४१
اَوَلَمْ يَرَوْا اَنَّا نَأْتِى الْاَرْضَ نَنْقُصُهَا مِنْ اَطْرَافِهَاۗ وَاللّٰهُ يَحْكُمُ لَا مُعَقِّبَ لِحُكْمِهٖۗ وَهُوَ سَرِيْعُ الْحِسَابِ ٤١
- awalam
- أَوَلَمْ
- क्या भला नहीं
- yaraw
- يَرَوْا۟
- उन्होंने देखा
- annā
- أَنَّا
- बेशक हम
- natī
- نَأْتِى
- हम आ रहे हैं
- l-arḍa
- ٱلْأَرْضَ
- ज़मीन को
- nanquṣuhā
- نَنقُصُهَا
- हम घटा रहे है उसे
- min
- مِنْ
- उसके किनारों से
- aṭrāfihā
- أَطْرَافِهَاۚ
- उसके किनारों से
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- yaḥkumu
- يَحْكُمُ
- फ़ैसला करता है
- lā
- لَا
- नहीं कोई पीछा करने वाला
- muʿaqqiba
- مُعَقِّبَ
- नहीं कोई पीछा करने वाला
- liḥuk'mihi
- لِحُكْمِهِۦۚ
- उसके फ़ैसले का
- wahuwa
- وَهُوَ
- और वो
- sarīʿu
- سَرِيعُ
- जल्द लेने वाला है
- l-ḥisābi
- ٱلْحِسَابِ
- हिसाब
क्या उन्होंने देखा नहीं कि हम धरती पर चले आ रहे है, उसे उसके किनारों से घटाते हुए? अल्लाह ही फ़ैसला करता है। कोई नहीं जो उसके फ़ैसले को पीछे डाल सके। वह हिसाब भी जल्द लेता है ([१३] अर र’आद: 41)Tafseer (तफ़सीर )
४२
وَقَدْ مَكَرَ الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِهِمْ فَلِلّٰهِ الْمَكْرُ جَمِيْعًا ۗيَعْلَمُ مَا تَكْسِبُ كُلُّ نَفْسٍۗ وَسَيَعْلَمُ الْكُفّٰرُ لِمَنْ عُقْبَى الدَّارِ ٤٢
- waqad
- وَقَدْ
- और तहक़ीक़
- makara
- مَكَرَ
- चाल चली
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों ने जो
- min
- مِن
- उनसे पहले थे
- qablihim
- قَبْلِهِمْ
- उनसे पहले थे
- falillahi
- فَلِلَّهِ
- तो अल्लाह ही के लिए है
- l-makru
- ٱلْمَكْرُ
- तदबीर
- jamīʿan
- جَمِيعًاۖ
- सारी की सारी
- yaʿlamu
- يَعْلَمُ
- वो जानता है
- mā
- مَا
- जो
- taksibu
- تَكْسِبُ
- कमाई करता है
- kullu
- كُلُّ
- हर
- nafsin
- نَفْسٍۗ
- नफ़्स
- wasayaʿlamu
- وَسَيَعْلَمُ
- और अनक़रीब जान लेंगे
- l-kufāru
- ٱلْكُفَّٰرُ
- कुफ़्फ़ार
- liman
- لِمَنْ
- किस के लिए
- ʿuq'bā
- عُقْبَى
- अंजाम है
- l-dāri
- ٱلدَّارِ
- घर का (आख़िरत के)
उनसे पहले जो लोग गुज़रे है, वे भी चालें चल चुके है, किन्तु वास्तविक चाल तो पूरी की पूरी अल्लाह ही के हाथ में है। प्रत्येक व्यक्ति जो कमाई कर रहा है उसे वह जानता है। इनकार करनेवालों को शीघ्र ही ज्ञात हो जाएगा कि परलोक-गृह के शुभ परिणाम के अधिकारी कौन है ([१३] अर र’आद: 42)Tafseer (तफ़सीर )
४३
وَيَقُوْلُ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا لَسْتَ مُرْسَلًا ۗ قُلْ كَفٰى بِاللّٰهِ شَهِيْدًاۢ بَيْنِيْ وَبَيْنَكُمْۙ وَمَنْ عِنْدَهٗ عِلْمُ الْكِتٰبِ ࣖ ٤٣
- wayaqūlu
- وَيَقُولُ
- और कहते हैं
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- lasta
- لَسْتَ
- नहीं हैं आप
- mur'salan
- مُرْسَلًاۚ
- रसूल
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- kafā
- كَفَىٰ
- काफ़ी है
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह
- shahīdan
- شَهِيدًۢا
- गवाह
- baynī
- بَيْنِى
- दर्मियान मेरे
- wabaynakum
- وَبَيْنَكُمْ
- और दर्मियान तुम्हारे
- waman
- وَمَنْ
- और वो (भी) जो
- ʿindahu
- عِندَهُۥ
- अपने पास (रखता है)
- ʿil'mu
- عِلْمُ
- इल्म
- l-kitābi
- ٱلْكِتَٰبِ
- किताब का
जिन लोगों ने इनकार की नीति अपनाई, वे कहते है, 'तुम कोई रसूल नहीं हो।' कह दो, 'मेरे और तुम्हारे बीच अल्लाह की और जिस किसी के पास किताब का ज्ञान है उसकी, गवाही काफ़ी है।' ([१३] अर र’आद: 43)Tafseer (तफ़सीर )