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सूरा हूद - Page: 9

Hud

(हूद)

८१

قَالُوْا يٰلُوْطُ اِنَّا رُسُلُ رَبِّكَ لَنْ يَّصِلُوْٓا اِلَيْكَ فَاَسْرِ بِاَهْلِكَ بِقِطْعٍ مِّنَ الَّيْلِ وَلَا يَلْتَفِتْ مِنْكُمْ اَحَدٌ اِلَّا امْرَاَتَكَۗ اِنَّهٗ مُصِيْبُهَا مَآ اَصَابَهُمْ ۗاِنَّ مَوْعِدَهُمُ الصُّبْحُ ۗ اَلَيْسَ الصُّبْحُ بِقَرِيْبٍ ٨١

qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
yālūṭu
يَٰلُوطُ
ऐ लूत
innā
إِنَّا
बेशक हम
rusulu
رُسُلُ
भेजे हुए हैं
rabbika
رَبِّكَ
तेरे रब के
lan
لَن
हरगिज़ ना
yaṣilū
يَصِلُوٓا۟
वो पहुँच सकेंगे
ilayka
إِلَيْكَۖ
तुझ तक
fa-asri
فَأَسْرِ
पस ले चल
bi-ahlika
بِأَهْلِكَ
अपने घर वालों को
biqiṭ'ʿin
بِقِطْعٍ
एक टुकड़े में
mina
مِّنَ
रात के
al-layli
ٱلَّيْلِ
रात के
walā
وَلَا
और ना
yaltafit
يَلْتَفِتْ
पलट कर देखे
minkum
مِنكُمْ
तुम में से
aḥadun
أَحَدٌ
कोई एक
illā
إِلَّا
मगर
im'ra-ataka
ٱمْرَأَتَكَۖ
बीवी तुम्हारी
innahu
إِنَّهُۥ
बेशक वो
muṣībuhā
مُصِيبُهَا
पहुँचने वाला है उसे (भी)
مَآ
जो
aṣābahum
أَصَابَهُمْۚ
पहुँचेगा उन्हें
inna
إِنَّ
बेशक
mawʿidahumu
مَوْعِدَهُمُ
उनके वादे का वक़्त
l-ṣub'ḥu
ٱلصُّبْحُۚ
सुबह है
alaysa
أَلَيْسَ
क्या नहीं है
l-ṣub'ḥu
ٱلصُّبْحُ
सुबह
biqarībin
بِقَرِيبٍ
क़रीब ही
उन्होंने कहा, 'ऐ लूत! हम तुम्हारे रब के भेजे हुए है। वे तुम तक कदापि नहीं पहुँच सकते। अतः तुम रात के किसी हिस्सेमें अपने घरवालों को लेकर निकल जाओ और तुममें से कोई पीछे पलटकर न देखे। हाँ, तुम्हारी स्त्री का मामला और है। उनपर भी वही कुछ बीतनेवाला है, जो उनपर बीतेगा। निर्धारित समय उनके लिए प्रातःकाल का है। तो क्या प्रातःकाल निकट नहीं?' ([११] हूद: 81)
Tafseer (तफ़सीर )
८२

فَلَمَّا جَاۤءَ اَمْرُنَا جَعَلْنَا عَالِيَهَا سَافِلَهَا وَاَمْطَرْنَا عَلَيْهَا حِجَارَةً مِّنْ سِجِّيْلٍ مَّنْضُوْدٍ ٨٢

falammā
فَلَمَّا
तो जब
jāa
جَآءَ
आ गया
amrunā
أَمْرُنَا
हुक्म हमारा
jaʿalnā
جَعَلْنَا
कर दिया हमने
ʿāliyahā
عَٰلِيَهَا
ऊपर वाला उसका
sāfilahā
سَافِلَهَا
निचला उसका
wa-amṭarnā
وَأَمْطَرْنَا
और बरसाए हमने
ʿalayhā
عَلَيْهَا
उस पर
ḥijāratan
حِجَارَةً
पत्थर
min
مِّن
कंकर में से
sijjīlin
سِجِّيلٍ
कंकर में से
manḍūdin
مَّنضُودٍ
तह -ब-तह
फिर जब हमारा आदेश आ पहुँचा तो हमने उसको तलपट कर दिया और उसपर ककरीले पत्थर ताबड़-तोड़ बरसाए, ([११] हूद: 82)
Tafseer (तफ़सीर )
८३

