اُولٰۤىِٕكَ الَّذِيْنَ خَسِرُوْٓا اَنْفُسَهُمْ وَضَلَّ عَنْهُمْ مَّا كَانُوْا يَفْتَرُوْنَ ٢١
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही लोग हैं
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- जिन्होंने
- khasirū
- خَسِرُوٓا۟
- ख़सारे में डाला
- anfusahum
- أَنفُسَهُمْ
- अपनी जानों को
- waḍalla
- وَضَلَّ
- और गुम हो गया
- ʿanhum
- عَنْهُم
- उनसे
- mā
- مَّا
- जो कुछ
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- yaftarūna
- يَفْتَرُونَ
- वो गढ़ा करते
ये वही लोग है जिन्होंने अपने आपको घाटे में डाला और जो कुछ वे घड़ा करते थे, वह सब उनमें गुम होकर रह गया ([११] हूद: 21)Tafseer (तफ़सीर )
لَاجَرَمَ اَنَّهُمْ فِى الْاٰخِرَةِ هُمُ الْاَخْسَرُوْنَ ٢٢
- lā
- لَا
- नहीं कोई शक
- jarama
- جَرَمَ
- नहीं कोई शक
- annahum
- أَنَّهُمْ
- बेशक वो
- fī
- فِى
- आख़िरत में
- l-ākhirati
- ٱلْءَاخِرَةِ
- आख़िरत में
- humu
- هُمُ
- वो ही हैं
- l-akhsarūna
- ٱلْأَخْسَرُونَ
- जो सब से ज़्यादा ख़सारा पाने वाले हैं
निश्चय ही वही आख़िरत में सबसे बढ़कर घाटे में रहेंगे ([११] हूद: 22)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ وَاَخْبَتُوْٓا اِلٰى رَبِّهِمْۙ اُولٰۤىِٕكَ اَصْحٰبُ الْجَنَّةِۚ هُمْ فِيْهَا خٰلِدُوْنَ ٢٣
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- waʿamilū
- وَعَمِلُوا۟
- और उन्होंने अमल किए
- l-ṣāliḥāti
- ٱلصَّٰلِحَٰتِ
- नेक
- wa-akhbatū
- وَأَخْبَتُوٓا۟
- और उन्होंने आजिज़ी की
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ अपने रब के
- rabbihim
- رَبِّهِمْ
- तरफ़ अपने रब के
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही लोग हैं
- aṣḥābu
- أَصْحَٰبُ
- साथी
- l-janati
- ٱلْجَنَّةِۖ
- जन्नत के
- hum
- هُمْ
- वो
- fīhā
- فِيهَا
- उसमें
- khālidūna
- خَٰلِدُونَ
- हमेशा रहने वाले हैं
रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए और अपने रब की ओर झूक पड़े वही जन्नतवाले है, उसमें वे सदैव रहेंगे ([११] हूद: 23)Tafseer (तफ़सीर )
۞ مَثَلُ الْفَرِيْقَيْنِ كَالْاَعْمٰى وَالْاَصَمِّ وَالْبَصِيْرِ وَالسَّمِيْعِۗ هَلْ يَسْتَوِيٰنِ مَثَلًا ۗ اَفَلَا تَذَكَّرُوْنَ ࣖ ٢٤
- mathalu
- مَثَلُ
- मिसाल
- l-farīqayni
- ٱلْفَرِيقَيْنِ
- दो गिरोहों की
- kal-aʿmā
- كَٱلْأَعْمَىٰ
- मानिन्द अँधे
- wal-aṣami
- وَٱلْأَصَمِّ
- और बहरे के है
- wal-baṣīri
- وَٱلْبَصِيرِ
- और देखने वाले
- wal-samīʿi
- وَٱلسَّمِيعِۚ
- और सुनने वाले के है
- hal
- هَلْ
- क्या
- yastawiyāni
- يَسْتَوِيَانِ
- ये दोनों बराबर हो सकते हैं
- mathalan
- مَثَلًاۚ
- मिसाल में
- afalā
- أَفَلَا
- क्या भला नहीं
- tadhakkarūna
- تَذَكَّرُونَ
- तुम नसीहत पकड़ते
दोनों पक्षों की उपमा ऐसी है जैसे एक अन्धा और बहरा हो और एक देखने और सुननेवाला। क्या इन दोनों की दशा समान हो सकती है? तो क्या तुम होश से काम नहीं लेते? ([११] हूद: 24)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَقَدْ اَرْسَلْنَا نُوْحًا اِلٰى قَوْمِهٖٓ اِنِّيْ لَكُمْ نَذِيْرٌ مُّبِيْنٌ ۙ ٢٥
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- arsalnā
- أَرْسَلْنَا
- भेजा हमने
- nūḥan
- نُوحًا
- नूह को
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़
