِ رِزْقًا لَّكُمْ ۚوَسَخَّرَ لَكُمُ الْفُلْكَ لِتَجْرِيَ فِى الْبَحْرِ بِاَمْرِهٖ ۚوَسَخَّرَ لَكُمُ الْاَنْهٰرَ ٣٢
- al-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- alladhī
- ٱلَّذِى
- वो है जिसने
- khalaqa
- خَلَقَ
- पैदा किया
- l-samāwāti
- ٱلسَّمَٰوَٰتِ
- आसमानों
- wal-arḍa
- وَٱلْأَرْضَ
- और ज़मीन को
- wa-anzala
- وَأَنزَلَ
- और उसने उतारा
- mina
- مِنَ
- आसमान से
- l-samāi
- ٱلسَّمَآءِ
- आसमान से
- māan
- مَآءً
- पानी
- fa-akhraja
- فَأَخْرَجَ
- फिर उसने निकाला
- bihi
- بِهِۦ
- साथ उसके
- mina
- مِنَ
- फलों में से
- l-thamarāti
- ٱلثَّمَرَٰتِ
- फलों में से
- riz'qan
- رِزْقًا
- रिज़्क़
- lakum
- لَّكُمْۖ
- तुम्हारे लिए
- wasakhara
- وَسَخَّرَ
- और उसने मुसख़्ख़र कीं
- lakumu
- لَكُمُ
- तुम्हारे लिए
- l-ful'ka
- ٱلْفُلْكَ
- कश्तियाँ
- litajriya
- لِتَجْرِىَ
- ताकि वो चलें
- fī
- فِى
- समुन्दर में
- l-baḥri
- ٱلْبَحْرِ
- समुन्दर में
- bi-amrihi
- بِأَمْرِهِۦۖ
- उसके हुक्म से
- wasakhara
- وَسَخَّرَ
- और उसने मुसख़्ख़र कीं
- lakumu
- لَكُمُ
- तुम्हारे लिए
- l-anhāra
- ٱلْأَنْهَٰرَ
- नहरें
वह अल्लाह ही है जिसने आकाशों और धरती की सृष्टि की और आकाश से पानी उतारा, फिर वह उसके द्वारा कितने ही पैदावार और फल तुम्हारी आजीविका के रूप में सामने लाया। और नौका को तुम्हारे काम में लगाया, ताकि समुद्र में उसके आदेश से चले और नदियों को भी तुम्हें लाभ पहुँचाने में लगाया ([१४] इब्राहीम: 32)Tafseer (तफ़सीर )
وَسَخَّرَ لَكُمُ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ دَاۤىِٕبَيْنِۚ وَسَخَّرَ لَكُمُ الَّيْلَ وَالنَّهَارَ ۚ ٣٣
- wasakhara
- وَسَخَّرَ
- और उसने मुसख़्ख़र किया
- lakumu
- لَكُمُ
- तुम्हारे लिए
- l-shamsa
- ٱلشَّمْسَ
- सूरज
- wal-qamara
- وَٱلْقَمَرَ
- और चाँद को
- dāibayni
- دَآئِبَيْنِۖ
- लगातार चलने वाले
- wasakhara
- وَسَخَّرَ
- और उसने मुसख़्ख़र किया
- lakumu
- لَكُمُ
- तुम्हारे लिए
- al-layla
- ٱلَّيْلَ
- रात
- wal-nahāra
- وَٱلنَّهَارَ
- और दिन को
और सूर्य और चन्द्रमा को तुम्हारे लिए कार्यरत किया और एक नियत विधान के अधीन निरंतर गतिशील है। और रात औऱ दिन को भी तुम्हें लाभ पहुँचाने में लगा रखा है ([१४] इब्राहीम: 33)Tafseer (तफ़सीर )
وَاٰتٰىكُمْ مِّنْ كُلِّ مَا سَاَلْتُمُوْهُۗ وَاِنْ تَعُدُّوْا نِعْمَتَ اللّٰهِ لَا تُحْصُوْهَاۗ اِنَّ الْاِنْسَانَ لَظَلُوْمٌ كَفَّارٌ ࣖ ٣٤