مُسَوَّمَةً عِنْدَ رَبِّكَۗ وَمَا هِيَ مِنَ الظّٰلِمِيْنَ بِبَعِيْدٍ ࣖ ٨٣

musawwamatan
مُّسَوَّمَةً
निशान ज़दा
ʿinda
عِندَ
पास से
rabbika
رَبِّكَۖ
आपके रब के
wamā
وَمَا
और नहीं
hiya
هِىَ
वो
mina
مِنَ
ज़ालिमों से
l-ẓālimīna
ٱلظَّٰلِمِينَ
ज़ालिमों से
bibaʿīdin
بِبَعِيدٍ
कुछ दूर
जो तुम्हारे रब के यहाँ चिन्हित थे। और वे अत्याचारियों से कुछ दूर भी नहीं ([११] हूद: 83)
Tafseer (तफ़सीर )
८४

۞ وَاِلٰى مَدْيَنَ اَخَاهُمْ شُعَيْبًا ۗقَالَ يٰقَوْمِ اعْبُدُوا اللّٰهَ مَا لَكُمْ مِّنْ اِلٰهٍ غَيْرُهٗ ۗوَلَا تَنْقُصُوا الْمِكْيَالَ وَالْمِيْزَانَ اِنِّيْٓ اَرٰىكُمْ بِخَيْرٍ وَّاِنِّيْٓ اَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ مُّحِيْطٍ ٨٤

wa-ilā
وَإِلَىٰ
और तरफ़
madyana
مَدْيَنَ
मदयन के
akhāhum
أَخَاهُمْ
उनके भाई
shuʿayban
شُعَيْبًاۚ
शुऐब को (भेजा)
qāla
قَالَ
उसने कहा
yāqawmi
يَٰقَوْمِ
ऐ मेरी क़ौम
uʿ'budū
ٱعْبُدُوا۟
इबादत करो
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह की
مَا
नहीं
lakum
لَكُم
तुम्हारे लिए
min
مِّنْ
कोई इलाह (बरहक़)
ilāhin
إِلَٰهٍ
कोई इलाह (बरहक़)
ghayruhu
غَيْرُهُۥۖ
सिवाय उसके
walā
وَلَا
और ना
tanquṣū
تَنقُصُوا۟
तुम कम करो
l-mik'yāla
ٱلْمِكْيَالَ
नाप
wal-mīzāna
وَٱلْمِيزَانَۚ
और तौल
innī
إِنِّىٓ
बेशक मैं
arākum
أَرَىٰكُم
मैं देखता हूँ तुम्हें
bikhayrin
بِخَيْرٍ
अच्छी हालत में
wa-innī
وَإِنِّىٓ
और बेशक मैं
akhāfu
أَخَافُ
मैं डरता हूँ
ʿalaykum
عَلَيْكُمْ
तुम पर
ʿadhāba
عَذَابَ
अज़ाब से
yawmin
يَوْمٍ
घेर लेने वाले दिन के
muḥīṭin
مُّحِيطٍ
घेर लेने वाले दिन के
मदयन की ओर उनके भाई शुऐब को भेजा। उसने कहा, 'ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अल्लाह की बन्दही करो, उनके सिवा तुम्हारा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। और नाप और तौल में कमी न करो। मैं तो तुम्हें अच्छी दशा में देख रहा हूँ, किन्तु मुझे तुम्हारे विषय में एक घेर लेनेवाले दिन की यातना का भय है ([११] हूद: 84)
Tafseer (तफ़सीर )
८५