- qawmihi
- قَوْمِهِۦٓ
- उसकी क़ौम के
- innī
- إِنِّى
- बेशक मैं
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हारे लिए
- nadhīrun
- نَذِيرٌ
- डराने वाला हूँ
- mubīnun
- مُّبِينٌ
- खुल्लम-खुल्ला
हमने नूह को उसकी क़ौम की ओर भेजा। (उसने कहा,) 'मैं तुम्हें साफ़-साफ़ चेतावनी देता हूँ ([११] हूद: 25)Tafseer (तफ़सीर )
اَنْ لَّا تَعْبُدُوْٓا اِلَّا اللّٰهَ ۖاِنِّيْٓ اَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ اَلِيْمٍ ٢٦
- an
- أَن
- कि
- lā
- لَّا
- ना तुम इबादत करो
- taʿbudū
- تَعْبُدُوٓا۟
- ना तुम इबादत करो
- illā
- إِلَّا
- मगर
- l-laha
- ٱللَّهَۖ
- अल्लाह की
- innī
- إِنِّىٓ
- बेशक मैं
- akhāfu
- أَخَافُ
- मैं डरता हूँ
- ʿalaykum
- عَلَيْكُمْ
- तुम पर
- ʿadhāba
- عَذَابَ
- अज़ाब से
- yawmin
- يَوْمٍ
- दर्दनाक दिन के
- alīmin
- أَلِيمٍ
- दर्दनाक दिन के
यह कि तुम अल्लाह के सिवा किसी की बन्दगी न करो। मुझे तुम्हारे विषय में एक दुखद दिन की यातना का भय है।' ([११] हूद: 26)Tafseer (तफ़सीर )
فَقَالَ الْمَلَاُ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا مِنْ قَوْمِهٖ مَا نَرٰىكَ اِلَّا بَشَرًا مِّثْلَنَا وَمَا نَرٰىكَ اتَّبَعَكَ اِلَّا الَّذِيْنَ هُمْ اَرَاذِلُنَا بَادِيَ الرَّأْيِۚ وَمَا نَرٰى لَكُمْ عَلَيْنَا مِنْ فَضْلٍۢ بَلْ نَظُنُّكُمْ كٰذِبِيْنَ ٢٧
- faqāla
- فَقَالَ
- तो कहा
- l-mala-u
- ٱلْمَلَأُ
- सरदारों ने
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया था
- min
- مِن
- उसकी क़ौम में से
- qawmihi
- قَوْمِهِۦ
- उसकी क़ौम में से
- mā
- مَا
- नहीं
- narāka
- نَرَىٰكَ
- हम देखते तुझे
- illā
- إِلَّا
- मगर
- basharan
- بَشَرًا
- एक इन्सान
- mith'lanā
- مِّثْلَنَا
- अपने जैसा
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- narāka
- نَرَىٰكَ
- हम देखते तुझे
- ittabaʿaka
- ٱتَّبَعَكَ
- कि पैरवी की तेरी
- illā
- إِلَّا
- मगर
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों ने जो
- hum
- هُمْ
- वो
- arādhilunā
- أَرَاذِلُنَا
- कमतर हैं हमसे
- bādiya
- بَادِىَ
- बज़ाहिर
- l-rayi
- ٱلرَّأْىِ
- देखने में
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- narā
- نَرَىٰ
- हम देखते
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हारे लिए
- ʿalaynā
- عَلَيْنَا
- अपने ऊपर
- min
- مِن
- कोई फ़जीलत
- faḍlin
- فَضْلٍۭ
- कोई फ़जीलत
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- naẓunnukum
- نَظُنُّكُمْ
- हम समझते हैं तुम्हें
- kādhibīna
- كَٰذِبِينَ
- झूठे
इसपर उसकी क़ौम के सरदार, जिन्होंने इनकार किया था, कहने लगे, 'हमारी दृष्टि में तो तुम हमारे ही जैसे आदमी हो और हम देखते है कि बस कुछ ऐसे लोग ही तुम्हारे अनुयायी है जो पहली स्पष्ट में हमारे यहाँ के नीच है। हम अपने मुक़ाबले में तुममें कोई बड़ाई नहीं देखते, बल्कि हम तो तुम्हें झूठा समझते है।' ([११] हूद: 27)Tafseer (तफ़सीर )
قَالَ يٰقَوْمِ اَرَءَيْتُمْ اِنْ كُنْتُ عَلٰى بَيِّنَةٍ مِّنْ رَّبِّيْ وَاٰتٰىنِيْ رَحْمَةً مِّنْ عِنْدِهٖ فَعُمِّيَتْ عَلَيْكُمْۗ اَنُلْزِمُكُمُوْهَا وَاَنْتُمْ لَهَا كٰرِهُوْنَ ٢٨
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- yāqawmi
- يَٰقَوْمِ
- ऐ मेरी क़ौम
- ara-aytum
- أَرَءَيْتُمْ
