۞ رَبِّ قَدْ اٰتَيْتَنِيْ مِنَ الْمُلْكِ وَعَلَّمْتَنِيْ مِنْ تَأْوِيْلِ الْاَحَادِيْثِۚ فَاطِرَ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِۗ اَنْتَ وَلِيّٖ فِى الدُّنْيَا وَالْاٰخِرَةِۚ تَوَفَّنِيْ مُسْلِمًا وَّاَلْحِقْنِيْ بِالصّٰلِحِيْنَ ١٠١
- rabbi
- رَبِّ
- ऐ मेरे रब
- qad
- قَدْ
- तहक़ीक़
- ātaytanī
- ءَاتَيْتَنِى
- दिया तूने मुझे
- mina
- مِنَ
- बादशाहत में से
- l-mul'ki
- ٱلْمُلْكِ
- बादशाहत में से
- waʿallamtanī
- وَعَلَّمْتَنِى
- और सिखाया तूने मुझे
- min
- مِن
- हक़ीक़त में से
- tawīli
- تَأْوِيلِ
- हक़ीक़त में से
- l-aḥādīthi
- ٱلْأَحَادِيثِۚ
- बातों की
- fāṭira
- فَاطِرَ
- ऐ पैदा करने वाले
- l-samāwāti
- ٱلسَّمَٰوَٰتِ
- आसमानों
- wal-arḍi
- وَٱلْأَرْضِ
- और ज़मीन के
- anta
- أَنتَ
- तू ही
- waliyyī
- وَلِىِّۦ
- मेरा दोस्त है
- fī
- فِى
- दुनिया में
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَا
- दुनिया में
- wal-ākhirati
- وَٱلْءَاخِرَةِۖ
- और आख़िरत में
- tawaffanī
- تَوَفَّنِى
- तू फ़ौत करना मुझे
- mus'liman
- مُسْلِمًا
- मुसलमान
- wa-alḥiq'nī
- وَأَلْحِقْنِى
- और मिला देना मुझे
- bil-ṣāliḥīna
- بِٱلصَّٰلِحِينَ
- सालिहीन से
मेरे रब! तुने मुझे राज्य प्रदान किया और मुझे घटनाओं और बातों के निष्कर्ष तक पहुँचना सिखाया। आकाश और धरती के पैदा करनेवाले! दुनिया और आख़िरत में तू ही मेरा संरक्षक मित्र है। तू मुझे इस दशा से उठा कि मैं मुस्लिम (आज्ञाकारी) हूँ और मुझे अच्छे लोगों के साथ मिला।' ([१२] युसूफ: 101)Tafseer (तफ़सीर )
ذٰلِكَ مِنْ اَنْۢبَاۤءِ الْغَيْبِ نُوْحِيْهِ اِلَيْكَۚ وَمَا كُنْتَ لَدَيْهِمْ اِذْ اَجْمَعُوْٓا اَمْرَهُمْ وَهُمْ يَمْكُرُوْنَ ١٠٢
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- ये
- min
- مِنْ
- कुछ ख़बरें हैं
- anbāi
- أَنۢبَآءِ
- कुछ ख़बरें हैं
- l-ghaybi
- ٱلْغَيْبِ
- ग़ैब की
- nūḥīhi
- نُوحِيهِ
- हम वही करते हैं उसे
- ilayka
- إِلَيْكَۖ
- तरफ़ आपके
- wamā
- وَمَا
- और ना
- kunta
- كُنتَ
- थे आप
- ladayhim
- لَدَيْهِمْ
- पास उनके
- idh
- إِذْ
- जब
- ajmaʿū
- أَجْمَعُوٓا۟
- उन्होंने इत्तिफ़ाक़ किया
- amrahum
- أَمْرَهُمْ
- अपने मामले पर
- wahum
- وَهُمْ
- और वो
- yamkurūna
- يَمْكُرُونَ
- वो चालें चल रहे थे
ये परोक्ष की ख़बरे हैं जिनकी हम तुम्हारी ओर प्रकाशना कर रहे है। तुम तो उनके पास नहीं थे, जब उन्होंने अपने मामले को पक्का करके षड्यंत्र किया था ([१२] युसूफ: 102)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَآ اَكْثَرُ النَّاسِ وَلَوْ حَرَصْتَ بِمُؤْمِنِيْنَ ١٠٣
