فَلَمَّا سَمِعَتْ بِمَكْرِهِنَّ اَرْسَلَتْ اِلَيْهِنَّ وَاَعْتَدَتْ لَهُنَّ مُتَّكَاً وَّاٰتَتْ كُلَّ وَاحِدَةٍ مِّنْهُنَّ سِكِّيْنًا وَّقَالَتِ اخْرُجْ عَلَيْهِنَّ ۚ فَلَمَّا رَاَيْنَهٗٓ اَكْبَرْنَهٗ وَقَطَّعْنَ اَيْدِيَهُنَّۖ وَقُلْنَ حَاشَ لِلّٰهِ مَا هٰذَا بَشَرًاۗ اِنْ هٰذَآ اِلَّا مَلَكٌ كَرِيْمٌ ٣١
- falammā
- فَلَمَّا
- तो जब
- samiʿat
- سَمِعَتْ
- उसने सुना
- bimakrihinna
- بِمَكْرِهِنَّ
- मकर उन औरतों का
- arsalat
- أَرْسَلَتْ
- उसने भेजा
- ilayhinna
- إِلَيْهِنَّ
- उनकी तरफ़ (दावत नामा)
- wa-aʿtadat
- وَأَعْتَدَتْ
- और तैयार कीं
- lahunna
- لَهُنَّ
- उनके लिए
- muttaka-an
- مُتَّكَـًٔا
- मसनदें
- waātat
- وَءَاتَتْ
- और दी
- kulla
- كُلَّ
- हर
- wāḥidatin
- وَٰحِدَةٍ
- एक औरत को
- min'hunna
- مِّنْهُنَّ
- उनमें से
- sikkīnan
- سِكِّينًا
- एक छुरी
- waqālati
- وَقَالَتِ
- और कहने लगी
- ukh'ruj
- ٱخْرُجْ
- निकल आ
- ʿalayhinna
- عَلَيْهِنَّۖ
- इन पर
- falammā
- فَلَمَّا
- तो जब
- ra-aynahu
- رَأَيْنَهُۥٓ
- उन औरतों ने देखा उसे
- akbarnahu
- أَكْبَرْنَهُۥ
- मरऊब हो गईं उससे
- waqaṭṭaʿna
- وَقَطَّعْنَ
- और काट लिए
- aydiyahunna
- أَيْدِيَهُنَّ
- हाथ अपने
- waqul'na
- وَقُلْنَ
- और वो कहने लगीं
- ḥāsha
- حَٰشَ
- हाशा लिल्लाह
- lillahi
- لِلَّهِ
- हाशा लिल्लाह
- mā
- مَا
- नहीं है
- hādhā
- هَٰذَا
- ये
- basharan
- بَشَرًا
- कोई इन्सान
- in
- إِنْ
- नहीं है
- hādhā
- هَٰذَآ
- ये
- illā
- إِلَّا
- मगर
- malakun
- مَلَكٌ
- फ़रिश्ता
- karīmun
- كَرِيمٌ
- मुअज़्ज़िज़
उसने जब उनकी मक्करी की बातें सुनी तो उन्हें बुला भेजा और उनमें से हरेक के लिए आसन सुसज्जित किया और उनमें से हरेक को एक छुरी दी। उसने (यूसुफ़ से) कहा, 'इनके सामने आ जाओ।' फिर जब स्त्रियों ने देखा तो वे उसकी बड़ाई से दंग रह गई। उन्होंने अपने हाथ घायल कर लिए और कहने लगी, 'अल्लाह की पनाह! यह कोई मनुष्य नहीं। यह तो कोई प्रतिष्ठित फ़रिश्ता है।' ([१२] युसूफ: 31)Tafseer (तफ़सीर )
قَالَتْ فَذٰلِكُنَّ الَّذِيْ لُمْتُنَّنِيْ فِيْهِ ۗوَلَقَدْ رَاوَدْتُّهٗ عَنْ نَّفْسِهٖ فَاسْتَعْصَمَ ۗوَلَىِٕنْ لَّمْ يَفْعَلْ مَآ اٰمُرُهٗ لَيُسْجَنَنَّ وَلَيَكُوْنًا مِّنَ الصّٰغِرِيْنَ ٣٢
- qālat
- قَالَتْ
- वो कहने लगी
- fadhālikunna