- क्या देखा तुमने
- in
- إِن
- अगरचे
- kuntu
- كُنتُ
- हूँ मैं
- ʿalā
- عَلَىٰ
- एक वाज़ेह दलील पर
- bayyinatin
- بَيِّنَةٍ
- एक वाज़ेह दलील पर
- min
- مِّن
- अपने रब की तरफ़ से
- rabbī
- رَّبِّى
- अपने रब की तरफ़ से
- waātānī
- وَءَاتَىٰنِى
- और उसने दी हो मुझे
- raḥmatan
- رَحْمَةً
- रहमत
- min
- مِّنْ
- अपने पास से
- ʿindihi
- عِندِهِۦ
- अपने पास से
- faʿummiyat
- فَعُمِّيَتْ
- फिर वो छुपा दी गई हो
- ʿalaykum
- عَلَيْكُمْ
- तुम पर
- anul'zimukumūhā
- أَنُلْزِمُكُمُوهَا
- क्या हम लाज़िम कर दें उसे
- wa-antum
- وَأَنتُمْ
- जबकि तुम
- lahā
- لَهَا
- उसे
- kārihūna
- كَٰرِهُونَ
- नापसंद करने वाले हो
उसने कहा, 'ऐ मेरी क़ौम के लोगो! तुम्हारा क्या विचार है? यदि मैं अपने रब के एक स्पष्ट प्रमाण पर हूँ और उसने मुझे अपने पास से दयालुता भी प्रदान की है, फिर वह तुम्हें न सूझे तो क्या हम हठात उसे तुमपर चिपका दें, जबकि वह तुम्हें अप्रिय है? ([११] हूद: 28)Tafseer (तफ़सीर )
وَيٰقَوْمِ لَآ اَسْـَٔلُكُمْ عَلَيْهِ مَالًاۗ اِنْ اَجْرِيَ اِلَّا عَلَى اللّٰهِ وَمَآ اَنَا۠ بِطَارِدِ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْاۗ اِنَّهُمْ مُّلٰقُوْا رَبِّهِمْ وَلٰكِنِّيْٓ اَرٰىكُمْ قَوْمًا تَجْهَلُوْنَ ٢٩
- wayāqawmi
- وَيَٰقَوْمِ
- और ऐ मेरी क़ौम
- lā
- لَآ
- नहीं मैं सवाल करता तुमसे
- asalukum
- أَسْـَٔلُكُمْ
- नहीं मैं सवाल करता तुमसे
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- इस पर
- mālan
- مَالًاۖ
- किसी माल का
- in
- إِنْ
- नहीं
- ajriya
- أَجْرِىَ
- अजर मेरा
- illā
- إِلَّا
- मगर
- ʿalā
- عَلَى
- अल्लाह पर
- l-lahi
- ٱللَّهِۚ
- अल्लाह पर
- wamā
- وَمَآ
- और नहीं
- anā
- أَنَا۠
- मैं
- biṭāridi
- بِطَارِدِ
- दूर करने वाला
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन्हें जो
- āmanū
- ءَامَنُوٓا۟ۚ
- ईमान लाए
- innahum
- إِنَّهُم
- बेशक वो
- mulāqū
- مُّلَٰقُوا۟
- मुलाक़ात करने वाले हैं
- rabbihim
- رَبِّهِمْ
- अपने रब से
- walākinnī
- وَلَٰكِنِّىٓ
- और लेकिन मैं
- arākum
- أَرَىٰكُمْ
- देखता हूँ तुम्हें
- qawman
- قَوْمًا
- ऐसे लोग
- tajhalūna
- تَجْهَلُونَ
- कि तुम जहालत बरत रहे हो
और ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मैं इस काम पर कोई धन नहीं माँगता। मेरा पारिश्रमिक तो बस अल्लाह के ज़िम्मे है। मैं ईमान लानेवालो को दूर करनेवाला भी नहीं। उन्हें तो अपने रब से मिलना ही है, किन्तु मैं तुम्हें देख रहा हूँ कि तुम अज्ञानी लोग हो ([११] हूद: 29)Tafseer (तफ़सीर )
وَيٰقَوْمِ مَنْ يَّنْصُرُنِيْ مِنَ اللّٰهِ اِنْ طَرَدْتُّهُمْ ۗ اَفَلَا تَذَكَّرُوْنَ ٣٠
- wayāqawmi
- وَيَٰقَوْمِ
- और ऐ मेरी क़ौम
- man
- مَن
- कौन
- yanṣurunī
- يَنصُرُنِى
- मदद करेगा मेरी
- mina
- مِنَ
- अल्लाह से (बचाने में)
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह से (बचाने में)
- in
- إِن
- अगर
- ṭaradttuhum
- طَرَدتُّهُمْۚ
- दूर कर दिया मैंने उन्हें
- afalā
- أَفَلَا
- क्या भला नहीं
- tadhakkarūna
- تَذَكَّرُونَ
- तुम नसीहत पकड़ते
और ऐ मेरी क़ौम के लोगो! यदि मैं उन्हें धुत्कार दूँ तो अल्लाह के मुक़ाबले में कौन मेरी सहायता कर सकता है? फिर क्या तुम होश से काम नहीं लेते? ([११] हूद: 30)Tafseer (तफ़सीर )