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सूरा युनुस - Page: 5

Yunus

(यूनुस)

४१

وَاِنْ كَذَّبُوْكَ فَقُلْ لِّيْ عَمَلِيْ وَلَكُمْ عَمَلُكُمْۚ اَنْتُمْ بَرِيْۤـُٔوْنَ مِمَّآ اَعْمَلُ وَاَنَا۠ بَرِيْۤءٌ مِّمَّا تَعْمَلُوْنَ ٤١

wa-in
وَإِن
और अगर
kadhabūka
كَذَّبُوكَ
वो झुठलाऐं आपको
faqul
فَقُل
तो कह दीजिए
لِّى
मेरे लिए है
ʿamalī
عَمَلِى
अमल मेरा
walakum
وَلَكُمْ
और तुम्हारे लिए है
ʿamalukum
عَمَلُكُمْۖ
अमल तुम्हरा
antum
أَنتُم
तुम
barīūna
بَرِيٓـُٔونَ
बरी उज़ ज़िम्मा हो
mimmā
مِمَّآ
उससे जो
aʿmalu
أَعْمَلُ
मैं अमल करता हूँ
wa-anā
وَأَنَا۠
और मैं
barīon
بَرِىٓءٌ
बरी उज़ ज़िम्मा हूँ
mimmā
مِّمَّا
उससे जो
taʿmalūna
تَعْمَلُونَ
तुम अमल करते हो
और यदि वे तुझे झुठलाएँ तो कह दो, 'मेरा कर्म मेरे लिए है और तुम्हारा कर्म तुम्हारे लिए। जो कुछ मैं करता हूँ उसकी ज़िम्मेदारी से तुम बरी हो और जो कुछ तुम करते हो उसकी ज़िम्मेदारी से मैं बरी हूँ।' ([१०] युनुस: 41)
Tafseer (तफ़सीर )
४२

وَمِنْهُمْ مَّنْ يَّسْتَمِعُوْنَ اِلَيْكَۗ اَفَاَنْتَ تُسْمِعُ الصُّمَّ وَلَوْ كَانُوْا لَا يَعْقِلُوْنَ ٤٢

wamin'hum
وَمِنْهُم
और कुछ उनमें से हैं
man
مَّن
जो
yastamiʿūna
يَسْتَمِعُونَ
कान लगाते हैं
ilayka
إِلَيْكَۚ
तरफ़ आपके
afa-anta
أَفَأَنتَ
क्या फिर आप
tus'miʿu
تُسْمِعُ
सुनाऐंगे
l-ṣuma
ٱلصُّمَّ
बहरों को
walaw
وَلَوْ
और अगरचे
kānū
كَانُوا۟
हों वो
لَا
ना वो अक़्ल रखते
yaʿqilūna
يَعْقِلُونَ
ना वो अक़्ल रखते
और उनमें बहुत-से ऐसे लोग है जो तेरी ओर कान लगाते है। किन्तु क्या तू बहरों को सुनाएगा, चाहे वे समझ न रखते हों? ([१०] युनुस: 42)
Tafseer (तफ़सीर )
४३

وَمِنْهُمْ مَّنْ يَّنْظُرُ اِلَيْكَۗ اَفَاَنْتَ تَهْدِى الْعُمْيَ وَلَوْ كَانُوْا لَا يُبْصِرُوْنَ ٤٣

wamin'hum
وَمِنْهُم
और उनमें से कोई है
man
مَّن
जो
yanẓuru
يَنظُرُ
देखता है
ilayka
إِلَيْكَۚ
तरफ़ आपके
afa-anta
أَفَأَنتَ
क्या फिर आप
tahdī
تَهْدِى
राह दिखाऐंगे
l-ʿum'ya
ٱلْعُمْىَ
अँधों को
walaw
وَلَوْ
और अगरचे
kānū
كَانُوا۟
हों वो
لَا
ना वो देखते
yub'ṣirūna
يُبْصِرُونَ
ना वो देखते
और कुछ उनमें ऐसे हैं, जो तेरी ओर ताकते हैं, किन्तु क्या तू अंधों का मार्ग दिखाएगा, चाहे उन्हें कुछ सूझता न हो? ([१०] युनुस: 43)
Tafseer (तफ़सीर )
४४

اِنَّ اللّٰهَ لَا يَظْلِمُ النَّاسَ شَيْـًٔا وَّلٰكِنَّ النَّاسَ اَنْفُسَهُمْ يَظْلِمُوْنَ ٤٤

inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
لَا
नहीं ज़ुल्म करता
yaẓlimu
يَظْلِمُ
नहीं ज़ुल्म करता
l-nāsa
ٱلنَّاسَ
लोगों पर
shayan
شَيْـًٔا
कुछ भी
walākinna
وَلَٰكِنَّ
और लेकिन
l-nāsa
ٱلنَّاسَ
लोग
anfusahum
أَنفُسَهُمْ
अपनी ही जानों पर
yaẓlimūna
يَظْلِمُونَ
वो ज़ुल्म करते हैं
अल्लाह तो लोगों पर तनिक भी अत्याचार नहीं करता, किन्तु लोग स्वयं ही अपने ऊपर अत्याचार करते है ([१०] युनुस: 44)
Tafseer (तफ़सीर )
४५