- فَذَٰلِكُنَّ
- तो ये है
- alladhī
- ٱلَّذِى
- वो शख़्स जो
- lum'tunnanī
- لُمْتُنَّنِى
- तुम मलामत करती हो मुझे
- fīhi
- فِيهِۖ
- जिस (के बारे) में
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- rāwadttuhu
- رَٰوَدتُّهُۥ
- मैंने फुसलाना चाहा उसे
- ʿan
- عَن
- उसके नफ़्स के बारे में
- nafsihi
- نَّفْسِهِۦ
- उसके नफ़्स के बारे में
- fa-is'taʿṣama
- فَٱسْتَعْصَمَۖ
- पस वो बच निकला
- wala-in
- وَلَئِن
- और अलबत्ता अगर
- lam
- لَّمْ
- ना
- yafʿal
- يَفْعَلْ
- उसने किया
- mā
- مَآ
- जो
- āmuruhu
- ءَامُرُهُۥ
- मैं हुक्म देती हूँ उसे
- layus'jananna
- لَيُسْجَنَنَّ
- अलबत्ता वो ज़रूर क़ैद किया जाएगा
- walayakūnan
- وَلَيَكُونًا
- और अलबत्ता वो हो जाएगा
- mina
- مِّنَ
- ज़लील होने वालों में से
- l-ṣāghirīna
- ٱلصَّٰغِرِينَ
- ज़लील होने वालों में से
वह बोली, 'यह वही है जिसके विषय में तुम मुझे मलामत कर रही थीं। हाँ, मैंने इसे रिझाना चाहा था, किन्तु यह बचा रहा। और यदि इसने न किया जो मैं इससे कहती तो यह अवश्य क़ैद किया जाएगा और अपमानित होगा।' ([१२] युसूफ: 32)Tafseer (तफ़सीर )
قَالَ رَبِّ السِّجْنُ اَحَبُّ اِلَيَّ مِمَّا يَدْعُوْنَنِيْٓ اِلَيْهِ ۚوَاِلَّا تَصْرِفْ عَنِّيْ كَيْدَهُنَّ اَصْبُ اِلَيْهِنَّ وَاَكُنْ مِّنَ الْجٰهِلِيْنَ ٣٣
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- rabbi
- رَبِّ
- ऐ मेरे रब
- l-sij'nu
- ٱلسِّجْنُ
- क़ैद ख़ाना
- aḥabbu
- أَحَبُّ
- ज़्यादा महबूब है
- ilayya
- إِلَىَّ
- मुझे
- mimmā
- مِمَّا
- उससे जो
- yadʿūnanī
- يَدْعُونَنِىٓ
- वो बुलाती हैं मुझे
- ilayhi
- إِلَيْهِۖ
- तरफ़ जिसके
- wa-illā
- وَإِلَّا
- और अगर नहीं
- taṣrif
- تَصْرِفْ
- तू फेरेगा
- ʿannī
- عَنِّى
- मुझसे
- kaydahunna
- كَيْدَهُنَّ
- चाल उनकी
- aṣbu
- أَصْبُ
- मैं माइल हो जाऊँगा
- ilayhinna
- إِلَيْهِنَّ
- तरफ़ उनके
- wa-akun
- وَأَكُن
- और मैं हो जाऊँगा
- mina
- مِّنَ
- जाहिलों में से
- l-jāhilīna
- ٱلْجَٰهِلِينَ
- जाहिलों में से
उसने कहा, 'ऐ मेरे रब! जिसकी ओर ये सब मुझे बुला रही हैं, उससे अधिक तो मुझे क़ैद ही पसन्द है यदि तूने उनके दाँव-घात को मुझसे न टाला तो मैं उनकी और झुक जाऊँगा और निरे आवेग के वशीभूत हो जाऊँगा।' ([१२] युसूफ: 33)Tafseer (तफ़सीर )