- waātākum
- وَءَاتَىٰكُم
- और उसने दी तुम्हें
- min
- مِّن
- हर वो चीज़
- kulli
- كُلِّ
- हर वो चीज़
- mā
- مَا
- जो
- sa-altumūhu
- سَأَلْتُمُوهُۚ
- माँगी तुमने उस से
- wa-in
- وَإِن
- और अगर
- taʿuddū
- تَعُدُّوا۟
- तुम गिनने लगो
- niʿ'mata
- نِعْمَتَ
- नेअमतें
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की
- lā
- لَا
- नहीं तुम शुमार कर सकते उन्हें
- tuḥ'ṣūhā
- تُحْصُوهَآۗ
- नहीं तुम शुमार कर सकते उन्हें
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-insāna
- ٱلْإِنسَٰنَ
- इन्सान
- laẓalūmun
- لَظَلُومٌ
- अलबत्ता बड़ा ज़ालिम है
- kaffārun
- كَفَّارٌ
- बड़ा नाशुक्रा है
और हर उस चीज़ में से तुम्हें दिया जो तुमने उससे माँगा यदि तुम अल्लाह की नेमतों की गणना नहीं कर सकते। वास्तव में मनुष्य ही बड़ा ही अन्यायी, कृतघ्न है ([१४] इब्राहीम: 34)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذْ قَالَ اِبْرٰهِيْمُ رَبِّ اجْعَلْ هٰذَا الْبَلَدَ اٰمِنًا وَّاجْنُبْنِيْ وَبَنِيَّ اَنْ نَّعْبُدَ الْاَصْنَامَ ۗ ٣٥
- wa-idh
- وَإِذْ
- और जब
- qāla
- قَالَ
- कहा
- ib'rāhīmu
- إِبْرَٰهِيمُ
- इब्राहीम ने
- rabbi
- رَبِّ
- ऐ मेरे रब
- ij'ʿal
- ٱجْعَلْ
- बना दे
- hādhā
- هَٰذَا
- इस
- l-balada
- ٱلْبَلَدَ
- शहर को
- āminan
- ءَامِنًا
- अमन वाला
- wa-uj'nub'nī
- وَٱجْنُبْنِى
- और बचा ले मुझे
- wabaniyya
- وَبَنِىَّ
- और मेरी औलाद को
- an
- أَن
- (इससे) कि
- naʿbuda
- نَّعْبُدَ
- हम इबादत करें
- l-aṣnāma
- ٱلْأَصْنَامَ
- बुतों की
याद करो जब इबराहीम ने कहा था, 'मेरे रब! इस भूभाग (मक्का) को शान्तिमय बना दे और मुझे और मेरी सन्तान को इससे बचा कि हम मूर्तियों को पूजने लग जाए ([१४] इब्राहीम: 35)Tafseer (तफ़सीर )
رَبِّ اِنَّهُنَّ اَضْلَلْنَ كَثِيْرًا مِّنَ النَّاسِۚ فَمَنْ تَبِعَنِيْ فَاِنَّهٗ مِنِّيْۚ وَمَنْ عَصَانِيْ فَاِنَّكَ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ ٣٦
- rabbi
- رَبِّ
- ऐ मेरे रब
- innahunna
- إِنَّهُنَّ
- बेशक उन्होंने
- aḍlalna
- أَضْلَلْنَ
- गुमराह कर दिया
- kathīran
- كَثِيرًا
- कसीर तादाद को
- mina
- مِّنَ
- लोगों में से
- l-nāsi
- ٱلنَّاسِۖ
- लोगों में से
- faman
- فَمَن
- तो जो कोई
- tabiʿanī
- تَبِعَنِى
- पैरवी करे मेरी
- fa-innahu
- فَإِنَّهُۥ
- तो बेशक वो
- minnī
- مِنِّىۖ