وَيَوْمَ يَحْشُرُهُمْ كَاَنْ لَّمْ يَلْبَثُوْٓا اِلَّا سَاعَةً مِّنَ النَّهَارِ يَتَعَارَفُوْنَ بَيْنَهُمْۗ قَدْ خَسِرَ الَّذِيْنَ كَذَّبُوْا بِلِقَاۤءِ اللّٰهِ وَمَا كَانُوْا مُهْتَدِيْنَ ٤٥

wayawma
وَيَوْمَ
और जिस दिन
yaḥshuruhum
يَحْشُرُهُمْ
वो इकट्ठा करेगा उन्हें
ka-an
كَأَن
गोया कि
lam
لَّمْ
नहीं
yalbathū
يَلْبَثُوٓا۟
वो ठहरे
illā
إِلَّا
मगर
sāʿatan
سَاعَةً
एक घड़ी
mina
مِّنَ
दिन की
l-nahāri
ٱلنَّهَارِ
दिन की
yataʿārafūna
يَتَعَارَفُونَ
वो एक दूसरे को पहचानते रहे
baynahum
بَيْنَهُمْۚ
आपस में
qad
قَدْ
तहक़ीक़
khasira
خَسِرَ
ख़सारा पाया
alladhīna
ٱلَّذِينَ
जिन्होंने
kadhabū
كَذَّبُوا۟
झुठलाया
biliqāi
بِلِقَآءِ
मुलाक़ात को
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह की
wamā
وَمَا
और ना
kānū
كَانُوا۟
थे वो
muh'tadīna
مُهْتَدِينَ
हिदायत पाने वाले
जिस दिन वह उनको इकट्ठा करेगा तो ऐसा जान पड़ेगा जैसे वे दिन की एक घड़ी भर ठहरे थे। वे परस्पर एक-दूसरे को पहचानेंगे। वे लोग घाटे में पड़ गए, जिन्होंने अल्लाह से मिलने को झुठलाया और वे मार्ग न पा सके ([१०] युनुस: 45)
Tafseer (तफ़सीर )
४६

وَاِمَّا نُرِيَنَّكَ بَعْضَ الَّذِيْ نَعِدُهُمْ اَوْ نَتَوَفَّيَنَّكَ فَاِلَيْنَا مَرْجِعُهُمْ ثُمَّ اللّٰهُ شَهِيْدٌ عَلٰى مَا يَفْعَلُوْنَ ٤٦

wa-immā
وَإِمَّا
और अगर
nuriyannaka
نُرِيَنَّكَ
हम दिखाऐं आपको
baʿḍa
بَعْضَ
बाज़
alladhī
ٱلَّذِى
वो चीज़ जो
naʿiduhum
نَعِدُهُمْ
हम वादा करते हैं उनसे
aw
أَوْ
या
natawaffayannaka
نَتَوَفَّيَنَّكَ
हम फ़ौत कर दें आपको
fa-ilaynā
فَإِلَيْنَا
तो तरफ़ हमारे ही
marjiʿuhum
مَرْجِعُهُمْ
लौटना है उनको
thumma
ثُمَّ
फिर
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
shahīdun
شَهِيدٌ
ख़ूब गवाह है
ʿalā
عَلَىٰ
उस पर
مَا
जो
yafʿalūna
يَفْعَلُونَ
वो करते हैं
जिस चीज़ का हम उनसे वादा करते है उसमें से कुछ चाहे तुझे दिखा दें या हम तुझे (इससे पहले) उठा लें, उन्हें तो हमारी ओर लौटकर आना ही है। फिर जो कुछ वे कर रहे है उसपर अल्लाह गवाह है ([१०] युनुस: 46)
Tafseer (तफ़सीर )
४७

وَلِكُلِّ اُمَّةٍ رَّسُوْلٌ ۚفَاِذَا جَاۤءَ رَسُوْلُهُمْ قُضِيَ بَيْنَهُمْ بِالْقِسْطِ وَهُمْ لَا يُظْلَمُوْنَ ٤٧

walikulli
وَلِكُلِّ
और वास्ते हर
ummatin
أُمَّةٍ
उम्मत के
rasūlun
رَّسُولٌۖ
एक रसूल है
fa-idhā
فَإِذَا
फिर जब
jāa
جَآءَ
आ जाता है
rasūluhum
رَسُولُهُمْ
रसूल उनका
quḍiya
قُضِىَ
फ़ैसला कर दिया जाता है
baynahum
بَيْنَهُم
दर्मियान उनके
bil-qis'ṭi
بِٱلْقِسْطِ
साथ इन्साफ़ के
wahum
وَهُمْ
और वो
لَا
नहीं वो ज़ुल्म किए जाते
yuẓ'lamūna
يُظْلَمُونَ
नहीं वो ज़ुल्म किए जाते
प्रत्येक समुदाय के लिए एक रसूल है। फिर जब उनके पास उनका रसूल आ जाता है तो उनके बीच न्यायपूर्वक फ़ैसला कर दिया जाता है। उनपर कुछ भी अत्याचार नहीं किया जाता ([१०] युनुस: 47)
Tafseer (तफ़सीर )
४८