فَاسْتَجَابَ لَهٗ رَبُّهٗ فَصَرَفَ عَنْهُ كَيْدَهُنَّ ۗاِنَّهٗ هُوَ السَّمِيْعُ الْعَلِيْمُ ٣٤
- fa-is'tajāba
- فَٱسْتَجَابَ
- पस (दुआ) क़ुबूल कर ली
- lahu
- لَهُۥ
- उसकी
- rabbuhu
- رَبُّهُۥ
- उसके रब ने
- faṣarafa
- فَصَرَفَ
- तो उसने फेर दी
- ʿanhu
- عَنْهُ
- उससे
- kaydahunna
- كَيْدَهُنَّۚ
- चाल उन औरतों की
- innahu
- إِنَّهُۥ
- बेशक वो
- huwa
- هُوَ
- वो ही है
- l-samīʿu
- ٱلسَّمِيعُ
- ख़ूब सुनने वाला
- l-ʿalīmu
- ٱلْعَلِيمُ
- ख़ूब जानने वाला
अतः उसने रब ने उसकी सुन ली और उसकी ओर से उन स्त्रियों के दाँव-घात को टाल दिया। निस्संदेह वह सब कुछ सुनता, जानता है ([१२] युसूफ: 34)Tafseer (तफ़सीर )
ثُمَّ بَدَا لَهُمْ مِّنْۢ بَعْدِ مَا رَاَوُا الْاٰيٰتِ لَيَسْجُنُنَّهٗ حَتّٰى حِيْنٍ ࣖ ٣٥
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- badā
- بَدَا
- ज़ाहिर हो गया
- lahum
- لَهُم
- उनके लिए
- min
- مِّنۢ
- बाद उसके
- baʿdi
- بَعْدِ
- बाद उसके
- mā
- مَا
- जो
- ra-awū
- رَأَوُا۟
- उन्होंने देखी
- l-āyāti
- ٱلْءَايَٰتِ
- निशानियाँ
- layasjununnahu
- لَيَسْجُنُنَّهُۥ
- अलबत्ता वो ज़रूर क़ैद कर दें उसे
- ḥattā
- حَتَّىٰ
- एक वक़्त तक
- ḥīnin
- حِينٍ
- एक वक़्त तक
फिर उन्हें, इसके पश्चात कि वे निशानियाँ देख चुके थे, यह सूझा कि उसे एक अवधि के लिए क़ैद कर दें ([१२] युसूफ: 35)Tafseer (तफ़सीर )
وَدَخَلَ مَعَهُ السِّجْنَ فَتَيٰنِ ۗقَالَ اَحَدُهُمَآ اِنِّيْٓ اَرٰىنِيْٓ اَعْصِرُ خَمْرًا ۚوَقَالَ الْاٰخَرُ اِنِّيْٓ اَرٰىنِيْٓ اَحْمِلُ فَوْقَ رَأْسِيْ خُبْزًا تَأْكُلُ الطَّيْرُ مِنْهُ ۗنَبِّئْنَا بِتَأْوِيْلِهٖ ۚاِنَّا نَرٰىكَ مِنَ الْمُحْسِنِيْنَ ٣٦
- wadakhala
- وَدَخَلَ
- और दाख़िल हुए
- maʿahu
- مَعَهُ
- साथ उसके
- l-sij'na
- ٱلسِّجْنَ
- क़ैद ख़ाने में
- fatayāni
- فَتَيَانِۖ
- दो जवान
- qāla
- قَالَ
- कहा
- aḥaduhumā
- أَحَدُهُمَآ
- उन दोनों में से एक ने
- innī
- إِنِّىٓ
- बेशक मैं
- arānī
- أَرَىٰنِىٓ
- मैं देखता हूँ ख़ुद को
- aʿṣiru
- أَعْصِرُ
- मैं निचोड़ रहा हूँ
- khamran
- خَمْرًاۖ
- शराब
- waqāla
- وَقَالَ
- और कहा
- l-ākharu
- ٱلْءَاخَرُ
- दूसरे ने
- innī
- إِنِّىٓ
- बेशक मैं
- arānī
- أَرَىٰنِىٓ
- मैं देखता हूँ ख़ुद को
- aḥmilu
- أَحْمِلُ
- मैं उठाए हुए हूँ
- fawqa
- فَوْقَ
