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सूरा युसूफ - Page: 9

Yusuf

(यूसुफ़)

८१

اِرْجِعُوْٓا اِلٰٓى اَبِيْكُمْ فَقُوْلُوْا يٰٓاَبَانَآ اِنَّ ابْنَكَ سَرَقَۚ وَمَا شَهِدْنَآ اِلَّا بِمَا عَلِمْنَا وَمَا كُنَّا لِلْغَيْبِ حٰفِظِيْنَ ٨١

ir'jiʿū
ٱرْجِعُوٓا۟
लौट जाओ
ilā
إِلَىٰٓ
तरफ़ अपने वालिद के
abīkum
أَبِيكُمْ
तरफ़ अपने वालिद के
faqūlū
فَقُولُوا۟
फिर कहो
yāabānā
يَٰٓأَبَانَآ
ऐ हमारे अब्बा जान
inna
إِنَّ
बेशक
ib'naka
ٱبْنَكَ
आपके बेटे ने
saraqa
سَرَقَ
चोरी की थी
wamā
وَمَا
और नहीं
shahid'nā
شَهِدْنَآ
गवाही दी हमने
illā
إِلَّا
मगर
bimā
بِمَا
वो जिस का
ʿalim'nā
عَلِمْنَا
इल्म था हमें
wamā
وَمَا
और नहीं
kunnā
كُنَّا
थे हम
lil'ghaybi
لِلْغَيْبِ
ग़ैब की
ḥāfiẓīna
حَٰفِظِينَ
हिफ़ाज़त करने वाले
तुम अपने बाप के पास लौटकर जाओ और कहो, 'ऐ हमारे बाप! आपके बेटे ने चोरी की है। हमने तो वही कहा जो हमें मालूम हो सका, परोक्ष तो हमारी दृष्टि में था नहीं ([१२] युसूफ: 81)
Tafseer (तफ़सीर )
८२

وَسْـَٔلِ الْقَرْيَةَ الَّتِيْ كُنَّا فِيْهَا وَالْعِيْرَ الَّتِيْٓ اَقْبَلْنَا فِيْهَاۗ وَاِنَّا لَصٰدِقُوْنَ ٨٢

wasali
وَسْـَٔلِ
और पूछ लें
l-qaryata
ٱلْقَرْيَةَ
बस्ती वालों से
allatī
ٱلَّتِى
वो जो
kunnā
كُنَّا
थे हम
fīhā
فِيهَا
जिस में
wal-ʿīra
وَٱلْعِيرَ
और क़ाफ़िले वालों से
allatī
ٱلَّتِىٓ
वो जो
aqbalnā
أَقْبَلْنَا
आए हैं हम
fīhā
فِيهَاۖ
जिस में
wa-innā
وَإِنَّا
और बेशक हम
laṣādiqūna
لَصَٰدِقُونَ
अलबत्ता सच्चे हैं
आप उस बस्ती से पूछ लीजिए जहाँ हम थे और उस क़ाफ़िलें से भी जिसके साथ होकर हम आए। निस्संदेह हम बिलकुल सच्चे है।' ([१२] युसूफ: 82)
Tafseer (तफ़सीर )
८३

قَالَ بَلْ سَوَّلَتْ لَكُمْ اَنْفُسُكُمْ اَمْرًاۗ فَصَبْرٌ جَمِيْلٌ ۗعَسَى اللّٰهُ اَنْ يَّأْتِيَنِيْ بِهِمْ جَمِيْعًاۗ اِنَّهٗ هُوَ الْعَلِيْمُ الْحَكِيْمُ ٨٣