- मुझसे है
- waman
- وَمَنْ
- और जो कोई
- ʿaṣānī
- عَصَانِى
- नाफ़रमानी करे मेरी
- fa-innaka
- فَإِنَّكَ
- तो बेशक तू ही है
- ghafūrun
- غَفُورٌ
- बहुत बख़्शने वाला
- raḥīmun
- رَّحِيمٌ
- निहायत रहम करने वाला
मेरे रब! इन्होंने (इन मूर्तियों नॆ) बहुत से लोगों को पथभ्रष्ट किया है। अतः जिस किसी ने मॆरा अनुसरण किया वह मेरा है और जिस ने मेरी अवज्ञा की तो निश्चय ही तू बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है ([१४] इब्राहीम: 36)Tafseer (तफ़सीर )
رَبَّنَآ اِنِّيْٓ اَسْكَنْتُ مِنْ ذُرِّيَّتِيْ بِوَادٍ غَيْرِ ذِيْ زَرْعٍ عِنْدَ بَيْتِكَ الْمُحَرَّمِۙ رَبَّنَا لِيُقِيْمُوا الصَّلٰوةَ فَاجْعَلْ اَفْـِٕدَةً مِّنَ النَّاسِ تَهْوِيْٓ اِلَيْهِمْ وَارْزُقْهُمْ مِّنَ الثَّمَرٰتِ لَعَلَّهُمْ يَشْكُرُوْنَ ٣٧
- rabbanā
- رَّبَّنَآ
- ऐ हमारे रब
- innī
- إِنِّىٓ
- बेशक मैं
- askantu
- أَسْكَنتُ
- बसाया मैंने
- min
- مِن
- अपनी कुछ औलाद को
- dhurriyyatī
- ذُرِّيَّتِى
- अपनी कुछ औलाद को
- biwādin
- بِوَادٍ
- वादी में
- ghayri
- غَيْرِ
- बग़ैर
- dhī
- ذِى
- खेती वाली
- zarʿin
- زَرْعٍ
- खेती वाली
- ʿinda
- عِندَ
- पास
- baytika
- بَيْتِكَ
- तेरे घर के
- l-muḥarami
- ٱلْمُحَرَّمِ
- हुरमत वाले
- rabbanā
- رَبَّنَا
- ऐ हमारे रब
- liyuqīmū
- لِيُقِيمُوا۟
- ताकि वो क़ायम करें
- l-ṣalata
- ٱلصَّلَوٰةَ
- नमाज़
- fa-ij'ʿal
- فَٱجْعَلْ
- पस कर दे
- afidatan
- أَفْـِٔدَةً
- दिलों को
- mina
- مِّنَ
- लोगों के
- l-nāsi
- ٱلنَّاسِ
- लोगों के
- tahwī
- تَهْوِىٓ
- वो माइल हों
- ilayhim
- إِلَيْهِمْ
- तरफ़ उनके
- wa-ur'zuq'hum
- وَٱرْزُقْهُم
- और रिज़्क़ दे उन्हें
- mina
- مِّنَ
- फलों में से
- l-thamarāti
- ٱلثَّمَرَٰتِ
- फलों में से
- laʿallahum
- لَعَلَّهُمْ
- ताकि वो
- yashkurūna
- يَشْكُرُونَ
- वो शुक्र अदा करें
मेरे रब! मैंने एक ऐसी घाटी में जहाँ कृषि-योग्य भूमि नहीं अपनी सन्तान के एक हिस्से को तेरे प्रतिष्ठित घर (काबा) के निकट बसा दिया है। हमारे रब! ताकि वे नमाज़ क़ायम करें। अतः तू लोगों के दिलों को उनकी ओर झुका दे और उन्हें फलों और पैदावार की आजीविका प्रदान कर, ताकि वे कृतज्ञ बने ([१४] इब्राहीम: 37)Tafseer (तफ़सीर )
رَبَّنَآ اِنَّكَ تَعْلَمُ مَا نُخْفِيْ وَمَا نُعْلِنُۗ وَمَا يَخْفٰى عَلَى اللّٰهِ مِنْ شَيْءٍ فِى الْاَرْضِ وَلَا فِى السَّمَاۤءِ ٣٨
- rabbanā
- رَبَّنَآ
