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सूरा युसूफ - Page: 6

Yusuf

(यूसुफ़)

५१

قَالَ مَا خَطْبُكُنَّ اِذْ رَاوَدْتُّنَّ يُوْسُفَ عَنْ نَّفْسِهٖۗ قُلْنَ حَاشَ لِلّٰهِ مَا عَلِمْنَا عَلَيْهِ مِنْ سُوْۤءٍ ۗقَالَتِ امْرَاَتُ الْعَزِيْزِ الْـٰٔنَ حَصْحَصَ الْحَقُّۖ اَنَا۠ رَاوَدْتُّهٗ عَنْ نَّفْسِهٖ وَاِنَّهٗ لَمِنَ الصّٰدِقِيْنَ ٥١

qāla
قَالَ
कहा (बादशाह ने)
مَا
क्या
khaṭbukunna
خَطْبُكُنَّ
मामला है तुम्हारा
idh
إِذْ
जब
rāwadttunna
رَٰوَدتُّنَّ
तुमने फुसलाना चाहा था
yūsufa
يُوسُفَ
यूसुफ़ को
ʿan
عَن
उसके नफ़्स से
nafsihi
نَّفْسِهِۦۚ
उसके नफ़्स से
qul'na
قُلْنَ
कहने लगीं
ḥāsha
حَٰشَ
हाशा लिल्लाह
lillahi
لِلَّهِ
हाशा लिल्लाह
مَا
नहीं
ʿalim'nā
عَلِمْنَا
जाना हमने
ʿalayhi
عَلَيْهِ
उस पर
min
مِن
किसी बुराई को
sūin
سُوٓءٍۚ
किसी बुराई को
qālati
قَالَتِ
कहने लगी
im'ra-atu
ٱمْرَأَتُ
औरत
l-ʿazīzi
ٱلْعَزِيزِ
अज़ीज़ की
l-āna
ٱلْـَٰٔنَ
अब
ḥaṣḥaṣa
حَصْحَصَ
ज़ाहिर हो गया
l-ḥaqu
ٱلْحَقُّ
हक़
anā
أَنَا۠
मैंने
rāwadttuhu
رَٰوَدتُّهُۥ
फुसलाया था मैंने उसे
ʿan
عَن
उसके नफ़्स से
nafsihi
نَّفْسِهِۦ
उसके नफ़्स से
wa-innahu
وَإِنَّهُۥ
और बेशक वो
lamina
لَمِنَ
अलबत्ता सच्चों में से है
l-ṣādiqīna
ٱلصَّٰدِقِينَ
अलबत्ता सच्चों में से है
उसने कहा, 'तुम स्त्रियों का क्या हाल था, जब तुमने यूसुफ़ को रिझाने की चेष्टा की थी?' उन्होंने कहा, 'पाक है अल्लाह! हम उसमें कोई बुराई नहीं जानते है।' अज़ीज़ की स्त्री बोल उठी, 'अब तो सत्य प्रकट हो गया है। मैंने ही उसे रिझाना चाहा था। वह तो बिलकुल सच्चा है।' ([१२] युसूफ: 51)
Tafseer (तफ़सीर )
५२

ذٰلِكَ لِيَعْلَمَ اَنِّيْ لَمْ اَخُنْهُ بِالْغَيْبِ وَاَنَّ اللّٰهَ لَا يَهْدِيْ كَيْدَ الْخَاۤىِٕنِيْنَ ۔ ٥٢

dhālika
ذَٰلِكَ
ये
liyaʿlama
لِيَعْلَمَ
ताकि वो जान ले
annī
أَنِّى
बेशक मैं
lam
لَمْ
नहीं ख़यानत की मैंने उसकी
akhun'hu
أَخُنْهُ
नहीं ख़यानत की मैंने उसकी
bil-ghaybi
بِٱلْغَيْبِ
ग़ायबाना
wa-anna
وَأَنَّ
और बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
لَا
नहीं वो राह दिखाता
yahdī
يَهْدِى
नहीं वो राह दिखाता
kayda
كَيْدَ
मकर को
l-khāinīna
ٱلْخَآئِنِينَ
ख़यानत करने वालों की
'यह इसलिए कि वह जान ले कि मैंने गुप्त॥ रूप से उसके साथ विश्वासघात नहीं किया और यह कि अल्लाह विश्वासघातियों का चाल को चलने नहीं देता ([१२] युसूफ: 52)
Tafseer (तफ़सीर )
५३