qāla
قَالَ
कहा
bal
بَلْ
बल्कि
sawwalat
سَوَّلَتْ
अच्छा कर दिखाया
lakum
لَكُمْ
तुम्हारे लिए
anfusukum
أَنفُسُكُمْ
तुम्हारे नफ़्सों ने
amran
أَمْرًاۖ
एक काम को
faṣabrun
فَصَبْرٌ
तो सब्र ही
jamīlun
جَمِيلٌۖ
अच्छा है
ʿasā
عَسَى
उम्मीद है
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
an
أَن
कि
yatiyanī
يَأْتِيَنِى
वो ले आएगा मेरे पास
bihim
بِهِمْ
उन को
jamīʿan
جَمِيعًاۚ
सबके सबको
innahu
إِنَّهُۥ
क्योंकि वो
huwa
هُوَ
वो ही है
l-ʿalīmu
ٱلْعَلِيمُ
बहुत इल्म वाला
l-ḥakīmu
ٱلْحَكِيمُ
ख़ूब हिकमत वाला
उसने कहा, 'नहीं, बल्कि तुम्हारे जी ही ने तुम्हे पट्टी पढ़ाकर एक बात बना दी है। अब धैर्य से काम लेना ही उत्तम है! बहुत सम्भव है कि अल्लाह उन सबको मेरे पास ले आए। वह तो सर्वज्ञ, अत्यन्त तत्वदर्शी है।' ([१२] युसूफ: 83)
Tafseer (तफ़सीर )
८४

وَتَوَلّٰى عَنْهُمْ وَقَالَ يٰٓاَسَفٰى عَلٰى يُوْسُفَ وَابْيَضَّتْ عَيْنٰهُ مِنَ الْحُزْنِ فَهُوَ كَظِيْمٌ ٨٤

watawallā
وَتَوَلَّىٰ
और उसने मुँह फेर लिया
ʿanhum
عَنْهُمْ
उनसे
waqāla
وَقَالَ
और बोला
yāasafā
يَٰٓأَسَفَىٰ
हाय अफ़सोस
ʿalā
عَلَىٰ
यूसुफ़ पर
yūsufa
يُوسُفَ
यूसुफ़ पर
wa-ib'yaḍḍat
وَٱبْيَضَّتْ
और सफ़ेद हो गईं
ʿaynāhu
عَيْنَاهُ
दोनों आँखें उसकी
mina
مِنَ
ग़म की वजह से
l-ḥuz'ni
ٱلْحُزْنِ
ग़म की वजह से
fahuwa
فَهُوَ
पस वो
kaẓīmun
كَظِيمٌ
ग़म से भरा हुआ था
उसने उनकी ओर से मुख फेर लिया और कहने लगा, 'हाय अफ़सोस, यूसुफ़ की जुदाई पर!' और ग़म के मारे उसकी आँखें सफ़ेद पड़ गई और वह घुटा जा रहा था ([१२] युसूफ: 84)
Tafseer (तफ़सीर )
८५

قَالُوْا تَاللّٰهِ تَفْتَؤُا تَذْكُرُ يُوْسُفَ حَتّٰى تَكُوْنَ حَرَضًا اَوْ تَكُوْنَ مِنَ الْهَالِكِيْنَ ٨٥

qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
tal-lahi
تَٱللَّهِ
क़सम अल्लाह की
tafta-u
تَفْتَؤُا۟
आप हमेशा रहते हैं
tadhkuru
تَذْكُرُ
आप याद करते
yūsufa
يُوسُفَ
यूसुफ़ को
ḥattā
حَتَّىٰ
यहाँ तक कि
takūna
تَكُونَ
आप हो जाऐं
ḥaraḍan
حَرَضًا
बीमार
aw
أَوْ
या
takūna
تَكُونَ
आप हो जाऐं
mina
مِنَ
हलाक होने वालों में से
l-hālikīna
ٱلْهَٰلِكِينَ
हलाक होने वालों में से
उन्होंने कहा, 'अल्लाह की क़सम! आप तो यूसुफ़ ही की याद में लगे रहेंगे, यहाँ तक कि घुलकर रहेंगे या प्राण ही त्याग देंगे।' ([१२] युसूफ: 85)
Tafseer (तफ़सीर )
८६