- ऐ हमारे रब
- innaka
- إِنَّكَ
- बेशक तू
- taʿlamu
- تَعْلَمُ
- तू जानता है
- mā
- مَا
- जो कुछ
- nukh'fī
- نُخْفِى
- हम छुपाते हैं
- wamā
- وَمَا
- और जो कुछ
- nuʿ'linu
- نُعْلِنُۗ
- हम ज़ाहिर करते हैं
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- yakhfā
- يَخْفَىٰ
- छुप सकती
- ʿalā
- عَلَى
- अल्लाह पर
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- min
- مِن
- कोई चीज़
- shayin
- شَىْءٍ
- कोई चीज़
- fī
- فِى
- ज़मीन में
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में
- walā
- وَلَا
- और ना
- fī
- فِى
- आसमान में
- l-samāi
- ٱلسَّمَآءِ
- आसमान में
हमारे रब! तू जानता ही है जो कुछ हम छिपाते है और जो कुछ प्रकट करते है। अल्लाह से तो कोई चीज़ न धरती में छिपी है और न आकाश में ([१४] इब्राहीम: 38)Tafseer (तफ़सीर )
اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ الَّذِيْ وَهَبَ لِيْ عَلَى الْكِبَرِ اِسْمٰعِيْلَ وَاِسْحٰقَۗ اِنَّ رَبِّيْ لَسَمِيْعُ الدُّعَاۤءِ ٣٩
- al-ḥamdu
- ٱلْحَمْدُ
- सब तारीफ़
- lillahi
- لِلَّهِ
- अल्लाह के लिए है
- alladhī
- ٱلَّذِى
- वो जिसने
- wahaba
- وَهَبَ
- अता किए
- lī
- لِى
- मुझे
- ʿalā
- عَلَى
- बावजूद बुढ़ापे के
- l-kibari
- ٱلْكِبَرِ
- बावजूद बुढ़ापे के
- is'māʿīla
- إِسْمَٰعِيلَ
- इस्माईल
- wa-is'ḥāqa
- وَإِسْحَٰقَۚ
- और इसहाक़
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- rabbī
- رَبِّى
- मेरा रब
- lasamīʿu
- لَسَمِيعُ
- अलबत्ता ख़ूब सुनने वाला है
- l-duʿāi
- ٱلدُّعَآءِ
- दुआ को
सारी प्रशंसा है उस अल्लाह की जिसने बुढ़ापे के होते हुए भी मुझे इसमाईल और इसहाक़ दिए। निस्संदेह मेरा रब प्रार्थना अवश्य सुनता है ([१४] इब्राहीम: 39)Tafseer (तफ़सीर )
رَبِّ اجْعَلْنِيْ مُقِيْمَ الصَّلٰوةِ وَمِنْ ذُرِّيَّتِيْۖ رَبَّنَا وَتَقَبَّلْ دُعَاۤءِ ٤٠
- rabbi
- رَبِّ
- ऐ मेरे रब
- ij'ʿalnī
- ٱجْعَلْنِى
- बना मुझे
- muqīma
- مُقِيمَ
- क़ायम करने वाला
- l-ṣalati
- ٱلصَّلَوٰةِ
- नमाज़ का
- wamin
- وَمِن
- और मेरी औलाद को
- dhurriyyatī
- ذُرِّيَّتِىۚ
- और मेरी औलाद को
- rabbanā
- رَبَّنَا
- ऐ हमारे रब
- wataqabbal
- وَتَقَبَّلْ
- और तू क़ुबूल कर ले
- duʿāi
- دُعَآءِ
- दुआ मेरी
मेरे रब! मुझे और मेरी सन्तान को नमाज़ क़ायम करनेवाला बना। हमारे रब! और हमारी प्रार्थना स्वीकार कर ([१४] इब्राहीम: 40)Tafseer (तफ़सीर )