- अपने सर के ऊपर
- rasī
- رَأْسِى
- अपने सर के ऊपर
- khub'zan
- خُبْزًا
- रोटी
- takulu
- تَأْكُلُ
- खाते हैं
- l-ṭayru
- ٱلطَّيْرُ
- परिन्दे
- min'hu
- مِنْهُۖ
- उससे
- nabbi'nā
- نَبِّئْنَا
- बताओ हमें
- bitawīlihi
- بِتَأْوِيلِهِۦٓۖ
- ताबीर उसकी
- innā
- إِنَّا
- बेशक हम
- narāka
- نَرَىٰكَ
- हम देखते हैं तुझे
- mina
- مِنَ
- मोहसिनीन में से
- l-muḥ'sinīna
- ٱلْمُحْسِنِينَ
- मोहसिनीन में से
कारागार में दो नव युवकों ने भी उसके साथ प्रवेश किया। उनमें से एक ने कहा, 'मैंने स्वप्न देखा है कि मैं शराब निचोड़ रहा हूँ।' दूसरे ने कहा, 'मैंने देखा कि मैं अपने सिर पर रोटियाँ उठाए हुए हूँ, जिनको पक्षी खा रहे है। हमें इसका अर्थ बता दीजिए। हमें तो आप बहुत ही नेक नज़र आते है।' ([१२] युसूफ: 36)Tafseer (तफ़सीर )
قَالَ لَا يَأْتِيْكُمَا طَعَامٌ تُرْزَقٰنِهٖٓ اِلَّا نَبَّأْتُكُمَا بِتَأْوِيْلِهٖ قَبْلَ اَنْ يَّأْتِيَكُمَا ۗذٰلِكُمَا مِمَّا عَلَّمَنِيْ رَبِّيْۗ اِنِّيْ تَرَكْتُ مِلَّةَ قَوْمٍ لَّا يُؤْمِنُوْنَ بِاللّٰهِ وَهُمْ بِالْاٰخِرَةِ هُمْ كٰفِرُوْنَۙ ٣٧
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- lā
- لَا
- नहीं आएगा तुम दोनों के पास
- yatīkumā
- يَأْتِيكُمَا
- नहीं आएगा तुम दोनों के पास
- ṭaʿāmun
- طَعَامٌ
- खाना
- tur'zaqānihi
- تُرْزَقَانِهِۦٓ
- तुम दोनों दिए जाते हो उसे
- illā
- إِلَّا
- मगर
- nabbatukumā
- نَبَّأْتُكُمَا
- मैं बता दूँगा तुम दोनों को
- bitawīlihi
- بِتَأْوِيلِهِۦ
- ताबीर
- qabla
- قَبْلَ
- इससे पहले
- an
- أَن
- कि
- yatiyakumā
- يَأْتِيَكُمَاۚ
- वो आए तुम दोनों के पास
- dhālikumā
- ذَٰلِكُمَا
- ये
- mimmā
- مِمَّا
- उसमें से है जो
- ʿallamanī
- عَلَّمَنِى
- सिखाया मुझे
- rabbī
- رَبِّىٓۚ
- मेरे रब ने
- innī
- إِنِّى
- बेशक मैं
- taraktu
- تَرَكْتُ
- छोड़ दिया मैंने
- millata
- مِلَّةَ
- दीन
- qawmin
- قَوْمٍ
- उन लोगों का
- lā
- لَّا
- जो नहीं ईमान रखते
- yu'minūna
- يُؤْمِنُونَ
- जो नहीं ईमान रखते
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- wahum
- وَهُم
- और वो
- bil-ākhirati
- بِٱلْءَاخِرَةِ
- साथ आख़िरत के
- hum
- هُمْ
- वो ही
- kāfirūna
- كَٰفِرُونَ
- कुफ़्र करने वाले हैं