قَالَ اِنَّمَآ اَشْكُوْا بَثِّيْ وَحُزْنِيْٓ اِلَى اللّٰهِ وَاَعْلَمُ مِنَ اللّٰهِ مَا لَا تَعْلَمُوْنَ ٨٦

qāla
قَالَ
उसने कहा
innamā
إِنَّمَآ
बेशक
ashkū
أَشْكُوا۟
मैं शिकायत करता हूँ
bathī
بَثِّى
अपनी बेक़रारी की
waḥuz'nī
وَحُزْنِىٓ
और अपने ग़म की
ilā
إِلَى
तरफ़ अल्लाह के
l-lahi
ٱللَّهِ
तरफ़ अल्लाह के
wa-aʿlamu
وَأَعْلَمُ
और मैं जानता हूँ
mina
مِنَ
अल्लाह की तरफ़ से
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह की तरफ़ से
مَا
जो
لَا
नहीं तुम जानते
taʿlamūna
تَعْلَمُونَ
नहीं तुम जानते
उसने कहा, 'मैं तो अपनी परेशानी और अपने ग़म की शिकायत अल्लाह ही से करता हूँ और अल्लाह की ओर से जो मैं जानता हूँ, तुम नही जानते ([१२] युसूफ: 86)
Tafseer (तफ़सीर )
८७

يٰبَنِيَّ اذْهَبُوْا فَتَحَسَّسُوْا مِنْ يُّوْسُفَ وَاَخِيْهِ وَلَا تَا۟يْـَٔسُوْا مِنْ رَّوْحِ اللّٰهِ ۗاِنَّهٗ لَا يَا۟يْـَٔسُ مِنْ رَّوْحِ اللّٰهِ اِلَّا الْقَوْمُ الْكٰفِرُوْنَ ٨٧

yābaniyya
يَٰبَنِىَّ
ऐ मेरे बेटो
idh'habū
ٱذْهَبُوا۟
जाओ
fataḥassasū
فَتَحَسَّسُوا۟
पस सुराग़ लगाओ
min
مِن
यूसुफ़ का
yūsufa
يُوسُفَ
यूसुफ़ का
wa-akhīhi
وَأَخِيهِ
और उसके भाई का
walā
وَلَا
और ना
tāy'asū
تَا۟يْـَٔسُوا۟
तुम मायूस हो
min
مِن
रहमत से
rawḥi
رَّوْحِ
रहमत से
l-lahi
ٱللَّهِۖ
अल्लाह की
innahu
إِنَّهُۥ
क्योंकि वो
لَا
नहीं मायूस होते
yāy'asu
يَا۟يْـَٔسُ
नहीं मायूस होते
min
مِن
रहमत से
rawḥi
رَّوْحِ
रहमत से
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह की
illā
إِلَّا
मगर
l-qawmu
ٱلْقَوْمُ
वो लोग
l-kāfirūna
ٱلْكَٰفِرُونَ
जो काफ़िर हैं
ऐ मेरे बेटों! जाओ और यूसुफ़ और उसके भाई की टोह लगाओ और अल्लाह की सदयता से निराश न हो। अल्लाह की सदयता से तो केवल कुफ़्र करनेवाले ही निराश होते है।' ([१२] युसूफ: 87)
Tafseer (तफ़सीर )
८८

فَلَمَّا دَخَلُوْا عَلَيْهِ قَالُوْا يٰٓاَيُّهَا الْعَزِيْزُ مَسَّنَا وَاَهْلَنَا الضُّرُّ وَجِئْنَا بِبِضَاعَةٍ مُّزْجٰىةٍ فَاَوْفِ لَنَا الْكَيْلَ وَتَصَدَّقْ عَلَيْنَاۗ اِنَّ اللّٰهَ يَجْزِى الْمُتَصَدِّقِيْنَ ٨٨