- wamā
- وَمَآ
- और नहीं
- aktharu
- أَكْثَرُ
- अक्सर
- l-nāsi
- ٱلنَّاسِ
- लोग
- walaw
- وَلَوْ
- और अगरचे
- ḥaraṣta
- حَرَصْتَ
- हिर्स करें आप
- bimu'minīna
- بِمُؤْمِنِينَ
- ईमान लाने वाले
किन्तु चाहे तुम कितना ही चाहो, अधिकतर लोग तो मानेंगे नहीं ([१२] युसूफ: 103)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَا تَسْـَٔلُهُمْ عَلَيْهِ مِنْ اَجْرٍۗ اِنْ هُوَ اِلَّا ذِكْرٌ لِّلْعٰلَمِيْنَ ࣖ ١٠٤
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- tasaluhum
- تَسْـَٔلُهُمْ
- आप सवाल करते उनसे
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- इस पर
- min
- مِنْ
- किसी अजर का
- ajrin
- أَجْرٍۚ
- किसी अजर का
- in
- إِنْ
- नहीं है
- huwa
- هُوَ
- वो
- illā
- إِلَّا
- मगर
- dhik'run
- ذِكْرٌ
- एक ज़िक्र
- lil'ʿālamīna
- لِّلْعَٰلَمِينَ
- तमाम जहान वालों के लिए
तुम उनसे इसका कोई बदला भी नहीं माँगते। यह तो सारे संसार के लिए बस एक अनुस्मरण है ([१२] युसूफ: 104)Tafseer (तफ़सीर )
وَكَاَيِّنْ مِّنْ اٰيَةٍ فِى السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ يَمُرُّوْنَ عَلَيْهَا وَهُمْ عَنْهَا مُعْرِضُوْنَ ١٠٥
- waka-ayyin
- وَكَأَيِّن
- और कितनी ही
- min
- مِّنْ
- निशानियाँ हैं
- āyatin
- ءَايَةٍ
- निशानियाँ हैं
- fī
- فِى
- आसमानों में
- l-samāwāti
- ٱلسَّمَٰوَٰتِ
- आसमानों में
- wal-arḍi
- وَٱلْأَرْضِ
- और ज़मीन में
- yamurrūna
- يَمُرُّونَ
- वो गुज़रते हैं
- ʿalayhā
- عَلَيْهَا
- उन पर
- wahum
- وَهُمْ
- और वो
- ʿanhā
- عَنْهَا
- उनसे
- muʿ'riḍūna
- مُعْرِضُونَ
- ऐराज़ करने वाले हैं
आकाशों और धरती में कितनी ही निशानियाँ हैं, जिनपर से वे इस तरह गुज़र जाते है कि उनकी ओर वे ध्यान ही नहीं देते ([१२] युसूफ: 105)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَا يُؤْمِنُ اَكْثَرُهُمْ بِاللّٰهِ اِلَّا وَهُمْ مُّشْرِكُوْنَ ١٠٦
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- yu'minu
- يُؤْمِنُ
- ईमान लाते
- aktharuhum
- أَكْثَرُهُم
- अक्सर उनके
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- illā
- إِلَّا
- मगर
- wahum
- وَهُم
- इस हाल में कि वो
- mush'rikūna
- مُّشْرِكُونَ
- मुशरिक हैं
इनमें अधिकतर लोग अल्लाह को मानते भी है तो इस तरह कि वे साझी भी ठहराते है ([१२] युसूफ: 106)Tafseer (तफ़सीर )
اَفَاَمِنُوْٓا اَنْ تَأْتِيَهُمْ غَاشِيَةٌ مِّنْ عَذَابِ اللّٰهِ اَوْ تَأْتِيَهُمُ السَّاعَةُ بَغْتَةً وَّهُمْ لَا يَشْعُرُوْنَ ١٠٧