उसने कहा, 'जो भोजन तुम्हें मिला करता है वह तुम्हारे पास नहीं आ पाएगा, उसके तुम्हारे पास आने से पहले ही मैं तुम्हें इसका अर्थ बता दूँगा। यह उन बातों में से है, जो मेरे रब ने मुझे सिखाई है। मैं तो उन लोगों का तरीक़ा छोड़कर, जो अल्लाह को नहीं मानते और जो आख़िरत (परलोक) का इनकार करते हैं, ([१२] युसूफ: 37)Tafseer (तफ़सीर )
وَاتَّبَعْتُ مِلَّةَ اٰبَاۤءِيْٓ اِبْرٰهِيْمَ وَاِسْحٰقَ وَيَعْقُوْبَۗ مَا كَانَ لَنَآ اَنْ نُّشْرِكَ بِاللّٰهِ مِنْ شَيْءٍۗ ذٰلِكَ مِنْ فَضْلِ اللّٰهِ عَلَيْنَا وَعَلَى النَّاسِ وَلٰكِنَّ اَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَشْكُرُوْنَ ٣٨
- wa-ittabaʿtu
- وَٱتَّبَعْتُ
- और मैंने पैरवी की
- millata
- مِلَّةَ
- दीन की
- ābāī
- ءَابَآءِىٓ
- अपने आबा ओ अजदाद के
- ib'rāhīma
- إِبْرَٰهِيمَ
- इब्राहीम
- wa-is'ḥāqa
- وَإِسْحَٰقَ
- और इसहाक़
- wayaʿqūba
- وَيَعْقُوبَۚ
- और याक़ूब के
- mā
- مَا
- नहीं
- kāna
- كَانَ
- है
- lanā
- لَنَآ
- हमारे लिए
- an
- أَن
- कि
- nush'rika
- نُّشْرِكَ
- हम शरीक ठहराऐं
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- साथ अल्लाह के
- min
- مِن
- किसी चीज़ को
- shayin
- شَىْءٍۚ
- किसी चीज़ को
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- ये
- min
- مِن
- फ़ज़ल में से है
- faḍli
- فَضْلِ
- फ़ज़ल में से है
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- ʿalaynā
- عَلَيْنَا
- हम पर
- waʿalā
- وَعَلَى
- और लोगों पर
- l-nāsi
- ٱلنَّاسِ
- और लोगों पर
- walākinna
- وَلَٰكِنَّ
- और लेकिन
- akthara
- أَكْثَرَ
- अक्सर
- l-nāsi
- ٱلنَّاسِ
- लोग
- lā
- لَا
- वो शुक्र अदा नहीं करते
- yashkurūna
- يَشْكُرُونَ
- वो शुक्र अदा नहीं करते
अपने पूर्वज इबराहीम, इसहाक़ और याक़ूब का तरीक़ा अपनाया है। इमसे यह नहीं हो सकता कि हम अल्लाह के साथ किसी चीज़ को साझी ठहराएँ। यह हमपर और लोगों पर अल्लाह का अनुग्रह है। किन्तु अधिकतर लोग आभार नहीं प्रकट करते ([१२] युसूफ: 38)Tafseer (तफ़सीर )
يٰصَاحِبَيِ السِّجْنِ ءَاَرْبَابٌ مُتَفَرِّقُوْنَ خَيْرٌ اَمِ اللّٰهُ الْوَاحِدُ الْقَهَّارُۗ ٣٩
- yāṣāḥibayi
- يَٰصَىٰحِبَىِ
- ऐ मेरे दो साथियो
- l-sij'ni
- ٱلسِّجْنِ
- क़ैद ख़ाने के
- a-arbābun
- ءَأَرْبَابٌ
- क्या बहुत से रब
- mutafarriqūna
- مُّتَفَرِّقُونَ
- मुतफ़र्रिक़/जुदा-जुदा
- khayrun