وَيٰقَوْمِ اَوْفُوا الْمِكْيَالَ وَالْمِيْزَانَ بِالْقِسْطِ وَلَا تَبْخَسُوا النَّاسَ اَشْيَاۤءَهُمْ وَلَا تَعْثَوْا فِى الْاَرْضِ مُفْسِدِيْنَ ٨٥

wayāqawmi
وَيَٰقَوْمِ
और ऐ मेरी क़ौम
awfū
أَوْفُوا۟
पूरा करो
l-mik'yāla
ٱلْمِكْيَالَ
नाप
wal-mīzāna
وَٱلْمِيزَانَ
और तौल
bil-qis'ṭi
بِٱلْقِسْطِۖ
साथ इन्साफ़ के
walā
وَلَا
और ना
tabkhasū
تَبْخَسُوا۟
तुम कम दो
l-nāsa
ٱلنَّاسَ
लोगों को
ashyāahum
أَشْيَآءَهُمْ
चीज़ें उनकी
walā
وَلَا
और ना
taʿthaw
تَعْثَوْا۟
तुम फ़साद करो
فِى
ज़मीन में
l-arḍi
ٱلْأَرْضِ
ज़मीन में
muf'sidīna
مُفْسِدِينَ
मुफ़सिद बनकर
ऐ मेरी क़ौम के लोगो! इनसाफ़ के साथ नाप और तौल को पूरा रखो। और लोगों को उनकी चीज़ों में घाटा न दो और धरती में बिगाड़ पैदा करनेवाले बनकर अपने मुँह को कुलषित न करो ([११] हूद: 85)
Tafseer (तफ़सीर )
८६

بَقِيَّتُ اللّٰهِ خَيْرٌ لَّكُمْ اِنْ كُنْتُمْ مُّؤْمِنِيْنَ ەۚ وَمَآ اَنَا۠ عَلَيْكُمْ بِحَفِيْظٍ ٨٦

baqiyyatu
بَقِيَّتُ
बाक़ी मान्दा
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह का
khayrun
خَيْرٌ
बेहतर है
lakum
لَّكُمْ
तुम्हारे लिए
in
إِن
अगर
kuntum
كُنتُم
हो तुम
mu'minīna
مُّؤْمِنِينَۚ
ईमान लाने वाले
wamā
وَمَآ
और नहीं
anā
أَنَا۠
मैं
ʿalaykum
عَلَيْكُم
तुम पर
biḥafīẓin
بِحَفِيظٍ
कोई निगहबान
यदि तुम मोमिन हो तो जो अल्लाह के पास शेष रहता है वही तुम्हारे लिए उत्तम है। मैं तुम्हारे ऊपर कोई नियुक्त रखवाला नहीं हूँ।' ([११] हूद: 86)
Tafseer (तफ़सीर )
८७

قَالُوْا يٰشُعَيْبُ اَصَلٰوتُكَ تَأْمُرُكَ اَنْ نَّتْرُكَ مَا يَعْبُدُ اٰبَاۤؤُنَآ اَوْ اَنْ نَّفْعَلَ فِيْٓ اَمْوَالِنَا مَا نَشٰۤؤُا ۗاِنَّكَ لَاَنْتَ الْحَلِيْمُ الرَّشِيْدُ ٨٧

qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
yāshuʿaybu
يَٰشُعَيْبُ
ऐ शुऐब
aṣalatuka
أَصَلَوٰتُكَ
क्या नमाज़ तेरी
tamuruka
تَأْمُرُكَ
हुक्म देती है तुझे
an
أَن
कि
natruka
نَّتْرُكَ
हम छोड़ दें
مَا
उन्हें जिनकी
yaʿbudu
يَعْبُدُ
इबादत करते थे
ābāunā
ءَابَآؤُنَآ
आबा ओ अजदाद हमारे
aw
أَوْ
या
an
أَن
ये कि
nafʿala
نَّفْعَلَ
(ना) हम करें
فِىٓ
अपने मालों में
amwālinā
أَمْوَٰلِنَا
अपने मालों में
مَا
जो
nashāu
نَشَٰٓؤُا۟ۖ
हम चाहें
innaka
إِنَّكَ
बेशक तू
la-anta
لَأَنتَ
अलबत्ता तू ही है
l-ḥalīmu
ٱلْحَلِيمُ
निहायत बुर्दबार
l-rashīdu
ٱلرَّشِيدُ
समझदार
वे बोले, 'ऐ शुऐब! क्या तेरी नमाज़ तुझे यही सिखाती है कि उन्हें हम छोड़ दें जिन्हें हमारे बाप-दादा पूजते आए है या यह कि हम अपने माल का उपभोग अपनी इच्छानुसार न करें? बस एक तू ही तो बड़ा सहनशील, समझदार रह गया है!' ([११] हूद: 87)
Tafseer (तफ़सीर )
८८

قَالَ يٰقَوْمِ اَرَءَيْتُمْ اِنْ كُنْتُ عَلٰى بَيِّنَةٍ مِّنْ رَّبِّيْ وَرَزَقَنِيْ مِنْهُ رِزْقًا حَسَنًا وَّمَآ اُرِيْدُ اَنْ اُخَالِفَكُمْ اِلٰى مَآ اَنْهٰىكُمْ عَنْهُ ۗاِنْ اُرِيْدُ اِلَّا الْاِصْلَاحَ مَا اسْتَطَعْتُۗ وَمَا تَوْفِيْقِيْٓ اِلَّا بِاللّٰهِ ۗعَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ وَاِلَيْهِ اُنِيْبُ ٨٨

qāla
قَالَ
उसने कहा
yāqawmi
يَٰقَوْمِ
ऐ मेरी क़ौम
ara-aytum
أَرَءَيْتُمْ
क्या देखा तुमने
in
إِن
अगर
kuntu
كُنتُ
हूँ मैं
ʿalā
عَلَىٰ
एक वाज़ेह दलील पर
bayyinatin
بَيِّنَةٍ
एक वाज़ेह दलील पर
min
مِّن
अपने रब की तरफ़ से
rabbī
رَّبِّى
अपने रब की तरफ़ से
warazaqanī
وَرَزَقَنِى
और उसने दिया हो मुझे
min'hu
مِنْهُ
अपने पास से
riz'qan
رِزْقًا
रिज़्क़
ḥasanan
حَسَنًاۚ
अच्छा
wamā
وَمَآ
और नहीं
urīdu
أُرِيدُ
मैं चाहता
an
أَنْ
कि
ukhālifakum
أُخَالِفَكُمْ
मैं मुख़ालफ़त करुँ तुम्हारी
ilā
إِلَىٰ
तरफ़
مَآ
उसके जो
anhākum
أَنْهَىٰكُمْ
मैं रोकता हूँ तुम्हें
ʿanhu
عَنْهُۚ
जिस से
in
إِنْ
नहीं
urīdu
أُرِيدُ
मैं चाहता
illā
إِلَّا
मगर
l-iṣ'lāḥa
ٱلْإِصْلَٰحَ
इस्लाह
مَا
जितनी
is'taṭaʿtu
ٱسْتَطَعْتُۚ
मैं इस्तिताअत रखता हूँ
wamā
وَمَا
और नहीं
tawfīqī
تَوْفِيقِىٓ
तौफ़ीक़ मेरी
illā
إِلَّا
मगर
bil-lahi
بِٱللَّهِۚ
साथ अल्लाह के
ʿalayhi
عَلَيْهِ
उसी पर
tawakkaltu
تَوَكَّلْتُ
तवक्कल किया मैंने
wa-ilayhi
وَإِلَيْهِ
और उसी की तरफ़
unību
أُنِيبُ
मैं रुजूअ करता हूँ
उसने कहा, 'ऐ मेरी क़ौम के लोगो! तुम्हारा क्या विचार है? यदि मैं अपने रब के एक स्पष्ट प्रमाण पर हूँ और उसने मुझे अपनी ओर से अच्छी आजीविका भी प्रदान की (तो झुठलाना मेरे लिए कितना हानिकारक होगा!) और मैं नहीं चाहता कि जिन बातों से मैं तुम्हें रोकता हूँ स्वयं स्वयं तुम्हारे विपरीत उनको करने लगूँ। मैं तो अपने बस भर केवल सुधार चाहता हूँ। मेरा काम बनना तो अल्लाह ही की सहायता से सम्भव है। उसी पर मेरा भरोसा है और उसी की ओर मैं रुजू करता हूँ ([११] हूद: 88)
Tafseer (तफ़सीर )
८९

