Skip to content

सूरा युसूफ - Page: 10

Yusuf

(यूसुफ़)

९१

قَالُوْا تَاللّٰهِ لَقَدْ اٰثَرَكَ اللّٰهُ عَلَيْنَا وَاِنْ كُنَّا لَخٰطِـِٕيْنَ ٩١

qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
tal-lahi
تَٱللَّهِ
क़सम अल्लाह की
laqad
لَقَدْ
अलबत्ता तहक़ीक़
ātharaka
ءَاثَرَكَ
तरजीह दी तुझे
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
ʿalaynā
عَلَيْنَا
हम पर
wa-in
وَإِن
और बेशक
kunnā
كُنَّا
थे हम
lakhāṭiīna
لَخَٰطِـِٔينَ
यक़ीनन ख़ताकार
उन्होंने कहा, 'अल्लाह की क़सम! आपको अल्लाह ने हमारे मुक़ाबले में पसन्द किया और निश्चय ही चूक तो हमसे हुई।' ([१२] युसूफ: 91)
Tafseer (तफ़सीर )
९२

قَالَ لَا تَثْرِيْبَ عَلَيْكُمُ الْيَوْمَۗ يَغْفِرُ اللّٰهُ لَكُمْ ۖوَهُوَ اَرْحَمُ الرّٰحِمِيْنَ ٩٢

qāla
قَالَ
उसने कहा
لَا
नहीं कोई मलामत
tathrība
تَثْرِيبَ
नहीं कोई मलामत
ʿalaykumu
عَلَيْكُمُ
तुम पर
l-yawma
ٱلْيَوْمَۖ
आज के दिन
yaghfiru
يَغْفِرُ
माफ़ कर दे
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
lakum
لَكُمْۖ
तुम्हें
wahuwa
وَهُوَ
और वो
arḥamu
أَرْحَمُ
सब से ज़्यादा रहम करने वाला है
l-rāḥimīna
ٱلرَّٰحِمِينَ
सब रहम करने वालों से
उसने कहा, 'आज तुमपर कोई आरोप नहीं। अल्लाह तुम्हें क्षमा करे। वह सबसे बढ़कर दयावान है। ([१२] युसूफ: 92)
Tafseer (तफ़सीर )
९३

اِذْهَبُوْا بِقَمِيْصِيْ هٰذَا فَاَلْقُوْهُ عَلٰى وَجْهِ اَبِيْ يَأْتِ بَصِيْرًا ۚوَأْتُوْنِيْ بِاَهْلِكُمْ اَجْمَعِيْنَ ࣖ ٩٣

idh'habū
ٱذْهَبُوا۟
ले जाओ
biqamīṣī
بِقَمِيصِى
क़मीज़ मेरी
hādhā
هَٰذَا
ये
fa-alqūhu
فَأَلْقُوهُ
फिर डाल दो इसे
ʿalā
عَلَىٰ
चेहरे पर
wajhi
وَجْهِ
चेहरे पर
abī
أَبِى
मेरे वालिद के
yati
يَأْتِ
वो हो जाएगा
baṣīran
بَصِيرًا
देखने वाला
watūnī
وَأْتُونِى
और ले आओ मेरे पास
bi-ahlikum
بِأَهْلِكُمْ
अपने घर वालों को
ajmaʿīna
أَجْمَعِينَ
सबके सबको
मेरा यह कुर्ता ले जाओ और इसे मेरे बाप के मुख पर डाल दो। उनकी नेत्र-ज्योति लौट आएगी, फिर अपने सब घरवालों को मेरे यहाँ ले आओ।' ([१२] युसूफ: 93)
Tafseer (तफ़सीर )
९४