- afa-aminū
- أَفَأَمِنُوٓا۟
- क्या भला वो अमन में आ गए
- an
- أَن
- कि
- tatiyahum
- تَأْتِيَهُمْ
- आ जाए उनके पास
- ghāshiyatun
- غَٰشِيَةٌ
- एक छा जाने वाली (आफ़त)
- min
- مِّنْ
- अज़ाब से
- ʿadhābi
- عَذَابِ
- अज़ाब से
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- aw
- أَوْ
- या
- tatiyahumu
- تَأْتِيَهُمُ
- आ जाए उनके पास
- l-sāʿatu
- ٱلسَّاعَةُ
- क़यामत
- baghtatan
- بَغْتَةً
- अचानक
- wahum
- وَهُمْ
- और वो
- lā
- لَا
- ना वो शऊर रखते हों
- yashʿurūna
- يَشْعُرُونَ
- ना वो शऊर रखते हों
क्या वे इस बात से निश्चिन्त है कि अल्लाह की कोई यातना उन्हें ढँक ले या सहसा वह घड़ी ही उनपर आ जाए, जबकि वे बिलकुल बेख़बर हों? ([१२] युसूफ: 107)Tafseer (तफ़सीर )
قُلْ هٰذِهٖ سَبِيْلِيْٓ اَدْعُوْٓا اِلَى اللّٰهِ ۗعَلٰى بَصِيْرَةٍ اَنَا۠ وَمَنِ اتَّبَعَنِيْ ۗوَسُبْحٰنَ اللّٰهِ وَمَآ اَنَا۠ مِنَ الْمُشْرِكِيْنَ ١٠٨
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- hādhihi
- هَٰذِهِۦ
- ये है
- sabīlī
- سَبِيلِىٓ
- रास्ता मेरा
- adʿū
- أَدْعُوٓا۟
- मैं बुलाता हूँ
- ilā
- إِلَى
- तरफ़ अल्लाह के
- l-lahi
- ٱللَّهِۚ
- तरफ़ अल्लाह के
- ʿalā
- عَلَىٰ
- बसीरत पर
- baṣīratin
- بَصِيرَةٍ
- बसीरत पर
- anā
- أَنَا۠
- मैं
- wamani
- وَمَنِ
- और जो कोई
- ittabaʿanī
- ٱتَّبَعَنِىۖ
- पैरवी करे मेरी
- wasub'ḥāna
- وَسُبْحَٰنَ
- और पाक है
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह
- wamā
- وَمَآ
- और नहीं
- anā
- أَنَا۠
- मैं
- mina
- مِنَ
- शिर्क करने वालों में से
- l-mush'rikīna
- ٱلْمُشْرِكِينَ
- शिर्क करने वालों में से
कह दो, 'यही मेरा मार्ग है। मैं अल्लाह की ओर बुलाता हूँ। मैं स्वयं भी पूर्ण प्रकाश में हूँ और मेरे अनुयायी भी - महिमावान है अल्लाह! ृृ- और मैं कदापि बहुदेववादी नहीं।' ([१२] युसूफ: 108)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَآ اَرْسَلْنَا مِنْ قَبْلِكَ اِلَّا رِجَالًا نُّوْحِيْٓ اِلَيْهِمْ مِّنْ اَهْلِ الْقُرٰىۗ اَفَلَمْ يَسِيْرُوْا فِى الْاَرْضِ فَيَنْظُرُوْا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِهِمْۗ وَلَدَارُ الْاٰخِرَةِ خَيْرٌ لِّلَّذِيْنَ اتَّقَوْاۗ اَفَلَا تَعْقِلُوْنَ ١٠٩
- wamā
- وَمَآ
- और नहीं
- arsalnā
- أَرْسَلْنَا
- भेजा हमने
- min
- مِن
- आपसे पहले
- qablika
- قَبْلِكَ
- आपसे पहले
- illā
- إِلَّا
- मगर
- rijālan
- رِجَالًا
- मर्दों को
- nūḥī
- نُّوحِىٓ
- हम वही करते थे