وَيٰقَوْمِ لَا يَجْرِمَنَّكُمْ شِقَاقِيْٓ اَنْ يُّصِيْبَكُمْ مِّثْلُ مَآ اَصَابَ قَوْمَ نُوْحٍ اَوْ قَوْمَ هُوْدٍ اَوْ قَوْمَ صٰلِحٍ ۗوَمَا قَوْمُ لُوْطٍ مِّنْكُمْ بِبَعِيْدٍ ٨٩

wayāqawmi
وَيَٰقَوْمِ
और ऐ मेरी क़ौम
لَا
हरगिज़ ना आमादा करे तुम्हें
yajrimannakum
يَجْرِمَنَّكُمْ
हरगिज़ ना आमादा करे तुम्हें
shiqāqī
شِقَاقِىٓ
मुख़ालफ़त /ज़िद मेरी
an
أَن
कि
yuṣībakum
يُصِيبَكُم
पहुँचे तुम्हें (भी)
mith'lu
مِّثْلُ
मानिन्द उसके
مَآ
जो
aṣāba
أَصَابَ
पहुँचा
qawma
قَوْمَ
क़ौमे
nūḥin
نُوحٍ
नूह को
aw
أَوْ
या
qawma
قَوْمَ
क़ौमे
hūdin
هُودٍ
हूद को
aw
أَوْ
या
qawma
قَوْمَ
क़ौमे
ṣāliḥin
صَٰلِحٍۚ
सालेह को
wamā
وَمَا
और नहीं
qawmu
قَوْمُ
क़ौमे
lūṭin
لُوطٍ
लूत
minkum
مِّنكُم
तुम से
bibaʿīdin
بِبَعِيدٍ
कुछ दूर
ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मेरे प्रति तुम्हारा विरोध कहीं तुम्हें उस अपराध पर न उभारे कि तुमपर वही बीते जो नूह की क़ौम या हूद की क़ौम या सालेह की क़ौम पर बीत चुका है, और लूत की क़ौम तो तुमसे कुछ दूर भी नहीं। ([११] हूद: 89)
Tafseer (तफ़सीर )
९०

وَاسْتَغْفِرُوْا رَبَّكُمْ ثُمَّ تُوْبُوْٓا اِلَيْهِ ۗاِنَّ رَبِّيْ رَحِيْمٌ وَّدُوْدٌ ٩٠

wa-is'taghfirū
وَٱسْتَغْفِرُوا۟
और बख़्शिश माँगो
rabbakum
رَبَّكُمْ
अपने रब से
thumma
ثُمَّ
फिर
tūbū
تُوبُوٓا۟
तौबा करो
ilayhi
إِلَيْهِۚ
तरफ़ उसके
inna
إِنَّ
बेशक
rabbī
رَبِّى
मेरा रब
raḥīmun
رَحِيمٌ
निहायत रहम करने वाला है
wadūdun
وَدُودٌ
बहुत मोहब्बत करने वाला है
अपने रब से क्षमा माँगो और फिर उसकी ओर पलट आओ। मेरा रब तो बड़ा दयावन्त, बहुत प्रेम करनेवाला हैं।' ([११] हूद: 90)
Tafseer (तफ़सीर )