وَيَقُوْلُوْنَ مَتٰى هٰذَا الْوَعْدُ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِيْنَ ٤٨

wayaqūlūna
وَيَقُولُونَ
और वो कहते हैं
matā
مَتَىٰ
कब होगा
hādhā
هَٰذَا
ये वादा
l-waʿdu
ٱلْوَعْدُ
ये वादा
in
إِن
अगर
kuntum
كُنتُمْ
हो तुम
ṣādiqīna
صَٰدِقِينَ
सच्चे
वे कहते है, 'यदि तुम सच्चे हो तो यह वादा कब पूरा होगा?' ([१०] युनुस: 48)
Tafseer (तफ़सीर )
४९

قُلْ لَّآ اَمْلِكُ لِنَفْسِيْ ضَرًّا وَّلَا نَفْعًا اِلَّا مَا شَاۤءَ اللّٰهُ ۗ لِكُلِّ اُمَّةٍ اَجَلٌ ۚاِذَا جَاۤءَ اَجَلُهُمْ فَلَا يَسْتَأْخِرُوْنَ سَاعَةً وَّلَا يَسْتَقْدِمُوْنَ ٤٩

qul
قُل
कह दीजिए
لَّآ
नहीं मैं मालिक
amliku
أَمْلِكُ
नहीं मैं मालिक
linafsī
لِنَفْسِى
अपनी जान के लिए
ḍarran
ضَرًّا
किसी नुक़सान का
walā
وَلَا
और ना
nafʿan
نَفْعًا
किसी नफ़ा का
illā
إِلَّا
मगर
مَا
जो
shāa
شَآءَ
चाहे
l-lahu
ٱللَّهُۗ
अल्लाह
likulli
لِكُلِّ
वास्ते हर
ummatin
أُمَّةٍ
उम्मत के
ajalun
أَجَلٌۚ
एक मुक़र्रर मुद्दत है
idhā
إِذَا
जब
jāa
جَآءَ
आ जाएगी
ajaluhum
أَجَلُهُمْ
मुक़र्रर मुद्दत उनकी
falā
فَلَا
तो नहीं
yastakhirūna
يَسْتَـْٔخِرُونَ
वो पीछे रह सकेंगे
sāʿatan
سَاعَةًۖ
एक घड़ी
walā
وَلَا
और ना
yastaqdimūna
يَسْتَقْدِمُونَ
वो आगे बढ़ सकेंगे
कहो, 'मुझे अपने लिए न तो किसी हानि का अधिकार प्राप्त है और न लाभ का, बल्कि अल्लाह जो चाहता है वही होता है। हर समुदाय के लिए एक नियत समय है, जब उनका नियत समय आ जाता है तो वे न घड़ी भर पीछे हट सकते है और न आगे बढ़ सकते है।' ([१०] युनुस: 49)
Tafseer (तफ़सीर )
५०

قُلْ اَرَءَيْتُمْ اِنْ اَتٰىكُمْ عَذَابُهٗ بَيَاتًا اَوْ نَهَارًا مَّاذَا يَسْتَعْجِلُ مِنْهُ الْمُجْرِمُوْنَ ٥٠

qul
قُلْ
कह दीजिए
ara-aytum
أَرَءَيْتُمْ
क्या ग़ौर किया तुमने
in
إِنْ
अगर
atākum
أَتَىٰكُمْ
आ जाए तुम्हारे पास
ʿadhābuhu
عَذَابُهُۥ
अज़ाब उसका
bayātan
بَيَٰتًا
रात को
aw
أَوْ
या
nahāran
نَهَارًا
दिन को
mādhā
مَّاذَا
क़्या है
yastaʿjilu
يَسْتَعْجِلُ
वो जल्दी तलब कर रहे हैं (जो)
min'hu
مِنْهُ
उसमें से
l-muj'rimūna
ٱلْمُجْرِمُونَ
मुजरिम
कहो, 'क्या तुमने यह भी सोचा कि यदि तुमपर उसकी यातना रातों रात या दिन को आ जाए तो (क्या तुम उसे टाल सकोगे?) वह आख़िर कौन-सी चीज़ होगी जिसके लिए अपराधियों को जल्दी पड़ी हुई है? ([१०] युनुस: 50)
Tafseer (तफ़सीर )