وَلَمَّا فَصَلَتِ الْعِيْرُ قَالَ اَبُوْهُمْ اِنِّيْ لَاَجِدُ رِيْحَ يُوْسُفَ لَوْلَآ اَنْ تُفَنِّدُوْنِ ٩٤

walammā
وَلَمَّا
और जब
faṣalati
فَصَلَتِ
जुदा हुआ
l-ʿīru
ٱلْعِيرُ
क़फ़िला
qāla
قَالَ
कहा
abūhum
أَبُوهُمْ
उनके वालिद ने
innī
إِنِّى
बेशक मैं
la-ajidu
لَأَجِدُ
अलबत्ता मैं पाता हूँ
rīḥa
رِيحَ
ख़ुशबू/हवा
yūsufa
يُوسُفَۖ
यूसुफ़ की
lawlā
لَوْلَآ
अगर ना
an
أَن
ये कि
tufannidūni
تُفَنِّدُونِ
तुम बहका हुआ कहो मुझे
इधर जब क़ाफ़िला चला तो उनके बाप ने कहा, 'यदि तुम मुझे बहकी बातें करनेवाला न समझो तो मुझे तो यूसुफ़ की महक आ रही है।' ([१२] युसूफ: 94)
Tafseer (तफ़सीर )
९५

قَالُوْا تَاللّٰهِ اِنَّكَ لَفِيْ ضَلٰلِكَ الْقَدِيْمِ ٩٥

qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
tal-lahi
تَٱللَّهِ
क़सम अल्लाह की
innaka
إِنَّكَ
बेशक आप
lafī
لَفِى
अलबत्ता ग़लती में हैं अपनी
ḍalālika
ضَلَٰلِكَ
अलबत्ता ग़लती में हैं अपनी
l-qadīmi
ٱلْقَدِيمِ
पुरानी
वे बोले, 'अल्लाह की क़सम! आप तो अभी तक अपनी उसी पुरानी भ्रांति में पड़े हुए है।' ([१२] युसूफ: 95)
Tafseer (तफ़सीर )
९६

فَلَمَّآ اَنْ جَاۤءَ الْبَشِيْرُ اَلْقٰىهُ عَلٰى وَجْهِهٖ فَارْتَدَّ بَصِيْرًاۗ قَالَ اَلَمْ اَقُلْ لَّكُمْۙ اِنِّيْٓ اَعْلَمُ مِنَ اللّٰهِ مَا لَا تَعْلَمُوْنَ ٩٦

falammā
فَلَمَّآ
फिर जब
an
أَن
ये कि
jāa
جَآءَ
आ गया
l-bashīru
ٱلْبَشِيرُ
ख़ुशख़बरी देने वाला
alqāhu
أَلْقَىٰهُ
उसने डाला उसे
ʿalā
عَلَىٰ
ऊपर
wajhihi
وَجْهِهِۦ
उसके चेहरे के
fa-ir'tadda
فَٱرْتَدَّ
तो हो गया वो
baṣīran
بَصِيرًاۖ
देखने वाला
qāla
قَالَ
उसने कहा
alam
أَلَمْ
क्या नहीं
aqul
أَقُل
मैंने कहा था
lakum
لَّكُمْ
तुम्हें
innī
إِنِّىٓ
बेशक मैं
aʿlamu
أَعْلَمُ
मैं जानता हूँ
mina
مِنَ
अल्लाह की तरफ़ से
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह की तरफ़ से
مَا
जो
لَا
नहीं तुम जानते
taʿlamūna
تَعْلَمُونَ
नहीं तुम जानते
फिर जब शुभ सूचना देनेवाला आया तो उसने उस (कुर्ते) को उसके मुँह पर डाल दिया और तत्क्षण उसकी नेत्र-ज्योति लौट आई। उसने कहा, 'क्या मैंने तुमसे कहा नहीं था कि अल्लाह की ओर से जो मैं जानता हूँ, तुम नहीं जानते।' ([१२] युसूफ: 96)
Tafseer (तफ़सीर )
९७