falammā
فَلَمَّا
फिर जब
dakhalū
دَخَلُوا۟
वो दाख़िल हुए
ʿalayhi
عَلَيْهِ
उस पर
qālū
قَالُوا۟
वो कहने लगे
yāayyuhā
يَٰٓأَيُّهَا
ऐ अज़ीज़
l-ʿazīzu
ٱلْعَزِيزُ
ऐ अज़ीज़
massanā
مَسَّنَا
पहुँची हमें
wa-ahlanā
وَأَهْلَنَا
और हमारे घर वालों को
l-ḍuru
ٱلضُّرُّ
तकलीफ़
waji'nā
وَجِئْنَا
और लाए हैं हम
bibiḍāʿatin
بِبِضَٰعَةٍ
पूँजी/सरमाया
muz'jātin
مُّزْجَىٰةٍ
हक़ीर
fa-awfi
فَأَوْفِ
पस पूरा-पूरा दे दीजिए
lanā
لَنَا
हमें
l-kayla
ٱلْكَيْلَ
पैमाना/ग़ल्ला
wataṣaddaq
وَتَصَدَّقْ
और सदक़ा कीजिए
ʿalaynā
عَلَيْنَآۖ
हम पर
inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
yajzī
يَجْزِى
वो बदला देता है
l-mutaṣadiqīna
ٱلْمُتَصَدِّقِينَ
सदक़ा करने वालों को
फिर जब वे उसके पास उपस्थित हुए तो कहा, 'ऐ अज़ीज़! हमें और हमारे घरवालों को बहुत तकलीफ़ पहुँची हैं और हम कुछ तुच्छ-सी पूँजी लेकर आए है, किन्तु आप हमें पूरी-पूरी माप प्रदान करें। और हमें दान दें। निश्चय ही दान करनेवालों को बदला अल्लाह देता है।' ([१२] युसूफ: 88)
Tafseer (तफ़सीर )
८९

قَالَ هَلْ عَلِمْتُمْ مَّا فَعَلْتُمْ بِيُوْسُفَ وَاَخِيْهِ اِذْ اَنْتُمْ جَاهِلُوْنَ ٨٩

qāla
قَالَ
उसने कहा
hal
هَلْ
क्या
ʿalim'tum
عَلِمْتُم
जानते हो तुम
مَّا
जो
faʿaltum
فَعَلْتُم
किया था तुमने
biyūsufa
بِيُوسُفَ
साथ यूसुफ़ के
wa-akhīhi
وَأَخِيهِ
और उसके भाई के
idh
إِذْ
जब
antum
أَنتُمْ
तुम
jāhilūna
جَٰهِلُونَ
नादान थे
उसने कहा, 'क्या तुम्हें यह भी मालूम है कि जब तुम आवेग के वशीभूत थे तो यूसुफ़ और उसके भाई के साथ तुमने क्या किया था?' ([१२] युसूफ: 89)
Tafseer (तफ़सीर )
९०

قَالُوْٓا ءَاِنَّكَ لَاَنْتَ يُوْسُفُۗ قَالَ اَنَا۠ يُوْسُفُ وَهٰذَآ اَخِيْ قَدْ مَنَّ اللّٰهُ عَلَيْنَاۗ اِنَّهٗ مَنْ يَّتَّقِ وَيَصْبِرْ فَاِنَّ اللّٰهَ لَا يُضِيْعُ اَجْرَ الْمُحْسِنِيْنَ ٩٠

qālū
قَالُوٓا۟
उन्होंने कहा
a-innaka
أَءِنَّكَ
क्या बेशक तू
la-anta
لَأَنتَ
अलबत्ता तू है
yūsufu
يُوسُفُۖ
यूसुफ़
qāla
قَالَ
उसने कहा
anā
أَنَا۠
मैं हूँ
yūsufu
يُوسُفُ
यूसुफ़
wahādhā
وَهَٰذَآ
और ये है
akhī
أَخِىۖ
मेरा भाई
qad
قَدْ
तहक़ीक़
manna
مَنَّ
एहसान किया
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
ʿalaynā
عَلَيْنَآۖ
हम पर
innahu
إِنَّهُۥ
बेशक वो
man
مَن
जो
yattaqi
يَتَّقِ
तक़वा करे
wayaṣbir
وَيَصْبِرْ
और वो सब्र करे
fa-inna
فَإِنَّ
तो यक़ीनन
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
لَا
नहीं वो ज़ाया करता
yuḍīʿu
يُضِيعُ
नहीं वो ज़ाया करता
ajra
أَجْرَ
अजर
l-muḥ'sinīna
ٱلْمُحْسِنِينَ
मोहसिनीन का
वे बोल पड़े, 'क्या यूसुफ़ आप ही है?' उसने कहा, 'मैं ही यूसुफ़ हूँ और यह मेरा भाई है। अल्लाह ने हमपर उपकार किया है। सच तो यह है कि जो कोई डर रखे और धैर्य से काम ले तो अल्लाह भी उत्तमकारों का बदला अकारथ नहीं करता।' ([१२] युसूफ: 90)
Tafseer (तफ़सीर )