- خَيْرٌ
- बेहतर हैं
- ami
- أَمِ
- या
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- l-wāḥidu
- ٱلْوَٰحِدُ
- जो एक है
- l-qahāru
- ٱلْقَهَّارُ
- बहुत ज़बरदस्त है
ऐ कारागर के मेरे साथियों! क्या अलग-अलग बहुत-से रह अच्छे है या अकेला अल्लाह जिसका प्रभुत्व सबपर है? ([१२] युसूफ: 39)Tafseer (तफ़सीर )
مَا تَعْبُدُوْنَ مِنْ دُوْنِهٖٓ اِلَّآ اَسْمَاۤءً سَمَّيْتُمُوْهَآ اَنْتُمْ وَاٰبَاۤؤُكُمْ مَّآ اَنْزَلَ اللّٰهُ بِهَا مِنْ سُلْطٰنٍۗ اِنِ الْحُكْمُ اِلَّا لِلّٰهِ ۗاَمَرَ اَلَّا تَعْبُدُوْٓا اِلَّآ اِيَّاهُ ۗذٰلِكَ الدِّيْنُ الْقَيِّمُ وَلٰكِنَّ اَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُوْنَ ٤٠
- mā
- مَا
- नहीं
- taʿbudūna
- تَعْبُدُونَ
- तुम इबादत करते
- min
- مِن
- उसके सिवा
- dūnihi
- دُونِهِۦٓ
- उसके सिवा
- illā
- إِلَّآ
- मगर
- asmāan
- أَسْمَآءً
- चन्द नामों की
- sammaytumūhā
- سَمَّيْتُمُوهَآ
- नाम रख लिए तुमने उनके
- antum
- أَنتُمْ
- तुमने
- waābāukum
- وَءَابَآؤُكُم
- और तुम्हारे आबा ओ अजदाद ने
- mā
- مَّآ
- नहीं
- anzala
- أَنزَلَ
- उतारी
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- bihā
- بِهَا
- उनकी
- min
- مِن
- कोई दलील
- sul'ṭānin
- سُلْطَٰنٍۚ
- कोई दलील
- ini
- إِنِ
- नहीं
- l-ḥuk'mu
- ٱلْحُكْمُ
- हुक्म
- illā
- إِلَّا
- मगर
- lillahi
- لِلَّهِۚ
- अल्लाह ही के लिए
- amara
- أَمَرَ
- उसने हुक्म दिया है
- allā
- أَلَّا
- कि ना
- taʿbudū
- تَعْبُدُوٓا۟
- तुम इबादत करो
- illā
- إِلَّآ
- मगर
- iyyāhu
- إِيَّاهُۚ
- सिर्फ़ उसी की
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- ये है
- l-dīnu
- ٱلدِّينُ
- दीन
- l-qayimu
- ٱلْقَيِّمُ
- दुरुस्त
- walākinna
- وَلَٰكِنَّ
- और लेकिन
- akthara
- أَكْثَرَ
- अक्सर
- l-nāsi
- ٱلنَّاسِ
- लोग
- lā
- لَا
- नहीं वो जानते
- yaʿlamūna
- يَعْلَمُونَ
- नहीं वो जानते
तुम उसके सिवा जिनकी भी बन्दगी करते हो वे तो बस निरे नाम हैं जो तुमने रख छोड़े है और तुम्हारे बाप-दादा ने। उनके लिए अल्लाह ने कोई प्रमाण नहीं उतारा। सत्ता और अधिकार तो बस अल्लाह का है। उसने आदेश दिया है कि उसके सिवा किसी की बन्दगी न करो। यही सीधा, सच्चा दीन (धर्म) हैं, किन्तु अधिकतर लोग नहीं जानते ([१२] युसूफ: 40)Tafseer (तफ़सीर )