۞ وَمَآ اُبَرِّئُ نَفْسِيْۚ اِنَّ النَّفْسَ لَاَمَّارَةٌ ۢ بِالسُّوْۤءِ اِلَّا مَا رَحِمَ رَبِّيْۗ اِنَّ رَبِّيْ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ ٥٣

wamā
وَمَآ
और नहीं
ubarri-u
أُبَرِّئُ
मैं बरी करता/करती
nafsī
نَفْسِىٓۚ
अपने नफ़्स को
inna
إِنَّ
बेशक
l-nafsa
ٱلنَّفْسَ
नफ़्स
la-ammāratun
لَأَمَّارَةٌۢ
अलबत्ता बहुत हुक्म देने वाला है
bil-sūi
بِٱلسُّوٓءِ
बुराई का
illā
إِلَّا
मगर
مَا
जिस पर
raḥima
رَحِمَ
रहम करे
rabbī
رَبِّىٓۚ
मेरा रब
inna
إِنَّ
बेशक
rabbī
رَبِّى
मेरा रब
ghafūrun
غَفُورٌ
बहुत बख़्शने वाला है
raḥīmun
رَّحِيمٌ
निहायत रहम करने वाला है
मैं यह नहीं कहता कि मैं बुरी हूँ - जी तो बुराई पर उभारता ही है - यदि मेरा रब ही दया करे तो बात और है। निश्चय ही मेरा रब बहुत क्षमाशील, दयावान है।' ([१२] युसूफ: 53)
Tafseer (तफ़सीर )
५४

وَقَالَ الْمَلِكُ ائْتُوْنِيْ بِهٖٓ اَسْتَخْلِصْهُ لِنَفْسِيْۚ فَلَمَّا كَلَّمَهٗ قَالَ اِنَّكَ الْيَوْمَ لَدَيْنَا مَكِيْنٌ اَمِيْنٌ ٥٤

waqāla
وَقَالَ
और कहा
l-maliku
ٱلْمَلِكُ
बादशाह ने
i'tūnī
ٱئْتُونِى
लाओ मेरे पास
bihi
بِهِۦٓ
उसे
astakhliṣ'hu
أَسْتَخْلِصْهُ
मैं उसे ख़ास कर लूँ
linafsī
لِنَفْسِىۖ
अपनी ज़ात के लिए
falammā
فَلَمَّا
फिर जब
kallamahu
كَلَّمَهُۥ
उसने बात-चीत की उससे
qāla
قَالَ
कहा
innaka
إِنَّكَ
बेशक तू
l-yawma
ٱلْيَوْمَ
आज से
ladaynā
لَدَيْنَا
हमारे यहाँ
makīnun
مَكِينٌ
मर्तबे वाला
amīnun
أَمِينٌ
अमानतदार है
सम्राट ने कहा, 'उसे मेरे पास ले आओ! मैं उसे अपने लिए ख़ास कर लूँगा।' जब उसने उससे बात-चीक करी तो उसने कहा, 'निस्संदेह आज तुम हमारे यहाँ विश्व सनीय अधिकार प्राप्त व्यक्ति हो।' ([१२] युसूफ: 54)
Tafseer (तफ़सीर )
५५

قَالَ اجْعَلْنِيْ عَلٰى خَزَاۤىِٕنِ الْاَرْضِۚ اِنِّيْ حَفِيْظٌ عَلِيْمٌ ٥٥

qāla
قَالَ
उसने कहा
ij'ʿalnī
ٱجْعَلْنِى
मुक़र्रर कर दीजिए मुझे
ʿalā
عَلَىٰ
ख़ज़ानों पर
khazāini
خَزَآئِنِ
ख़ज़ानों पर
l-arḍi
ٱلْأَرْضِۖ
ज़मीन के
innī
إِنِّى
बेशक मैं हूँ
ḥafīẓun
حَفِيظٌ
बहुत हिफ़ाज़त करने वाला
ʿalīmun
عَلِيمٌ
ख़ूब इल्म रखने वाला
उसने कहा, 'इस भू-भाग के ख़जानों पर मुझे नियुक्त कर दीजिए। निश्चय ही मैं रक्षक और ज्ञानवान हूँ।' ([१२] युसूफ: 55)
Tafseer (तफ़सीर )
५६

وَكَذٰلِكَ مَكَّنَّا لِيُوْسُفَ فِى الْاَرْضِ يَتَبَوَّاُ مِنْهَا حَيْثُ يَشَاۤءُۗ نُصِيْبُ بِرَحْمَتِنَا مَنْ نَّشَاۤءُ وَلَا نُضِيْعُ اَجْرَ الْمُحْسِنِيْنَ ٥٦

wakadhālika
وَكَذَٰلِكَ
और इसी तरह
makkannā
مَكَّنَّا
इक़्तिदार दिया हमने
liyūsufa
لِيُوسُفَ
यूसुफ़ को
فِى
ज़मीन में
l-arḍi
ٱلْأَرْضِ
ज़मीन में
yatabawwa-u
يَتَبَوَّأُ
वो रहता
min'hā
مِنْهَا
उसमें
ḥaythu
حَيْثُ
जहाँ
yashāu
يَشَآءُۚ
वो चाहता
nuṣību
نُصِيبُ
हम पहुँचाते हैं
biraḥmatinā
بِرَحْمَتِنَا
अपनी रहमत को
man
مَن
जिसे
nashāu
نَّشَآءُۖ
हम चाहते हैं
walā
وَلَا
और नहीं
nuḍīʿu
نُضِيعُ
हम ज़ाया करते
ajra
أَجْرَ
अजर
l-muḥ'sinīna
ٱلْمُحْسِنِينَ
एहसान करने वालों का
इस प्रकार हमने यूसुफ़ को उस भू-भाग में अधिकार प्रदान किया कि वह उसमें जहाँ चाहे अपनी जगह बनाए। हम जिसे चाहते हैं उसे अपनी दया का पात्र बनाते है। उत्तमकारों का बदला हम अकारथ नहीं जाने देते ([१२] युसूफ: 56)
Tafseer (तफ़सीर )
५७