- ilayhim
- إِلَيْهِم
- तरफ़ उनके
- min
- مِّنْ
- बस्ती वालों में से
- ahli
- أَهْلِ
- बस्ती वालों में से
- l-qurā
- ٱلْقُرَىٰٓۗ
- बस्ती वालों में से
- afalam
- أَفَلَمْ
- क्या फिर नहीं
- yasīrū
- يَسِيرُوا۟
- वो चले-फिरे
- fī
- فِى
- ज़मीन में
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में
- fayanẓurū
- فَيَنظُرُوا۟
- तो वो देखते
- kayfa
- كَيْفَ
- किस तरह
- kāna
- كَانَ
- हुआ
- ʿāqibatu
- عَٰقِبَةُ
- अंजाम
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनका जो
- min
- مِن
- उनसे पहले थे
- qablihim
- قَبْلِهِمْۗ
- उनसे पहले थे
- waladāru
- وَلَدَارُ
- और अलबत्ता घर
- l-ākhirati
- ٱلْءَاخِرَةِ
- आख़िरत का
- khayrun
- خَيْرٌ
- बेहतर है
- lilladhīna
- لِّلَّذِينَ
- उनके लिए जो
- ittaqaw
- ٱتَّقَوْا۟ۗ
- तक़वा करें
- afalā
- أَفَلَا
- क्या फिर नहीं
- taʿqilūna
- تَعْقِلُونَ
- तुम अक़्ल से काम लेते
तुमसे पहले भी हमने जिनको रसूल बनाकर भेजा, वे सब बस्तियों के रहनेवाले पुरुष ही थे। हम उनकी ओर प्रकाशना करते रहे - फिर क्या वे धरती में चले-फिरे नहीं कि देखते कि उनका कैसा परिणाम हुआ, जो उनसे पहले गुज़रे है? निश्चय ही आख़िरत का घर ही डर रखनेवालों के लिए सर्वोत्तम है। तो क्या तुम समझते नहीं? - ([१२] युसूफ: 109)Tafseer (तफ़सीर )
حَتّٰٓى اِذَا اسْتَا۟يْـَٔسَ الرُّسُلُ وَظَنُّوْٓا اَنَّهُمْ قَدْ كُذِبُوْا جَاۤءَهُمْ نَصْرُنَاۙ فَنُجِّيَ مَنْ نَّشَاۤءُ ۗوَلَا يُرَدُّ بَأْسُنَا عَنِ الْقَوْمِ الْمُجْرِمِيْنَ ١١٠
- ḥattā
- حَتَّىٰٓ
- यहाँ तक कि
- idhā
- إِذَا
- जब
- is'tayasa
- ٱسْتَيْـَٔسَ
- ना उम्मीद हो गए
- l-rusulu
- ٱلرُّسُلُ
- रसूल
- waẓannū
- وَظَنُّوٓا۟
- और उन्होंने समझा
- annahum
- أَنَّهُمْ
- कि बेशक वो
- qad
- قَدْ
- यक़ीनन
- kudhibū
- كُذِبُوا۟
- वो झूठ बोले गए
- jāahum
- جَآءَهُمْ
- आ गई उनके पास
- naṣrunā
- نَصْرُنَا
- मदद हमारी
- fanujjiya
- فَنُجِّىَ
- तो बचा लिया गया
- man
- مَن
- उसको जिसे
- nashāu
- نَّشَآءُۖ
- हम चाहते थे
- walā
- وَلَا
- और नहीं
- yuraddu
- يُرَدُّ
- फेरा जाता
- basunā
- بَأْسُنَا
- अज़ाब हमारा
- ʿani
- عَنِ
- उन लोगों से
- l-qawmi
- ٱلْقَوْمِ
- उन लोगों से
- l-muj'rimīna
- ٱلْمُجْرِمِينَ
- जो मुजरिम हैं
यहाँ तक कि जब वे रसूल निराश होने लगे और वे समझने लगे कि उनसे झूठ कहा गया था कि सहसा उन्हें हमारी सहायता पहुँच गई। फिर हमने जिसे चाहा बचा लिया। किन्तु अपराधी लोगों पर से तो हमारी यातना टलती ही नहीं ([१२] युसूफ: 110)Tafseer (तफ़सीर )