قَالُوْا يٰٓاَبَانَا اسْتَغْفِرْ لَنَا ذُنُوْبَنَآ اِنَّا كُنَّا خٰطِـِٕيْنَ ٩٧

qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
yāabānā
يَٰٓأَبَانَا
ऐ हमारे अब्बा जान
is'taghfir
ٱسْتَغْفِرْ
बख़्शिश माँगिए
lanā
لَنَا
हमारे लिए
dhunūbanā
ذُنُوبَنَآ
हमारे गुनाहों की
innā
إِنَّا
बेशक हम
kunnā
كُنَّا
थे हम ही
khāṭiīna
خَٰطِـِٔينَ
ख़ताकार
वे बोले, 'ऐ मेरे बाप! आप हमारे गुनाहों की क्षमा के लिए प्रार्थना करें। वास्तव में चूक हमसे ही हुई।' ([१२] युसूफ: 97)
Tafseer (तफ़सीर )
९८

قَالَ سَوْفَ اَسْتَغْفِرُ لَكُمْ رَبِّيْ ۗاِنَّهٗ هُوَ الْغَفُوْرُ الرَّحِيْمُ ٩٨

qāla
قَالَ
कहा
sawfa
سَوْفَ
ज़रूर
astaghfiru
أَسْتَغْفِرُ
मैं बख़्शिश मागूँगा
lakum
لَكُمْ
तुम्हारे लिए
rabbī
رَبِّىٓۖ
अपने रब से
innahu
إِنَّهُۥ
बेशक वो
huwa
هُوَ
वो ही है
l-ghafūru
ٱلْغَفُورُ
बहुत बख़्शने वाला
l-raḥīmu
ٱلرَّحِيمُ
निहायत रहम करने वाला
उसने कहा, 'मैं अपने रब से तुम्हारे लिए प्रार्थना करूँगा। वह बहुत क्षमाशील, दयावान है।' ([१२] युसूफ: 98)
Tafseer (तफ़सीर )
९९

فَلَمَّا دَخَلُوْا عَلٰى يُوْسُفَ اٰوٰٓى اِلَيْهِ اَبَوَيْهِ وَقَالَ ادْخُلُوْا مِصْرَ اِنْ شَاۤءَ اللّٰهُ اٰمِنِيْنَ ۗ ٩٩

falammā
فَلَمَّا
फिर जब
dakhalū
دَخَلُوا۟
वो दाख़िल हुए
ʿalā
عَلَىٰ
ऊपर
yūsufa
يُوسُفَ
यूसुफ़ के
āwā
ءَاوَىٰٓ
उसने ठिकाना दिया
ilayhi
إِلَيْهِ
अपनी तरफ़
abawayhi
أَبَوَيْهِ
अपने वालिदैन को
waqāla
وَقَالَ
और कहा
ud'khulū
ٱدْخُلُوا۟
दाख़िल हो जाओ
miṣ'ra
مِصْرَ
मिस्र में
in
إِن
अगर
shāa
شَآءَ
चाहा
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
āminīna
ءَامِنِينَ
अमन वाले होकर
फिर जब वे यूसुफ़ के पास पहुँचे तो उसने अपने माँ-बाप को ख़ास अपने पास जगह दी औऱ कहा, 'तुम सब नगर में प्रवेश करो। अल्लाह ने चाहा तो यह प्रवेश निश्चिन्तता के साथ होगा।' ([१२] युसूफ: 99)
Tafseer (तफ़सीर )
१००