وَلَاَجْرُ الْاٰخِرَةِ خَيْرٌ لِّلَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَكَانُوْا يَتَّقُوْنَ ࣖ ٥٧

wala-ajru
وَلَأَجْرُ
और यक़ीनन अजर
l-ākhirati
ٱلْءَاخِرَةِ
आख़िरत का
khayrun
خَيْرٌ
बेहतर है
lilladhīna
لِّلَّذِينَ
उनके लिए जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए
wakānū
وَكَانُوا۟
और हैं वो
yattaqūna
يَتَّقُونَ
वो तक़वा करते/डरते
और ईमान लानेवालों और डर रखनेवालों के लिए आख़िरत का बदला इससे कहीं उत्तम है ([१२] युसूफ: 57)
Tafseer (तफ़सीर )
५८

وَجَاۤءَ اِخْوَةُ يُوْسُفَ فَدَخَلُوْا عَلَيْهِ فَعَرَفَهُمْ وَهُمْ لَهٗ مُنْكِرُوْنَ ٥٨

wajāa
وَجَآءَ
और आए
ikh'watu
إِخْوَةُ
भाई
yūsufa
يُوسُفَ
यूसुफ़ के
fadakhalū
فَدَخَلُوا۟
फिर वो दाख़िल हुए
ʿalayhi
عَلَيْهِ
उस पर
faʿarafahum
فَعَرَفَهُمْ
पस उसने पहचान लिया उन्हें
wahum
وَهُمْ
जबकि वो
lahu
لَهُۥ
उससे
munkirūna
مُنكِرُونَ
नावाक़िफ़ थे
फिर ऐसा हुआ कि यूसुफ़ के भाई आए और उसके सामने उपस्थित हुए, उसने तो उन्हें पहचान लिया, किन्तु वे उससे अपरिचित रहे ([१२] युसूफ: 58)
Tafseer (तफ़सीर )
५९

وَلَمَّا جَهَّزَهُمْ بِجَهَازِهِمْ قَالَ ائْتُوْنِيْ بِاَخٍ لَّكُمْ مِّنْ اَبِيْكُمْ ۚ اَلَا تَرَوْنَ اَنِّيْٓ اُوْفِى الْكَيْلَ وَاَنَا۠ خَيْرُ الْمُنْزِلِيْنَ ٥٩

walammā
وَلَمَّا
और जब
jahhazahum
جَهَّزَهُم
उसने तैयार करके दिया उन्हें
bijahāzihim
بِجَهَازِهِمْ
सामान उनका
qāla
قَالَ
कहा
i'tūnī
ٱئْتُونِى
लाना मेरे पास
bi-akhin
بِأَخٍ
भाई को
lakum
لَّكُم
अपने
min
مِّنْ
अपने बाप की तरफ़ से
abīkum
أَبِيكُمْۚ
अपने बाप की तरफ़ से
alā
أَلَا
क्या नहीं
tarawna
تَرَوْنَ
तुम देखते
annī
أَنِّىٓ
बेशक मैं
ūfī
أُوفِى
मैं पूरा-पूरा देता हूँ
l-kayla
ٱلْكَيْلَ
पैमाना (ग़ल्ला)
wa-anā
وَأَنَا۠
और मैं
khayru
خَيْرُ
बेहतर हूँ
l-munzilīna
ٱلْمُنزِلِينَ
सब मेज़बानी करने वालों से
जब उसने उनके लिए उनका सामान तैयार करा दिया तो कहा, 'बाप की ओर सो तुम्हारा भाई है, उसे मेरे पास लाना। क्या देखते नहीं कि मैं पूरी माप से देता हूँ और मैं अच्छा आतिशेय भी हूँ?' ([१२] युसूफ: 59)
Tafseer (तफ़सीर )
६०

فَاِنْ لَّمْ تَأْتُوْنِيْ بِهٖ فَلَا كَيْلَ لَكُمْ عِنْدِيْ وَلَا تَقْرَبُوْنِ ٦٠

fa-in
فَإِن
फिर अगर
lam
لَّمْ
ना
tatūnī
تَأْتُونِى
तुम लाए मेरे पास
bihi
بِهِۦ
उसे
falā
فَلَا
तो नहीं
kayla
كَيْلَ
कोई पैमाना (ग़ल्ला)
lakum
لَكُمْ
तुम्हारे लिए
ʿindī
عِندِى
मेरे पास
walā
وَلَا
और ना
taqrabūni
تَقْرَبُونِ
तुम क़रीब आना मेरे
किन्तु यदि तुम उसे मेरे पास न लाए तो फिर तुम्हारे लिए मेरे यहाँ कोई माप (ग़ल्ला) नहीं और तुम मेरे पास आना भी मत।' ([१२] युसूफ: 60)
Tafseer (तफ़सीर )