وَرَفَعَ اَبَوَيْهِ عَلَى الْعَرْشِ وَخَرُّوْا لَهٗ سُجَّدًاۚ وَقَالَ يٰٓاَبَتِ هٰذَا تَأْوِيْلُ رُءْيَايَ مِنْ قَبْلُ ۖقَدْ جَعَلَهَا رَبِّيْ حَقًّاۗ وَقَدْ اَحْسَنَ بِيْٓ اِذْ اَخْرَجَنِيْ مِنَ السِّجْنِ وَجَاۤءَ بِكُمْ مِّنَ الْبَدْوِ مِنْۢ بَعْدِ اَنْ نَّزَغَ الشَّيْطٰنُ بَيْنِيْ وَبَيْنَ اِخْوَتِيْۗ اِنَّ رَبِّيْ لَطِيْفٌ لِّمَا يَشَاۤءُ ۗاِنَّهٗ هُوَ الْعَلِيْمُ الْحَكِيْمُ ١٠٠

warafaʿa
وَرَفَعَ
और ऊपर बिठाया
abawayhi
أَبَوَيْهِ
अपने वालिदैन को
ʿalā
عَلَى
तख़्त पर
l-ʿarshi
ٱلْعَرْشِ
तख़्त पर
wakharrū
وَخَرُّوا۟
और वो सब गिर पड़े
lahu
لَهُۥ
उसके लिए
sujjadan
سُجَّدًاۖ
सजदा करते हुए
waqāla
وَقَالَ
और कहा
yāabati
يَٰٓأَبَتِ
ऐ मेरे अब्बा जान
hādhā
هَٰذَا
ये है
tawīlu
تَأْوِيلُ
ताबीर
ru'yāya
رُءْيَٰىَ
मेरे ख़्वाब की
min
مِن
पहले के
qablu
قَبْلُ
पहले के
qad
قَدْ
तहक़ीक़
jaʿalahā
جَعَلَهَا
कर दिया उसे
rabbī
رَبِّى
मेरे रब ने
ḥaqqan
حَقًّاۖ
सच्चा
waqad
وَقَدْ
और तहक़ीक़
aḥsana
أَحْسَنَ
उसने एहसान किया
بِىٓ
साथ मेरे
idh
إِذْ
जब
akhrajanī
أَخْرَجَنِى
उसने निकाला मुझे
mina
مِنَ
क़ैद ख़ाने से
l-sij'ni
ٱلسِّجْنِ
क़ैद ख़ाने से
wajāa
وَجَآءَ
और वो ले आया
bikum
بِكُم
तुम्हें
mina
مِّنَ
सेहरा से
l-badwi
ٱلْبَدْوِ
सेहरा से
min
مِنۢ
बाद इसके
baʿdi
بَعْدِ
बाद इसके
an
أَن
कि
nazagha
نَّزَغَ
फ़साद डाला
l-shayṭānu
ٱلشَّيْطَٰنُ
शैतान ने
baynī
بَيْنِى
दर्मियान मेरे
wabayna
وَبَيْنَ
और दर्मियान
ikh'watī
إِخْوَتِىٓۚ
मेरे भाईयों के
inna
إِنَّ
बेशक
rabbī
رَبِّى
रब मेरा
laṭīfun
لَطِيفٌ
बेहतरीन तदबीर करने वाला है
limā
لِّمَا
उसकी जो
yashāu
يَشَآءُۚ
वो चाहता है
innahu
إِنَّهُۥ
बेशक वो
huwa
هُوَ
वो ही है
l-ʿalīmu
ٱلْعَلِيمُ
बहुत इल्म वाला
l-ḥakīmu
ٱلْحَكِيمُ
ख़ूब हिकमत वाला
उसने अपने माँ-बाप को ऊँची जगह सिंहासन पर बिठाया और सब उसके आगे सजदे मे गिर पड़े। इस अवसर पर उसने कहा, 'ऐ मेरे बाप! यह मेरे विगत स्वप्न का साकार रूप है। इसे मेरे रब ने सच बना दिया। और उसने मुझपर उपकार किया जब मुझे क़ैदख़ाने से निकाला और आप भाइयों के बीच फ़साद डलवा दिया था। निस्संदेह मेरा रब जो चाहता है उसके लिए सूक्ष्म उपाय करता है। वास्तव में वही सर्वज्ञ, अत्यन्त तत्वदर्शी है ([१२] युसूफ: 100)
Tafseer (तफ़सीर )